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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

एक दिन......

एक दिन
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है

सूर्योदय से दिन की शुरूआत
सूर्यास्त से दिन का अन्त
बस इतनी सी बात ही सबके सामने रह जाती है
पर ये एक दिन
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है

एक दिन किसी को याद करने में बीतता है
एक दिन किसी के खयाल में बीतता है

एक दिन कोई काम की तलाश में बीतता है
एक दिन भूख को मिटाने में बीतता है

एक दिन सवालों के जवाब ढूंढने में बीतता है
एक दिन उलझनों को सुलझाने में बीतता है

एक दिन बिखरे चीजों को समेटने में बीतता है
एक दिन कुछ चीजों को, खयालों को, सपनों को सवारने में बीतता है
एक दिन सपनों को सच करने की चाह में बीतता है

फिर भी ये एक दिन यूं ही बीत जाता है
और ये बात किसी के सोच में नहीं आता है
एक दिन जो हमारे सामने से बीत जाता है।

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