प्रिय प्रवास हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महा काव्य है जिसके रचैता अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी है। इसका मुख्य विषय भगवान् कृष्ण का गोकुल को छोड़कर मथुरा चले जाने पर आधारित है।
इसके प्रथम सर्ग का सारांश (१-१५) कुछ इस प्रकार है। कवि इसकी शुरुआत इस प्रकार करते हैं- दिन समाप्त होने वाला था, संध्या का समय था। आकाश में डूबते सूरज की लालिमा छा जाने से वो लाल हो गया था। पेड़ों की चोटियों पर भी सूर्य की किरणें सुशोभित हो रही थी। कमल के कुल के स्वामी अर्थात् सूर्य की प्रभा सभी पेड़ और पौधों की चोटियों पर शोभित हो रही थी। जंगल के बीच चिड़ियों का शोरगुल बढ़ रहा था। संध्या होने के कारण सभी चिड़ियाँ घर वापस लौट रही थी और लौटते समय बहुत शोर कर रही थी। जंगल में अलग अलग प्रकार की चिड़िया शोर मचाती हुई आकाश मध्य उड़ रही थी। कवि आगे कहते हैं कि आकाश की लालिमा और अधिक होने लगी और दसों दिशाओं में ये लालिमा से भर गयी और प्रसन्नता छा गयी। सारे पेड़, पौधें पर भी सूर्य की लालिमा छा गयी तो यह दृश्य देखने में ऐसा लगा जैसे पेड़ों पौधों की हरीतिमा सूर्य की लालिमा में डूब सी गयी हो। इसी प्रकार नदी के किनारे पर भी गगन के तल की यह लालिमा झलकने लगी। झरने के बहते पानी में तथा पास के सरोवर में भी सूर्य की लालिमा जब पड़ी तो वह दृश्य देखने में बहुत ही सुंदर था। फिर यही लालिमा जो कुछ समय पहले पेड़ों की शिखा पर विराजती थी वह पर्वतों के शिखरों पर जा चड़ी। संध्या और अधिक हो जाने के कारण आकाश के मध्य सूरज का बिम्ब धीरे-धीरे मिटने लगा। अर्थात् शाम ढलकर अंधेरा होने का समय हो चला।
इसी बीच कृष्ण की मुरली बज उठी और चारों तरफ पर्वत, गुफा, पेड़-पौधे, फूल, बाग-बगीचे, नदी, नदी के तट, कुंज, नदी बीच खिले-अधखिले कमल आदि मुरली की धुन से गूंज उठे। सब कुछ मुरली की ध्वनि से ध्वनिमय हो गया। कवि आगे कहते हैं कि कृष्ण की मुरली बज उठते ही अन्य ग्वाल-बालकों के भी सुन्दर वाद्य यंत्र जैसे श्रृंगी आदि भी झनझना कर बज उठे और अन्य ग्वाल बालकों को घर लौटने का संकेत मिलने लगा। उन सभी ने फिर वन के बीच अपनी गायों के इक्ट्ठा करना शुरू कर दिया। इस कारण जंगल के बीच दौड़ती हुई गायों का स्वर सुनाई देने लगा। देखते ही देखते वन की सारी गलियाँ कई प्रकार की गायों से भर गयी। उनके साथ-साथ उनके सफेद और मठमैले रंग के बछड़े-बछिया भी उछलते-कूदते उनके साथ आ रहे थे। अर्थात् विविध प्रकार की गायों के साथ उनके बछड़ों का दल खुशी-खुशी लौट रहा था। कवि आगे कहते हैं कि धीरे-धीरे जब सभी ग्वाल-बाल, अन्य गोप-गोपियाँ, कृष्ण और बलराम, सारी गायें और बछड़े एक जगह जमा हुए तो तब वे लोग कृष्ण को लेकर अपने सुन्दर और साफ-सुथरे गाँव गोकुल की तरफ लौटने लगे। जब वे सभी लोग गोकुल की तरफ चलने लगे तो सभी ग्वाल-बाल तथा गायों-बछड़ों सभी के पैरों की पदचाप से आसमान में धूल सी छा गयी। चारों तरफ से कई प्रकार के शब्द अर्थात् गायों-बछड़ों के रंभाने का शब्द, ग्वाल-बाल एवं कृष्ण-बलराम के एक-दूसरे से बातचीत और हंसी-मज़ाक का शब्द गूंजने लगा। गोकुल एक बड़ा सा गाँव था और उसके प्रत्येक घर में सभी बच्चों, गायों आदि के सकुशल लौटने पर हंसी-मज़ाक और विनोद का एक झरना सा बहने लगा था।कवि आगे कहते हैं कि पूरे दिन गोकुल वासी व्याकुल से रहे। दिन का अंत और अधिक होने लगा तो लोगों में ब्रजभूषण कृष्ण को देखने की लालसा भी अधिक होने लगी। उनकी यह दशा संध्या अधिक होने के कारण हो रही थी। वही धीरे-धीरे सभी ग्वाल-बाल, कृष्ण बलराम आदि गोकुल की तरफ बढ़ते चले आ रहे थे। कृष्ण अपनी मुरली बजाते हुए चले आ रहे थे। जैसे ही कृष्ण की मुरली की मधुर-ध्वनि सुनाई पड़ी पूरा गाँव एक साथ उत्सुक हो उठा। उनका हृदय भावनाओं से इतना भर गया कि उन लोगों में मर्यादा का ध्यान न रहा। उनके हृदय की सारी भावनाएँ एक साथ गूँज उठी। कृष्ण की मुरली की मधुर तान सुनाई पड़ी तो सभी युवक-युवतियाँ, छोटे बच्चे, बालक, बड़े-बूढ़े, व्यस्क अर्थात् पूरी आयु के लोग, घरों में रहने वाली बालिकाएं सभी विवश होकर अपने-अपने घर से निकल पड़े। उन्होंने पूरे दिन कृष्ण को नहीं देखा था जिस कारण मानो ऐसा लगा जैसे उनकी आँखों को कष्ट हो रहा था। वे अपनी आँखों का कष्ट दूर करने के लिए अपने-अपने घर से निकल पड़े थे। (यहाँ वे अपनी कृष्ण के प्रति अपार ममता की भावना से भरे हुए थे इसी कारण वे मुरली की धुन से विवश होकर निकल रहे थे।) कवि आगे कहते हैं कि इधर गोकुल की जनता अपने घर से खुशी में डूबती हुई बहुत खुश होती हुई निकल पड़ी। वही कृष्ण के साथ गायों-बछड़ों की मण्डली जो कि बहुत सुन्दर लग रही थी गोकुल आ पहुँची। सारे ग्वाल-बाल भी गोकुल पहुँच चके थे। कवि कहते हैं कि गायों के पैरों से धूल उड़ कर चारों दिशाओं में फैल गयी है और उसी के बीच से कृष्ण इस प्रकार से निकल कर आ रहे हैं जैसे चारों दिशाओं की कालिमा का विनाश कर आकाश में सूर्य हँसता हुआ चमकता है या फिर रात की कालिमा के बीच चंद्रमा अपनी चाँदनी से चारों ओर को आलोकित करता हुआ चमकता है।
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