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बुधवार, 23 जून 2021

 

बराक घाटी में बंगला भाषा का बदलता स्वरूप। 

            बराक घाटी असम के दक्षिणी भाग का एक हिस्सा है जिसके एक तरफ बंगलादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा है तथा बाकी दो हिस्सों से अंतर्राज्य सीमा जुड़ी हुई है। यहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों की भाषा बंगला भाषा है। परन्तु बंगला के अतिरिक्त मणिपुरी, असमीया, हिन्दी, मारवाड़ी, देशवाली तथा कई अन्य भाषाएँ भी बोली जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहाँ देश के कोने-कोने से लोग अलग-अलग समय में आकर व्यापार तथा नौकरी के लिए बस गए। साथ ही बंगलादेश की सीमा से जुड़ने के कारण यहाँ कपड़े तथा मछली इत्यादि जैसे व्यापार भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ही होते हैं। बराक घाटी की बंगला भाषा मूल बंगला भाषा की ही उपबोली है। यहाँ सिलेठी बंगला, काछाड़ी बंगला, तथा मिश्रित बंगला भी बोली जाती है। बंगलादेश की भाषा का भी यहाँ काफी प्रभाव है। इसके लिए हमें बंगाल का प्राचीन इतिहास तथा बंगाल विभाजन की ओर ध्यान देना पड़ेगा। क्योंकि बराक में रहने वाले बंगला भाषी समुदायों का इससे काफी गहरा सम्बन्ध है।

 

बंगाल विभाजन तथा बंगला की उपबोलियाँ:- 19 जुलाई 1905 में भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया। ये विभाजन प्रशासनिक कार्यों की सुगमता के लिए किया गया। इस विभाजन में बंगाल के दो भाग हुए। पूर्वी बंगाल में राजशाही ढाका, चटगाँव कमिश्नरियों तथा आसाम को मिलाकर एक प्रांत बनाया गया तथा इसका नाम रखा गया पूर्व बंग और आसाम। दूसरे हिस्से में बंगाल का पश्चिम भाग तथा बिहार एवं ओडिशा को रखा गया। हालाकि बंग-भंग के विरोध के कारण पुनः 1911 में इस विभाजन को हटाया गया एवं बंगाल दुबारा संयुक्त हो गया। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हो जाने के बाद दुबारा 1947 में बंगाल के तीन हिस्से किए गए एवं  वर्तमान बंगलादेश तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाया गया। परन्तु 1971 में भारत के हस्तक्षेप के बाद इसे आज़ाद कराया तथा यह प्रान्त बंगलादेश के नाम से बना। इसकी राजधानी ढाका बनी तथा भारत में रह गए बंगाल को पश्चिम बंगाल का नाम दिया गया तथा उसकी राजधानी कोलकाता बनी।            भाषा की विविधता के अंतर्गत भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में असम, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं ओडिशा अलग-अलग राज्य बने।

            वैसे तो सभी यही जानते हैं कि बंगलादेश तथा पश्चिम बंगाल में बंगला भाषा ही बोली जाती है तथा असम की बराक घाटी तथा उत्तरी असम में जहाँ-जहाँ बंगला भाषी समुदाय के लोग रहते हैं सभी बंगला बोलते हैं। परन्तु सभी बंगला भाषा की अलग-अलग उपबोलियाँ तथा उपबोलियों के अंतर्गत आने वाली विभाषा ही सर्वाधिक बोली जाती है। बंगला भाषा की उपबोलियाँ इस प्रकार है :- बंगाली, कामरूपी, राड़ी, बारेन्द्री, झाड़खंडी। इन्हीं उपबोलियों के अंतर्गत निम्नलिखित विभाषा बोली जाती है –

