कृष्ण की
चेतावनी
4
दुर्योधन वह भी दे ना
सका------पहले विवेक मर जाता है।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों
में दुर्योधन की ईर्ष्या एवं विवेकहीन कृत्य की वर्णना की जा रही है।
व्याख्या – जब कृष्ण ने
दुर्योधन से आधे राज्य के बदले केवल पाँच गाँव माँगे तो दुर्योधन क्रोधित हो जाता
है और वह कृष्ण से कहता है कि वह पाण्डवों को सुई की नोक के बराबर की भूमि भी नहीं
देगा। कवि आगे कहते हैं कि दुर्योधन यह भी न दे सका पाण्डवों को। यदि वह देता तो
समाज उसे आशीर्वाद देता परन्तु उसके मना करने पर समाज को भी बुरा लगा। उलटे
दुर्योधन ने मूर्खता दिखाते हुए वह कृष्ण को ही बन्दी बनाने लगा। जो कि असाध्य है
क्योंकि कृष्ण स्वयं भगवान है, उन्हें
बांधना असंभव है। असाध्य को जब दुर्योधन साधने चला तो कवि कहते हैं कि मनुष्य का
नाश जब सिर पर चढ़ता है तो पहले विवेक नाश हो जाता है।
5
हरि ने भीषण हुंकार किया
--------हाँ, हाँ दुर्योधन बाँध मुझे।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों
में कृष्ण के क्रोध एवं उनकी शक्ति का वर्णन करते हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि
जैसे ही दुर्योधन कृष्ण को बन्दी बनाने के लिए उनकी तरफ बढ़ता है तो कृष्ण भीषण
हुंकार करते हैं तथा अपना स्वरूप विस्तार करते हुए विश्वरूप धारण करते हैं। उनके
विस्तृत रूप देखकर सारे दिग्गज अर्थात् दिग्विजयी योद्धा भी डर के मारे डग-मग होकर
डोलने लगते हैं। भगवान कृष्ण तब क्रोधित होकर दुर्योधन को बोलते हैं – हे दुर्योधन
अपनी जंजीर लेकर आओ और आगे बढ़ो और साध मुझे। हाँ दुर्योधन मुझे बाँध। भगवान कृष्ण
यहाँ दुर्योधन को चुनौति देते हैं।
6
यह देख गगन मुझमें लय
है--------संहार झूलता है मुझमें।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों
में कवि कृष्ण के विराट स्वरूप के बारे में बता हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि
जब दुर्योधन को कृष्ण चेतावनी देते हैं तथा उसे अपने को बाँधने के लिए ललकारते है
तब वे कहते हैं – यह देख दुर्योधन यह सम्पूर्ण गगन(आकाश) मुझमें समाया हुआ
है। यह देख दुर्योधन यह पवन भी मुझमें
मिला हुआ है। सारे झंकार अर्थात् संसार में जितना नाद (आवाज़) ताल, लय, शब्द सबकुछ
मुझमें विलीन है अर्थात् समाया हुआ है। कवि कहते हैं कि समस्त ध्वनियाँ, कंपन और
संसार की समस्त चहल-पहल उनके भीतर समायी हुई है। यह उनकी आत्मा की व्यापकता और
अखंडता को दर्शाता है। कृष्ण दुर्योधन से यह भी कहते हैं कि उनमें ही अमरत्व एवं
विनाश(संहार) दोनों समाया हुआ है। अर्थात् सृष्टि के सृजन तथा विनाश दोनों ही वे
स्वयं है।
7
उदाचल मेरा दीप्त
भाल------------सब हैं मेरे मुख के अन्दर
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों
में कवि श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का चित्रण करते हुए बताते हैं कि कृष्ण
दुर्योधन को अपने दिव्य, अनंत और व्यापक रूप को दर्शा रहे हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि
को अपने भीतर समाहित किए हुए है।
व्याख्या – यहाँ उदयाचल(पूर्व
दिशा की ओर सूर्य का उदित होना) को श्रीकृष्ण के चमकते हुए मस्तक(भाल) की उपमा दी
गई है जो तेज और ज्ञान का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि भगवान का मुख मण्डल सूर्य की
तरह प्रकाशवान और दिव्य है। कवि कहते हैं कि कृष्ण का वक्षस्थल(छाती) संपूर्ण
पृथ्वी के समान विशाल बताया गया है। जिससे यह संकेत मिलता है कि वे समस्त
ब्रह्माण्ड को धारण किए हुए हैं। आगे कि
पंक्ति में कृष्ण की भुजाओं की अपार को दर्शाया गया है। उनकी भुजाएँ इतनी विशाल है
कि वे पूरी सृष्टि को अपने घेरे में ले सकते हैं।
8
दृग हों तो दृश्य अकाण्ड
देख---शत कोटी
प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने श्रीकृष्ण के विश्वरूप को दर्शाया है जो
कि दुर्योधन को चुनौति दे रहा है।
व्याख्या – कृष्ण दुर्योधन
को ललकारते हुए कह रहे है कि यदि तेरी आँखें है, यदि उन आँखों में शक्ति है तो देख
दुर्योधन। यह देख सारा ब्रह्माण्ड मुझमें समाया हुआ है। संसार के समस्त चर-अचर
अर्थात् चलने वाले और एक ही स्थान पर रह जाने वाले अचल जीव-जन्तु, पूरा संसार,
नष्ट होने वाले जीव हो अथवा अविनाशी जीव जो कभी नष्ट नहीं होते ऐसे सभी जीव मेरे
ही अंदर है। मनुष्य हो चाहे देवता हो चाहे सुर या असुर, राक्षस सब मेरे ही भीतर
है। इस पूरे ब्रह्माण्ड में करोड़ो सूर्य और चन्द्रमा, करोड़ो समुद्र, नदियाँ,
झरने सबकुछ मेरे ही भीतर समाया हुआ है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें