नए विचार- मधुछन्दा
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शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
विशाल गगन
विशाल गगन
लिए मेघों का धन
मन्द पवन भी
संग चली आती है।
अतृप्त नयन
में बसी आशा घन
शीतल पवन
छूने को
व्याकुल हुआ मन।
व्याकुल हुआ मन
हो गया चंचल
तुम संग
उस क्षण को
फिर से
जीने के लिए।
आनन्द विभोर
होकर
वसन्त के वरण
प्रेम से ऋतु-राग
गाने के लिए।
1 टिप्पणी:
Dr. Alok Chakrabarty
15 फ़रवरी 2010 को 6:57 pm बजे
वाह वाह वाह...............
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