जब तुम मिले
मुझसे
ज़िन्दगी के इस मोड़ पर
मैंने दिल को एक बार नहीं
हज़ार बार रोका
जब तुम बातें करने लगे
मुझसे
तरंगों के गुम हो जाने पर
मैंने ख़यालों, तरानों को भी
अनसुना सा किया
कानों में उँगलियाँ भी फेर ली
पर दिल की धड़कन सुनाई देती रही
जब तुम्हारी नज़रें
मुझसे
बार-बार टकराती रही
चाहा की फेर लू नज़रे तुम पर से
पर तुम ही हर कही नज़र आने लगे
जब तुम मिले
जब तुमने कुछ नहीं कहा था
मुझसे
मगर मैं सुनती रही वही बातें
खुद से
तुमने तो बार-बार समझाया था मुझे
पर मैं समझकर भी नहीं समझी
बार-बार यही सोचती रही
कि
तुम मुझे क्यों मिले
जब तुम मिले।
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Adbhut lekhan....harek lekhni main apki shabdho ki ek jhankar h ek anjana sparsh hain.
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