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मंगलवार, 4 मई 2010

मेरे भीतर का इन्सान की दूसरी कड़ी............

मेरे भीतर की लड़की
सपनें बहुत देखती है
कभी-कभी तो सपनों में खो जाती है
कभी-कभी सपनों से ही डर जाती है
मेरे भीतर की लड़की
कल्पना जगत की निवासिनी है।

मेरे भीतर की लड़की
कभी-कभी हालातों को देखकर
निश्चय करती है
"मैं अभी ये करूँगी, वो करूँगी"
"जब तक लक्ष्य पूरा न होगा"
"चैन से नहीं रहूंगी"
लक्ष्य पूरा होने के बाद क्या-क्या होगा
ये सोचते-सोचते कल्पना जगत में
फिर से खो जाती है
निश्चय किया था क्या?निर्णय लिया था क्या?
भूल जाती है।

मेरे भीतर की लड़की
सुख-दुख की साथ जीती है
दुख बीता है जो उसके साथ
सुख में होकर भी नहीं भूलती है
दुख को याद करके वह
सुख में भी दुखी हो जाती है।

मेरे भीतर की लड़की
जितना हँसती है उतना रोती भी है
पर देख नहीं सकती किसी का भी रोना
चाहे वह शत्रु भी क्यों हो ना
मेरे भीतर की लड़की
बस सारी दुनियाँ को हँसते हुए देखना चाहती है।

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