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शनिवार, 26 अगस्त 2023

भारतीय काव्य शास्त्र-- काव्य का अर्थ एवं परिचय Part -1

 काव्य को कविता और पद्य दोनों कहा जाता है। भारतीय काव्यशास्त्र की दृष्टि में काव्य का अर्थ 'साहित्य' है। काव्य के दो भाग है। 
काव्य -- पहला भाग है पद्यात्मक जिसमें काव्य, महाकाव्य, खण्डकाव्य, प्रबन्ध काव्य, कविता आते हैं।
             दूसरा भाग है गद्यात्मक जिसमें निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी आदि आते हैं।
Note-- प्राचीन काल में जो भी शास्त्र लिखे जाते थे या लिखे गये हैं वे सब पद्यात्मक रूप में ही लिखे गये थे। वर्तमान समय में गद्यात्मक शैली में लिखा जाता है।

काव्य का उद्देश्य :- भारतीय आचार्यों की दृष्टि में काव्य का उद्देश्य है आनंद। किसी भी भाषा में जितने शब्द है उन सबके अलग-अलग अर्थ होते हैं। आनंद का भी एक अर्थ है परन्तु वह भी एक नाम के रूप में। वह है सुख। 'सु' का सुगम तथा 'ख' गमन या गति करना। अर्थात् सुगम से गति करना। प्रत्येक व्यक्ति का मन कुछ चाहता है। यदि व्यक्ति के मन के अनुकूल सुगमता से कुछ मिलता जाय तो वह सुख होता है। उल्लास सुख से मिलता है। हर्ष मन से निकलता है। प्रसन्नता मुख से निकलती है। यह सभी तथ्य हमारी बाहरी इन्द्रियाँ है। आत्मा की अनुभूति को आनंद कहते हैं। आत्मा का सम्बन्ध बाहरी दुनियाँ से नहीं  होता है। आनंद अंदर-ही-अंदर महसूस किया जाता है। जो व्यक्त न किया जा सके परन्तु अंदर-ही-अंदर अनुभव की जा सके, वह आनंद कहलाता है। आनंद की प्राप्ति तीन रूपों में होती है। दृश्य(देखने का विषय), श्रव्य(सुनने का विषय), मिश्रित(पठ्य, दृश्य, श्रव्य का विषय)।

काव्य के रूप  :- भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के तीन रूप है। दृश्य काव्य, श्रव्य काव्य तथा मिश्रित काव्य। इन्हीं तीनों रूपों से आनंद की प्राप्ति होती है।

    काव्य को गद्य और पद्य के सम्मुख रखने से समझा जा सकता है। दोनों की अभिव्यक्ति का माध्यम शब्द से है अथवा शब्द समूह या वाक्य से है। परन्तु दोनों में शब्द की रचना और व्यवस्था अलग-अलग प्रकार से है। (कर्ता-कर्म-क्रिया) शब्दों का जो संयोजन होता है उसे रूपात्मक भाषा कहते है। व्याकरण के अनुसार वाक्य में जो शब्दों का जो गठन होता है उसे व्याकरण के अनुसार रूपात्मक भाषा कहते है। Formal Language or the formal structure of language यदि कर्ता, कर्म, क्रिया या अन्य अपने निश्चित स्थान पर न हो तो उसे विरूपात्मक भाषा कहते हैं। काव्य में कविता की भाषा विरूपात्मक होती है। यही गद्य और पद्य का पहला अंतर है।                            जैसे 

    वह आता

    दो टूक कलेजे को करता

    पछताता पथ पर आता

इसमें वाक्य संगठन के सिद्धांतो का पालन नहीं हुआ है। यदि सिद्धांत के अनुसार लिखा जाता तो कुछ इस प्रकार लिखा जाता -- वह कलेजे को दो टूक करता हुआ तथा पछताता हुआ पथ पर आता है।                                               अर्थात् कविता में यदि वाक्य संगठन के निर्धारित मानदण्ड तोड़ने के बावजूद भी अगर अर्थ स्पष्ट हो और अंतर न पड़े अर्थ में तो वह पद्यात्मक भाषा कहलाती है और वही काव्य कहलाता है। काव्य को समझने के लिए गद्य का समझना आवश्यक है। गद्य का जो स्वरूप है उस स्वरूप से ठीक उलटा काव्य होता है। पद्य की भाषा में वाक्य के निर्माण की पद्धति व्याकरण के अनुसार नहीं होती है। कविता में भाव तत्व प्रधान होता है। भावना की स्थिति में व्यवस्था का ध्यान नहीं रहता। कवि इस कारण कविता के रूप में अपनी भावना प्रकट करता है। भावना का आवेग जब मनुष्य पर चढ़ता है तब वह व्यवस्था का ध्यान नहीं रखता, क्रम का ध्यान नहीं रखता, वह हर पल यही चेष्टा करता है कि कैसे वह अपनी भावनाओं को प्रकट कर सके। गद्य और पद्य में भाषा की जो व्यवस्था है विशेषतः वाक्य का उसमें अंतर है। गद्य में वर्णन होता है और पद्य में चित्रण। किसी वस्तु अथवा विषय का स्थूल पद्धति में परिचय देना वर्णन कहलाता है। जहाँ एक-एक वस्तु या विषय का परिचय न देकर चित्र प्रस्तुत किया जाता है। चित्रण में जहाँ कुछ ही शब्दों में सारी बाते भीतर की हो चाहे बाहर की हो चित्र रूप में परिचय कराया जाता है। जहाँ किसी वस्तु की आंतरिक और बाह्य प्रकृति को कुछ ही शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है वह चित्रण कहलाता है।                                                                                                                                                         गद्य में वाष्पीकरण और पद्य में संघनन की क्रिया होती है। वाष्पीकरण और संघनन दोनों वैज्ञानिक शब्द है। गद्य में शब्दों का वाष्पीकरण हो जाता है और पद्य में शब्द एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। 

        निसि दिन बरसत नैन हमारे,

        सदा रहत पावस रितु हम पे,

        जब ते स्याम सिधारे।

गद्य में यद्यपि शब्द अलग-अलग होते है और अर्थ भी प्रकट करते है परन्तु चित्र उत्पन्न नहीं कर पाते है। काव्य में शब्दों के योजनाओं की सुन्दरता के फलस्वरूप किसी वस्तु का चित्र उत्पन्न कर देते हैं।

पद्य में भावों और विचारों का उत्कृष्ट केन्द्रण होता है। परीधि से भीतर की और आने को केन्द्रण कहते है।  केन्द्र से बाहर की ओर जाने को विकेन्द्रण कहते है। अर्थात् पद्य में भावों और विचारों का उत्तम ढंग से केन्द्रण होताहै।

जैसे--

        अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।

        आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।

 

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