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शनिवार, 11 मार्च 2017

जालपा का चरित्र चित्रण

जालपा उपन्यास की नायिका है। उपन्यास के अन्य पात्रों की तुलना में वह उपन्यास में प्रमुख स्थान रखती है। वह उपन्यास का केन्द्र-बिंदु है और घटनाओं का विकास उसी के चरित्र के कारण होता है। जालपा का बचपन तथा प्रयाग का गृहस्थ-जीवन दुर्बलताओं से भरा पड़ा है। वह नारी की अनेक दुर्बलताओं से युक्त है, लेकिन रमानाथ के प्रयाग से जाने के बाद उसमें प्रेम, त्याग, सहिष्णुता, साहस, बुद्धि, कौशल आदि अनेक गुणों का श्रीगणेश होता है। जालपा के प्रारंभिक चरित्र को देखकर कोई यह अनुमान भी नहीं लगा सकता कि यह नारी इतनी कुशल, साहसी एवं क्षमता से युक्त हो जायेगी। वस्तुतः उसका चरित्र दुर्गुणों एवं दुर्बलताओं से गुणों एवं सफलता की ओर उन्मुख होता है। उसके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार है।

1) आभूषण-प्रियता -- जालपा के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उसकी आभूषण-प्रियता है। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण वह बचपन से ही आभूषणों में पलती है। उसके पिता दीनदयाल जब कभी प्रयाग जाते तो जालपा के लिए कोई-न-कोई आभूषण अवश्य लाते। उनकी व्यावहारिक बुद्धि में यह विचार ही न आता था कि जालपा किसी और चीज से भी अधिक प्रसन्न हो सकती है। गुड़िया और खिलौने को वह व्यर्थ समझते थे। जालपा अपनी माँ का चन्द्रहार देखकर हट करने लगती है। उसकी माँ उसे समझाती है कि उसके ससुराल से चन्द्रहार आयेगा। परन्तु सात साल बाद जब उसका विवाह होता है तो उसकी ससुराल से चन्द्रहार नहीं आता। वह इस बात से अत्यंत दुखी हो जाती है। उसे ऐसा लगता है कि उसकी देह में एक बूँद रक्त नहीं है। चन्द्रहार न मिलने पर वह दुखी होकर बाकी के गहने भी नहीं पहनती है। गहनों के चोरी हो जाने पर वह पूरी तरहा से टूट जाती है और सबसे हँसना-बोलना, खाना-पिना सब छोड़ देती है। रमानाथ  उसके दुख को देखकर उधार के गहने बनवा देने की बात करती है। जालपा अपने झूठ-मूठ के संयम को बनाए रखती है लेकिन अवसर मिलने पर तानों द्वारा गहने न होने का दुख प्रकट करती है। जालपा के आभूषण प्रियता के कारण ही रमानाथ कर्ज में डूब जाता है और दफ्तर के पैसों से ही कर्ज उतारने की बेवकूफी करने की सोचता है। बाद में यही कारण बनता है उसके प्रयाग से भाग जाने का। जालपा रमानाथ के प्रयाग छोड़कर अचानक चले जाने पर बदल सी जाती है। उसे अपनी भूल का एहसास होता है। वह अपनी सहेली रतन के पास अपना जड़ाउ कंगन बेचकर रमानाथ के ऊपर लगे गबन के इलजाम को मिटा देती है।

2) स्वाभिमान की भावना -- जालपा के चरित्र में स्वाभिमान की भावना देखी जा सकती है। जब जालपा के सारे गहने चोरी हो जाते है और उसके माता-पिता को पता चलता है कि जालपा चन्द्रहार न मिलने पर दुखी है और सबसे दूर-दूर रहती है तो उसकी माँ अपना चन्द्रहार पार्सल करके भेज देती है। लेकिन जालपा यह हार स्वीकार नहीं करती, क्योंकि वह किसी का एहसान नहीं लेना चाहती थी। वह अपनी माँ को दिखा देना चाहती थी कि वह गहनों की भूखी नहीं है। दूसरी बार उसका स्वाभिमान तब जागता है जब वह रमानाथ को लेने कलकत्ता पहुँचती है और उसे पता चलता है कि रमानाथ ने अपने स्वार्थ-सिद्ध के लिए कई सारे निर्दोष लोगों के खिलाफ अदालत में गवाही दी है। उसे यह बिलकुल स्वीकार नहीं था कि रमानाथ किसी निर्दोष को सजा दिलवाकर धन और वैभव हासिल करे और जालपा को गहने बनवा कर दे। वह रमानाथ को बहुत समझाने का प्रयास करती है और उसकी कायरता पर उसे फटकारती भी है।

3) बुद्धि-संपन्न और प्रभावशाली व्यक्तित्व -- जालपा अपने समाज तथा काल के मुकाबले बहुत बुद्धिशाली तथा प्रभावशाली थी। जहाँ अन्य स्त्रियाँ घर की चार दिवारी के अंदर सीमित थी वही जालपा रमानाथ के  नौकरी लगते ही अपने आस-पास की स्त्रियों में अपना प्रभाव जमा लेती है। सिर्फ इतना ही नहीं जब रमानाथ प्रयाग छोड़कर चला जाता है तो उसे ढूँढने का अनोखा तरीका निकाल लेती है। वह शतरंज की पहेली अखबार में प्रकाशित कराकर पति को खोज निकालने की योजना बना लेती है। वह इसमें सफल भी होती है। अपनी चतुराई से रमानाथ पर लगे गबन के इलजाम को भी मिटा देती है। 


4) सद् गुणों की मूर्ति -- जालपा में कुछ अच्छे गुण कूट-कूट भरे है। जब वह कलकत्ता पहुँचती है तो वह रमानाथ के झूट तथा कायरता के लिए उसे खूब फटकारती है। वह अपने-आप को खतरें में डालकर भी रमानाथ को इस गलत काम को करने से रोकने की कोशिश करती है। वह उस सभी तथा कथित डाकूओं की खोज-खबर निकाल लेती है जिनको रमानाथ की झूटी गवाही द्वारा फाँसी की सजा तथा जेल हो जाती है। वह दिनेश नामक स्कूल-मास्टर की सेवा करने लग जाती है। जालपा को यह बिलकुल स्वीकार नहीं था कि किसी के खून से अपने आराम का महल तैयार हो। वह अंत तक अपने सद्-व्यवहार से सबका मन मोह लेती है। रतन के पति का जब देहांत हो जाता है और उसका भतिजा मणिभूषण उसकी सारी जायदाद छल से अपने नाम कर लेता है तब जालपा ही रतन का साथ देती है। जालपा के सद् गुण देख कर जोहरा बाई भी अपने-आप को बदल लेती है जो कि एक वेश्या थी और केवल भोग-विलास का ही जीवन उसे पसन्द था।

इस प्रकार हम देख सकते है कि जालपा का चरित्र उपन्यास के सभी पात्रों से श्रेष्ठ। वह एक देशभक्त नारी है। देश के खिलाफ जाने वालों से वह घृणा करती है। आभूषण-प्रियता उसके चरित्र में पायी जाती है लेकिन जब परिस्थितियाँ बदल जाती है तो वह भी अपनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिश करती है। वस्तुतः जालपा का स्वाभाविक श्रृंगार-प्रेम, परंपरागत रीति -रीवाजों को तोड़कर स्वतंत्र चिंतन की क्षमता, विशाल हृदयता, देशभक्ति व मानव-प्रेम की भावना, त्याग करने की अपार शक्ति उसे भारतीय नारी के नए रूप का प्रतीक बना देते हैं।