खामोश नज़रों से ज़िन्दगी को देखा
ज़िन्दगी खामोशी से बीतती गयी
खामोशी का एहसास विराने में हुआ तो
खयाल आया क्यों बीत रही है खामोशी में ज़िन्दगी
महफिल का शोर ज़िन्दगी में लाके देखा
शोर मचता गया, मचता गया
दिल की आवाज़ भी न सुनायी दी तो
खयाल आया क्यों महफिल में गयी ज़िन्दगी
मन करता गया वही जो चाहा उसने
ज़िन्दगी चलती रही मन की राहों पर
मन चंचल हुआ, राह में मुश्किले हुई तो
खयाल आया क्यों मन के जंजाल में फंसी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी चलती जाती है अपने ही अंदाज़ में
ज़िन्दगी को जीने वाला जीता है अपने अंदाज़ में
ज़िन्दगी नहीं गुलाम किसी की, है मालिक वह
ज़िन्दगी प्यार, ज़िन्दगी सच्चाई,ज़िन्दगी तो बस है ज़िन्दगी।
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