वर्तमान समय
में स्त्री की समाज में क्या भूमिका है, क्या स्थान है, क्या महत्त्व है इन सब
चीज़ों की अलग से न तो बताने की जरूरत है न ही दिखाने की जरूरत है। वर्तमान युग
में स्त्रियों ने समाज में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है। इसीलिए स्त्री
विमर्श, नारी संघर्ष आदि शब्दों की मेरे नजरिए में कोई आवश्यकता नहीं रही है। आज
स्त्री जो संघर्ष कर रही हैं वह इसलिए नहीं की वह घर के चार दिवारी के अंदर बैठी
है या उसे किसी भी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं है। बल्कि वर्तमान युग में
स्त्री को भी सब प्रकार के अधिकार तथा पद प्राप्त हो चुके है। ये युग वैश्विकरण का
युग है जहाँ स्त्री पूरे विश्व में चाहे वह किसी भी समाज से हो, किसी भी प्रांत से
हो अपनी छवि विश्व के सामने स्पष्ट कर चुकी है। अतः आज आवश्यकता है आज की स्त्री एवं
आज के समाज के बीच यदि किसी प्रकार के मतभेद, टकराव, संघर्ष या सामंजस्य की बात हो
तो उसकी चर्चा की जाए।
वर्तमान समय
में जहाँ नारी को शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, परिवार तथा समाज में स्वतंत्रता,
व्यवसाय जगत हो या देश को चलाने लायक दायित्व, आदि सब कुछ मिल चुका है। वही समाज
में नारी के प्रति सोच में बदलाव भी देखे जा रहें है। रूढ़ीवादी विचार में भी काफी
परिवर्तन आया है। लेकिन अभी भी उतना परिवर्तन नहीं आया है कि हम कह सके कि नारी
समाज में पूरी तरहा से सशक्त हो चुकी है। क्योंकि समाज में जितनी तेजी से
वैश्विकरण हो रहा है उतनी तेजी से नारी समाज के प्रति अपराध के नये-नये तरीके भी
निकल रहे हैं। या यू कह लीजिए कि नारी के विरुद्ध आपराधिक सोच में कोई परिवर्तन
नहीं आया है बल्कि संशोधित रूप में वह सामने आया है। साथ-ही-साथ यह भी देखा जाता
है कि नारी जहाँ-जहाँ अपना स्थान बनाती जा रही है वहाँ-वहाँ कुछ पुरूष या स्त्री
ही उसकी शत्रु बनकर उसके सामने खड़ी है। आज विडम्बना की बात यह है कि नारी भी
पुरूषों के समान आपराधिक मामले में दोषी पायी जाने लगी है। पुरूषों के जिन-जिन
प्रवृत्तियों को स्त्रियाँ पसन्द नहीं करती थी या जिन-जिन आदतों से वह चिढ़ती थी
वही सारी बातें स्त्रियों ने भी स्वयं अपना लिये है। पुरुष-स्त्री की एकसमानता की
बात करते करते आज स्त्रियाँ भी पुरुष के सारे गुण-अवगुण अपनाने लगी है। फिर किस
बात के लिए हम रोज-रोज यह आवाज उठाते हैं कि नारी पुरुष से श्रेष्ठ है। अपनी
श्रेष्ठता को ही जब कमजोरी समझकर कुछ स्त्रियों ने इसे सम्पूर्णतः ठुकरा दिया है।
हाँ इस बात से भी हम विमुख नहीं हो सकते कि स्त्रियों के साथ आज भी अन्याय हो रहा
है। लेकिन इस अन्याय को रोकने के लिए समाज की सोच के साथ-साथ स्त्रियों की सोच को
भी बदलना जरूरी है तभी समाज को एक अच्छी दिशा मिलेगी। हमारे समाज के लिए सबसे अधिक
आवश्यक है कि पुरुष-स्त्री को समान अधिकार से अधिक समान रूप से स्वस्थ
विचारधारा, युक्ति-बुद्धि एवं अवसर दिए जाए। उन्हें इस बात के लिए प्रेरित
किया जाए कि दोनों ही एक-दूसरे के जीवन की पूर्ति तथा समाज के स्वस्थ विकास के लिए
आवश्यक हैं।
दोनों में ही
एक-दूसरे के प्रति पारस्पारिक सम्मान की भावना रहनी चाहिए तब ही स्त्री-पुरुष को
भिन्न रूप से न देखकर एक नागरिक रूप में देखा जाने लगेगा तथा वह समाज के लिए सबसे
उपयुक्त होगा। अंत में यह कहा जा सकता है कि सृष्टि कर्ता ने इस संसार में मनुष्य
के अलावा जितने प्राणियों को जन्म दिया है सबने अपनी क्षमता के अनुसार अपना
वर्चस्व बनाए रखने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इसी प्रकार पुरूष प्रधान समाज
बनाम स्त्री का भी संघर्ष जारी रहेगा। साथ-ही-साथ नारी को यह भी समझना आवश्यक है
संघर्ष के दौरान हमारा नैतिक पतन न हो, धर्य के साथ आगे बढ़ना होगा,अन्यथा हमारा
संघर्ष ही कमजोर और पथभ्रष्ट हो जाएगा।
stree vimarsh par meri apni soch he...aapki bhi soch utni hi mahatvapurna he aur saadar aamantrit he.
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