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शनिवार, 27 मार्च 2010

मेरा डर।

मेरा डर
मुझे हर रात डराने चला आता है
पता नहीं
कितने अनगिनत
विक्राल,घिनौने,विचित्र चेहरों को लेकर
मेरे सामने ला खड़ा करता है?
उनके हाथों में हथियार नहीं होते
पर फिर भी मुझे उनसे डर लगता है।

वे सवाल पुछते है मुझसे
न जाने कैसे-कैसे?
उनके उन सवालों से
तानों से
फैसलों से
मेरे दिये गये जवाबों के बदले में लौटे जवाबों से
डर लगता है
रात को एक किताब बनकर
मेरा डर
डराने चला आता है।

जब मैं पलके मूंद कर
सब कुछ भूलाने की कोशिश करती हुँ
तो यही सब कुछ
फिर से मेरी बंद आँखों में भी चले आते हैं
अंधकार तब ब्रह्माण्ड में बदल जाता है
और ये सब बन जाते है ग्रह-नक्षत्र
और तब
मुझसे फिर जवाब चाहते हैं
जवाब के लिए खुद में वह लड़ पड़ते है
एक-दूसरे से खुद टकराते हैं
इन टकराहट का शोर
इतना भयानक है कि मुझे डर लगता है
मेरा डर
ज़लज़ला बनकर
डराने चला आता है।

जब बारिश की बूंदों में
उन बूंदों की ठण्डक में
डर की आग से राहत मिलती है
तो वहा भी चला आता है
बन जाता है तूफान
या सैलाब
बहा ले जाता मेरे सुकून से भरी दुनियाँ को
ले जाना चाहता है मुझे भी
बहा के
पानी में डूबे हुए अरमान
सपनों की लाशों सा बनकर
मेरा डर
डराने चला आता है।

मेरा अस्तित्व
मेरी कोशिश
मेरे जज़बात
मेरी ख़्वाहिश
मेरा काम
मेरे वादे
सब सब अब इस डर की चपेट में है
वक्त खाली बीतता देख कर
कुछ कोशिश करती हुँ
तब
खत्म हो चुका है वक्त
ये पैगाम बनकर
मेरा डर
डराने चला आता है।
मेरा डर
हर रात मुझे डराने चला आता है।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

ज़रा दूरियां।

ज़रा दूरियाँ बढ़ जाने दो
ज़रा दिल को दूर जाने दो
जब प्यार नहीं दिलों में
तो क्या होना है रहके इनका पास-पास?

ज़रा यादों से मिट जाने दो
ज़रा सपनों से हट जाने दो
जब एहसास नहीं सीने में
तो क्या होना है रहके मेरा धड़कनों के पास?

ज़िन्दगी का झूट मैंने
सच मान लिया था
तेरे बातों को मैंने
प्यार मान लिया था
अब जाके सच का सामना हुआ है
कि मैंने क्या किया था।

ज़रा आँखों से अश्क बह जाने दो
ज़रा जी भर के मुझे रो लेने दो
जब ये किस्मत है मेरी
तो क्या होना है रखके इसे पास-पास?

सोमवार, 22 मार्च 2010

न मजबूर करो किसी को।

माली कभी मजबूर नहीं करता
कली को खिल जाने के लिए
वक्त होता है उसका अपना
वह खिल जाती है।

धरती मजबूर न करती
बादलों को बरसने के लिए
सावन आता है तो
बादल बरस जाते हैं।

धूप-छाव तो होती है राहों में
पर राही मजबूर नहीं किसी के लिए
चलता जाता है वह रुकता न कभी
जब मंजिल आती है
ठहर जाता है वह मंजिल की छाव में।

प्यार में क्या मजबूरी है
प्यार तो होता है अपने ही आप
दिल मजबूर नहीं प्यार के लिए
वह यू ही करता प्यार
प्यार पाए न पाए वह
प्यार होता है करता जाता है प्यार।

मंगलवार, 9 मार्च 2010

रिश्तें

रिश्तों के कई रंग होते हैं
कुछ नाम के, कुछ बेनाम
पर सबको पड़ता है निभाना
क्योंकि यही दुनिया का दस्तूर है।

और कुछ रिश्ते ऐसे
होते है
जैसे चलती बस की खिड़की
से देखो तो छूटते नज़ारे जैसे।

इन रिश्तों को निभाने में
सबका दिल तो रखना पड़ता है
पर सच है कि
इनको निभाने में दिल कई बार
टूटते हैं
कितना बड़ा सच है ये
पर समझते नहीं,कितने अजीब होते हैं
रिश्तें।