विशाल गगन
लिए मेघों का धन
मन्द पवन भी
संग चली आती है।
अतृप्त नयन
में बसी आशा घन
शीतल पवन
छूने को
व्याकुल हुआ मन।
व्याकुल हुआ मन
हो गया चंचल
तुम संग
उस क्षण को
फिर से
जीने के लिए।
आनन्द विभोर
होकर
वसन्त के वरण
प्रेम से ऋतु-राग
गाने के लिए।
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
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वाह वाह वाह...............
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