1)    बंगाली

2)    चटगाँवी

3)    मनभूमि

4)    रंगपुरी

5)    राड़ी

6)    सुन्दरबनी

7)    सिलेठी

8)    बरेन्द्री

            उपरोक्त में सभी विभाषा बंगलादेश में बोली जाती है। वहाँ कुल मिलाकर 38 भाषाएँ बोली जाती है तथा बंगला भाषा की उपबोली तथा विभाषाओं का प्रयोग होता है। पश्चिम बंगाल में शुद्ध-बंगला के साथ-साथ बंगला की सभी उपबोलियों का प्रयोग होता है। परन्तु असम में अधिकतर उपबोलियों के अंतर्गत आने वाली विभाषा का प्रयोग होता है। वर्तमान बराक घाटी में बंगला का मिश्रित स्वरूप भी देखने और सुनने को मिलता है। साथ ही साथ समय के बदलाव के कारण बंगला भाषा में हिन्दी, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, इतालियन, रशियन इत्यादि विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग होता है। कई बार इन शब्दों को बंगला भाषा में इस प्रकार से मिला लिया जाता है कि उनके उच्चारण से चह पता ही नहीं चलता कि ये विदेशी शब्द है। डॉ रामेश्वर शॉ जी जिन्होंने बंगला भाषा से सम्बन्धिक पुस्तक साधारण भाषाविज्ञान ओ बंगला नामक पुस्तक लिखी है उनका कहना कहना है कि –जेमन, पूर्व बाङ्ला(बाङ्लादेश) एवं पश्चिम बाङ्लाय बाङ्ला भाषाई प्रचलित, किन्तु पूर्व ओ पश्चिम बाङ्लाय उच्चारण ओ भाषारीति पुरोपुरी एकरकम नय। एकई भाषार मध्ये एई जे आँचलिक पार्थक्य एके बले आँचलिक उपभाषा। 1 अर्थात् यहाँ लेखक का कहना है कि जब मूल भाषा के रूप तथा ध्वनि एवं उसके प्रयोग में विविधता आने लगती है तो जो नये-नये भाषा रूप बनते हैं उन्हें ही उपभाषा या बोली कहा जाता है। पूर्वी बंगाल तथा पश्चिम बंगाल में बंगला भाषा ही बोली जाती है परन्तु उसके शब्द, उसकी ध्वनि तथा रूपों के प्रयोग में अंतर है, इसमें आँचलिकता का प्रभाव है जिसके कारण बंगला भाषा की उपरोक्त उपभाषाओं तथा विभाषाओं का निर्माण हुआ।

            वर्तमान बराक घाटी में जो बंगला भाषा बोली जाती है वह सिलेठी भाषा है। इस भाषा का बराक घाटी में आगमन कई कारणों से हुआ। बंगाल विभाजन, 1951 तथा 1971 में हुए हिन्दुओं के पलायन के बाद यह भाषा बराक बेली में आयी। वही असम का करीमगंज तथा कछार प्रान्त जो कि ब्रिटिश काल में बंगाल का ही एक प्रान्त था वह बंग भंग के समय असम में चला गया था। यह दोनों की हिस्से बंगाल के सिलेठ प्रान्त के ही अंश थे। अतः यहाँ बहुत पहले से ही सिलेठी भाषा बोलने वाले लोग रहते थे। सिलेठी भाषा के बारे में यह कहा जाता है कि यह केवल एक भाषा नहीं है बल्कि सिलेठ की भाषा के साथ-साथ यह एक अलग संस्कृति ही है। यह सत्य है। बंगाल से जुड़े होने के बावजूद भी सिलेठ प्रान्त की अपनी अलग संस्कृति तथा पहचान हमेशा बनी रही है। यहाँ के खान-पान, पूजा-पाठ, शादी-ब्याह तथा त्योहारों की माने तो सिलेठी समुदाय बंगाल के बाकी सभी समुदायों से अलग अपना विशिष्ट स्थान रखती है। उसी प्रकार सिलेठी भाषा भी बंगाली भाषा के अंतर्गत आती है परन्तु सिलेठी भाषा की भी अपनी एक अलग पहचान है।

            दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि बंगला भाषा में पहले साहित्यिक रचना की शुरूआत नहीं हुई थी। साहित्यिक रचनाओं की शुरूआत बंगला भाषा के प्रकाण्ड विद्वान एवं समाज सुधारक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ही शुरू की थी। इससे पहले आँचलिक भाषाओं में बाउल, पाछाली, धामाईल गीति इत्यादि में ही केवल बंगला भाषा से जुड़ी कुछ एक आँचलिक रचनाएँ ही शामिल थी। ब्रिटिश भारत में मूल बंगला भाषा जिसे साधु भाषा कहा जाता है उसमें रचनाएँ प्रारम्भ हुई थी। परन्तु सिलेठी भाषा में कई छोटी-छोटी रचनाएँ होती रही थी। वही सिलेठी भाषा की एक और विशेषता यह रही है कि सिलेठ प्रान्त में रहने वाले लोगों की भाषाओं में धर्म के आधार पर भी वैविध्य था। अर्थात् उस समय के सिलेठ प्रान्त में हिन्दु तथा मुस्लिम दोनों ही सिलेठी भाषा बोलते थे परन्तु दोनों की भाषा में पर्याप्त अंतर था। एक तरफ जहाँ सिलेठी हिन्दु सिलेठी भाषा का प्रयोग करते थे वही सिलेठी मुस्लिम जब सिलेठी भाषा बोलते थे जो उसमें अनेक शब्द ऐसे प्रयोग करते थे जो अरबी-फारसी शब्दों से मेल खाती थी। इसी के आधार पर ही यह पता चल जाता था कि बोलने वाला व्यक्ति हिन्दु है या मुसलमान। दो मुसलमान जब सिलेठी भाषा का प्रयोग करते थे तो अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग अधिक होता था इसके विपरीत हिन्दु समुदायों में अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग नहीं होता था बल्कि मूल बंगला भाषा के शब्दो या शब्द-रूप का प्रयोग होता था। जैसे कि

सिलेठी हिन्दु यदि कहे की – आमी जल खाईराम। (मैं पानी पी रहा हूँ।)

