कविता का सारांश:
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता "तुम्हारे साथ रहकर" प्रेम और साथी की उपस्थिति से जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों को दर्शाती है। कवि के अनुसार, प्रियजन के साथ रहने से दुनिया छोटी और सरल लगने लगती है, दिशाएँ पास आ जाती हैं, और हर रास्ता छोटा हो जाता है। यह भावना इतनी गहरी होती है कि जीवन का हर कोना एक परिचित आँगन की तरह प्रतीत होता है, जिसमें न बाहर और न भीतर कोई एकांत बचता है।
कवि महसूस करते हैं कि प्रिय व्यक्ति के साथ होने से हर वस्तु का एक विशेष अर्थ बन जाता है—चाहे वह घास का हिलना हो, हवा का खिड़की से आना हो, या धूप का दीवार पर चढ़कर जाना। यह संबंध जीवन को अधिक सार्थक बना देता है।
कविता में एक गहरी आशावादिता भी झलकती है। कवि कहते हैं कि हम अपनी सीमाओं से नहीं, बल्कि संभावनाओं से घिरे हैं। जहाँ दीवारें हैं, वहाँ द्वार भी बन सकते हैं, और उन द्वारों से पूरा पहाड़ भी गुज़र सकता है। यह संकेत करता है कि मनुष्य की इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
कवि यह भी बताते हैं कि अगर शक्ति सीमित है, तो निर्बलता भी स्थायी नहीं है। यदि हमारी भुजाएँ छोटी हैं, तो सागर भी सिमट सकता है। इस विचार के माध्यम से वह यह कहते हैं कि सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा रूप है, और जीवन व मृत्यु के बीच का क्षेत्र हमारी अपनी क्षमता से निर्धारित होता है, न कि केवल नियति से।
निष्कर्षतः, यह कविता प्रेम, संबल, और संभावनाओं के विस्तार को दर्शाती है, जिसमें किसी प्रियजन की उपस्थिति से जीवन की जटिलताएँ सरल और संभावनाएँ अनंत हो जाती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for your support