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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

शीत की प्रभात में

शीत की प्रभात में
मैं कहु प्रकृति की बात।
उसके हरियाली आँचल में
फैला घना कोहरा,
बीच में से आती सूरज की किरणें,
लगते सोना खरा।
या यू लगता जैसे
सफेद सोने में चमक रहा हो
पीले पत्थर की चमक
ये है प्रकृति की दमक।

ओस की बूँदें हैं या
प्रकृति ने किया अभी स्नान।
भीगे पत्ते भीगी कलियाँ,
काँपते फूलों की पंखुरियाँ।
गेंदे, अतोशि,गुलाब,डालिया
करते इसका श्रृंगार।
शीत की शोभा का क्या कहना।

1 टिप्पणी:

  1. waah kya sunder kavita kahi hai

    ओस की बूँदें हैं या
    प्रकृति ने किया अभी स्नान।
    भीगे पत्ते भीगी कलियाँ,
    काँपते फूलों की पंखुरियाँ।
    गेंदे, अतोशि,गुलाब,डालिया
    करते इसका श्रृंगार।
    शीत की शोभा का क्या कहना।

    sheet ke mousam mein jaa pahunche

    khoobsurat shabad pryog kiye hain

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