तो मुस्लिम इसके बदले कहेगा – आमी प़ानी खाईराम। यहाँ जल और पानी में अंतर है कि जल संस्कृत शब्द है और बंगला में यह हूबहू आया है। परन्तु पानी शब्द अरब फारस से आये लोगों द्वारा लाया गया शब्द है। बराक घाटी में सिलेठी भाषा के आने से पहले जो भाषा बोली जाती थी वह भाषा भी उसमें भी अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग होता था अथवा उनमें जो शब्द प्रयोग होते थे उन्हें अरबी-फारसी के निटकतम रखा जा सकता है।

            सिलेठी भाषा का उद्गम बंगलादेश में हुआ है। बंगलादेश के सिलेठ प्रांत, नारायणगंज, नोआखाली, किशोरगंज और ब्राह्मबाड़िया तथा भारत के असम राज्य की सम्पूर्ण बराक घाटी, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुरा, नागालेंड राज्य के कुछ-कुछ हिस्सों में रहने वाले बंगाली समुदायों बोली जाने वाली एक इण्डो-आर्य भाषा है। मूल बंगला भाषा में प्रचलित रीतियों तथा आँचलिक भाषा होने के कारण ये मूल बंगला भाषा से काफी अलग है। इसमें मूल भाषा में प्रचलित शब्दों के प्रयोग में ही व्यापक अंतर देखने को मिलता है। इस भाषा का प्रयोग प्राचीन समय में भी मिलता रहा है। गवेषक सैयद मुस्तफ़ा कामाल तथा अध्यापक मुहम्मद आसाद्दर अली के अनुसार जटिल संस्कृत-प्रधान बंगला वर्णमाला की लिपि के विकल्प में सिलेठी नागरी लिपि का निर्माण किया गया। वर्तमान समय में सिलेठी लिपि का प्रयोग बंगलादेश में हो रहा है। परन्त सिलेठी भाषा का प्रयोग बंगलादेश तथा भारत समेत विश्व के अन्य देशों रह रहे बंगलादेशी मूल के निवासियों द्वारा भी हो रहा है। ब्रिटेन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। भारत के असम तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले बंगाली समुदायों में सिलेठी भाषा का व्यापक प्रयोग होता है। इस भाषा का मूल बंगला भाषा से कितना अंतर है यह निम्नलिखित तालिका द्वारा समझा जा सकता है।

 

अंग्रेजी

हिन्दी

बंगला

 

 

साधु भाषा रूप

कोलकाता की कथ्य भाषा रूप

सिलेठी

मूल काछाड़ी

 

 

 

 

हिन्दु समुदाय द्वारा प्रयुक्त शब्द रूप

मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रयुक्त शब्द रूप

हिन्दु समुदाय द्वारा प्रयुक्त शब्द रूप

मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रयुक्त शब्द रूप

वर्तमान

Who

कौन

के

के

क़े

क़िगु

क़े

क़ारगु

के

Whom

किसको

काहाके

काके

क़ारे

क़ारे

क़ारे

क़ारगुरे

कारे

what

क्या

की

की

किता

क़ित

किता

क़िता

क़िता/की

tell

बोलो या बोलिए

बोले/बोलेन

बोलेन/

बोलुन

क़ो/क़ोइन

क़इ/क़इन

क़इ/

क़इन

क़इ/

क़इन

क़ो/क़इला/

क़इन/बोलेन/बोलुन

why

क्यों

केनो

केनो

क़ेने/कितार लागी

क़ेने/कितार लागी

क़ेने

क़ेने/

कियोर लागी

क़ेने

when

कब

कोखोन/

कोबे

कोखोन/

कोबे

क़ोबे/कुन समय

क़ेलकु

कोबे/

कुन समय

क़ेलकु

कोखोन/

क़ोबे

Taking bath

नहाना

स्नान कोरा

स्नान क़ोरा

हिनान क़ोरा

गुसल क़ोरा

हिनान क़ोरा

गुसल क़ोरा

स्नान क़ोरा/हिनान क़ोरा

Head

सिर

शिर

मुड़ी/मुड़ो

माथा/मुड़ी/मुन्डु

क़ल्ला

माथा/

मुड़ी

क़ल्ला

माथा/मुड़ी

curry

व्यंजन

रान्ना

रान्ना/

तॉरक़ारी

तॉरक़ारी

छालॉन

तरकारी

 

तॉरक़ारी

Children

बच्चे

 

 

 

 

 

 

 

 

            वर्तमान समय में बराक घाटी में सिलेठी भाषा बोलने वाले काछाड़ी भाषा से मिश्रित भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। मूल सिलेठी भाषा का प्रयोग अब बहुत कम हो गया है। जो सिलेठ प्रान्त ये आये लोग भी अब पश्चिम बंगाल में बोली जाने वाली बोल-चाल की भाषा का प्रयोग ही ज्यादा करने लगे हैं क्योंकि सिलेठी भाषा में आँचलिकता है जिससे उनके व्यक्तित्व में धब्बा लगता है।

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