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मंगलवार, 11 मार्च 2025

शंबूक व्याख्या

 व्याख्या: जगदीश गुप्त द्वारा लिखित 'शंबूक' की इन पंक्तियों में समाज में व्याप्त विषमता, अन्याय और शोक का सजीव चित्रण किया गया है। 

"लगी पड़ने स्याह गोरी देह, हो रहा विष दंश का संदेह" इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि ब्राह्मण पुत्र की देह स्याह अर्थात् नीला पड़ने लगा है। ऐसा लग रहा है जैसे कि किसी सर्प से उसे कांटा है। विष के प्रभाव से उसका शरीर नीला पड़ गया है।

"कौन जाने कहां कैसा नाग, बुझा मेरा वंश दीपक आज" न जाने ये नाग कैसा है कहा से आया है एवं इसके काटने से आज मेरे पुत्र की मृत्यु हो गई है। इसके वजह से मेरे वंश का दीपक बुझ गया है। अर्थात् ब्राह्मण का पुत्र उसके वंश के दीपक के समान था जो कि आगे उसका वंश बढ़ाता परन्तु सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो गई है। 

"राम यह कैसा ’तुम्हारा राज’" यहाँ कवि ने रामराज्य की आदर्श छवि पर प्रश्न उठाया है। जिस रामराज्य को न्याय और समानता का प्रतीक माना जाता था, वहीं पर एक ब्राह्मण के बेटे की इस प्रकार से मृत्यु होना सही नहीं है। 

"शोक से ब्राह्मण हुआ निःशब्द, घट गये ज्यों आयु के सब अब्द" यहाँ ब्राह्मण वर्ग का मौन रहना और उसकी आयु का घटना यह दर्शाता है कि समाज के संरक्षक और मार्गदर्शक वर्ग भी इस अन्याय के कारण हतप्रभ और लज्जित हैं। नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका है।

"प्रजा पर यदि गिरे कोई गाज, ’दोष राजा का’, उठी आवाज" 

कवि कह रहे है कि ब्राह्मण उलाहना देते हुए राम को लक्ष्य करके कह रहा है कि जब प्रजा पर कोई विपत्ति या मुसीबत आती है तो इसमें राजा का ही दोष होता है। क्योंकि राजा पर ही प्रजा की सुरक्षा और पालन पोषण का भार होता है। यहां पर कवि ने सामाजिक जागरूकता को दर्शाया है। प्रजा यह समझने लगी है कि शासक की नीतियों और निर्णयों का प्रभाव समाज पर पड़ता है। रामराज्य में हुए अन्याय का दोष अब राम पर ही मढ़ा जा रहा है।

"जगे पुरजन, लगा होने भोर, मच गया चारों तरफ यह शोर"  ब्राह्मण की करुण पुकार एवं उलाहना सुनकर सारे नगरवासी जागने लगते हैं तथा चारों ओर ये बातें फैल जाती है।यहाँ जनचेतना के जागरण का संकेत है। अन्याय के प्रति लोगों में असंतोष और आक्रोश पनप रहा है। रामराज्य की आदर्श छवि खंडित हो रही है।

"राम–राज नहीं रहा अकलंक, इस कमल में भी सना है पंक" रामराज्य, जिसे निष्कलंक और आदर्श माना जाता था, अब उसमें भी दोष उत्पन्न हो गए हैं। 'कमल में पंक' का अर्थ है कि रामराज्य की निर्मलता और शुद्धता अब कलुषित हो गई है।

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