सपने हज़ार लहरों सी,
आँखों की साहिल से टकराती है।
पलकों के खुलते ही,
यथार्थ के चट्टानों से टकराकर टूट जाती है।
बेख़ोफ़ से लहरें सी
बार-बार चली आती है
धरती से मन को समाने के लिए।
पर विशाल धरती से मन का
एक हिस्सा ही समाता है।
बाकि सच के लिए।
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010
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Waao its great.
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