नाटक उस वक्त पास होता है जब रसिक समाज उसे पसंद कर लेता है। बारात का नाटक उस वक्त होता है जब राह चलते आदमी उसे पसंद कर लेते हैं। दयानाथ का भी नाटक पास हो गया।
प्रसंग :- प्रस्तुत गद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गबन उपन्यास से लिया गया है। इसके लेखक प्रेमचन्द जी है। इस प्रसंग में प्रेमचन्द ने दिखाया है कि कैसे मध्यमवर्गीय परिवार लोगों में बाहर वाले क्या कहेंगे इसकी चिन्ता सताती रहती है। शादी-ब्याह जैसे मौके पर यदि कोई कमि रह जाए तो जैसे उनके लिए संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। रमानाथ की शादी जालपा से तय हो चुकी है और अब बारात को ढंग से सजाकर न ले जाने का भय रमानाथ और दयानाथ दोनों से ही आय से अधिक खर्च करवा लेता है जिसका उन्हें बाद में फल भुगतना पड़ता है।
व्याख्या:- प्रस्तुत गद्यांश में प्रेमचन्द ने उस समय का वर्णन किया है जब रमानाथ का विवाह जालपा से तय हो जाता है। टीके में एक हजार की रकम समधी से पाकर-मितव्ययी तथा आर्दशवादी दयानाथ अपने आदर्शों पर टिक नहीं पाते और अपनी आय से अधिक व्यय कर देते हैं। वह भी मध्यवर्गीय-कुसंस्कार से जकड़े हुए, पात्र हैं जिनका विश्वास होता है कि नाटक की सफलता सहृदयों द्वारा उसके पसंद किये जाने में निहित होती है। नाटक की उत्कृष्टता की परख चाार-पाँच घंटों में होती है। पर बारात की उत्कृष्टता या निकृष्टता का पारखी मार्ग चलती भीड़ होती है जिसे वास्तविकता से नहीं वरन् बाह्य चमक-दमक से ही मतलब होता है। जितने मिनटों में बारात के संग-संग चलने वाला तमाशा, आतिशबाजी, भीड़ आदि जनता द्वारा पसंद किए जाते हैं तो बाराती अपने को धन्य मानते हैं अन्यथा उनके सारे करे-कराये पर पानी फिर जाता है।
विशेष :- प्रस्तुत संदर्भ में लेखक ने दुःसंस्कार-ग्रस्त मध्यवर्ग पर तीखा व्यंग्य किया है।
प्रसंग :- प्रस्तुत गद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गबन उपन्यास से लिया गया है। इसके लेखक प्रेमचन्द जी है। इस प्रसंग में प्रेमचन्द ने दिखाया है कि कैसे मध्यमवर्गीय परिवार लोगों में बाहर वाले क्या कहेंगे इसकी चिन्ता सताती रहती है। शादी-ब्याह जैसे मौके पर यदि कोई कमि रह जाए तो जैसे उनके लिए संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। रमानाथ की शादी जालपा से तय हो चुकी है और अब बारात को ढंग से सजाकर न ले जाने का भय रमानाथ और दयानाथ दोनों से ही आय से अधिक खर्च करवा लेता है जिसका उन्हें बाद में फल भुगतना पड़ता है।
व्याख्या:- प्रस्तुत गद्यांश में प्रेमचन्द ने उस समय का वर्णन किया है जब रमानाथ का विवाह जालपा से तय हो जाता है। टीके में एक हजार की रकम समधी से पाकर-मितव्ययी तथा आर्दशवादी दयानाथ अपने आदर्शों पर टिक नहीं पाते और अपनी आय से अधिक व्यय कर देते हैं। वह भी मध्यवर्गीय-कुसंस्कार से जकड़े हुए, पात्र हैं जिनका विश्वास होता है कि नाटक की सफलता सहृदयों द्वारा उसके पसंद किये जाने में निहित होती है। नाटक की उत्कृष्टता की परख चाार-पाँच घंटों में होती है। पर बारात की उत्कृष्टता या निकृष्टता का पारखी मार्ग चलती भीड़ होती है जिसे वास्तविकता से नहीं वरन् बाह्य चमक-दमक से ही मतलब होता है। जितने मिनटों में बारात के संग-संग चलने वाला तमाशा, आतिशबाजी, भीड़ आदि जनता द्वारा पसंद किए जाते हैं तो बाराती अपने को धन्य मानते हैं अन्यथा उनके सारे करे-कराये पर पानी फिर जाता है।
विशेष :- प्रस्तुत संदर्भ में लेखक ने दुःसंस्कार-ग्रस्त मध्यवर्ग पर तीखा व्यंग्य किया है।
मैडम उपयुक्त लेख अतिशय सुंदर एवं स्पष्ट है । और इस संदर्भ सहित व्याख्या के द्वारा बहुत ही खूबसूरत ढंग से प्रश्न के उत्तर बिलकुल यथार्थ रूप से जानने को मिले ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंGaban upnyas ki gadya ki viyakhiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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