हिंदी कहानियां

 दो चेहरे

मीरा और सैंडी की शादी को कुछ साल हो चुके थे। वे बैंगलोर में एक पॉश इलाके में रहते थे। मीरा एक स्कूल में शिक्षिका थी, वहीं सैंडी एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर काम करता था। हाल-फिलहाल ही उसकी तरक्की हुई थी। देखने से ये दोनों ही अच्छी-खासी ज़िंदगी जीने वाले लगते थे। बाहर से सब कुछ ही बहुत बढ़िया और शानदार लगता था। बाहर की दुनिया के लिए, सैंडी एक आदर्श पति था। वह सामाजिक समारोहों में मीरा का हाथ थामे कहता, "मेरी मीरा ने घर को स्वर्ग बना दिया है, यह सब इसी की मेहनत है।" लोग मीरा को भाग्यशाली मानते थे।

मगर घर की चारदीवारी के भीतर, सैंडी का मुखौटा उतर जाता। सैंडी का चिड़चिड़ा स्वभाव सुबह की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाता। चाय की मेज पर छोटी-सी बात पर भी वह गुस्से से चिल्लाता। मीरा स्कूल जाने के लिए तैयार होते-होते सैंडी की चाय के साथ नाश्ता रख देती थी, लेकिन सैंडी किसी-न-किसी तरह उसमें कमी निकालता। कभी नाश्ता पसंद न आना, तो कभी चाय ठंडी हो जाना, या फिर केवल दो-तीन मिनट की देरी में भी वह चिल्लाता। मीरा जो कि रोज़ रात घर और रसोई समेट कर सोने आती तो 12 बज जाते थे और सुबह 6 बजे ही उठकर अगले दिन की तैयारियों में लग जाती थी। अधूरी नींद और थकावट में भी वह चुपचाप काम करती थी। क्योंकि मीरा जानती थी कि सैंडी रोज़ ही ऐसा करता है, लेकिन कभी-कभी मीरा अगर थकान से चूर होकर कहती कि उसने भी पूरे दिन काम किया है, तो सैंडी तिरस्कार से होंठ सिकोड़ता, "हाँ, मुझे तो तुम स्वर्ग में लेकर आ गई हो! तुम्हारी महान सेवाओं के लिए मुझे तुम्हारा ऋण चुकाना चाहिए, है न?"

उसका हर शब्द मीरा के आत्मविश्वास पर एक छोटा-सा वार होता था। तब मीरा दुख से केवल चुपचाप आँसू बहाकर रह जाती। वह जानती थी कि पलट कर दोबारा कहेगी तो सैंडी मीरा को स्कूल ड्रॉप करते समय रास्ते पर ही या फिर स्कूल के गेट के सामने ही उस पर चिल्ला देगा ताकि स्कूल में उसके स्टूडेंट्स और सहकर्मी भी सुन सकें। वह ऐसा जान-बूझकर करता था।

एक शाम, सैंडी को किसी पार्टी में जाना था। मीरा ने सैंडी की पसंदीदा कमीज़ प्रेस (इस्त्री) करके रखी, लेकिन एक कॉलर पर हल्की-सी सिलवट रह गई। सैंडी ने कमीज़ को लापरवाही से उठाया, सिलवट देखी, और गुस्से से ज़मीन पर फेंक दिया। "देखो! तुमसे एक छोटा-सा काम भी ठीक से नहीं होता। तुम किसी काम को दिल से करती ही नहीं हो," वह दहाड़ा। जब मीरा ने चुपचाप कमीज़ उठाई, तो उसने फुसफुसाते हुए कहा, "रहने दो। ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नहीं है। मुझे पता है तुम कितनी परवाह करती हो।" मीरा ने इस बात को अनसुना कर दिया और सैंडी की कमीज़ फिर से इस्त्री कर उसे दी। जब वह पार्टी के लिए ख़ुद भी तैयार होती है, तभी उसे ऐसा ख़याल आता है कि अगर वह पार्टी में न ही जाए तो कितना अच्छा हो। लेकिन वह जानती है कि चाहे कुछ भी हो सैंडी कुछ-न-कुछ कहेगा ज़रूर। चाहे तो साधारण कपड़े पहने तो कहेगा कि मीरा को उसकी इज्जत की फ़िक्र नहीं है, अगर अच्छे कपड़े पहनेगी तो कहेगा सिर्फ़ अपनी फ़िक्र है, और न जाए तो कहेगा कि वह अपनी बचकानी हरकत से उसका आकर्षण पाना चाहती है। और अगर जाने के लिए अपनी तरफ से उद्योग दिखाए तो कहेगा कि वह किसी भी जगह उसके साथ जाने लायक ही नहीं है फिर भी लेकर जा रहा है। अतः, मीरा चुपचाप यंत्रवत् सी तैयार होकर सैंडी के साथ चुपचाप जाती है, लेकिन मन में डर सा लगा ही रहता है।

मीरा को सबसे अधिक निराशा तब होती, जब उनके बीच कोई अंतरंग पल गुज़रता। उस क्षणिक नज़दीकी के बाद, सैंडी तुरंत एक 'बेतूकी' बात उठा देता। एक बार ऐसे ही पल के बाद, सैंडी ने अचानक रसोई की ओर देखते हुए कहा, "क्या माँ ने आज काम वाली से झाड़ू लगवाया था? लगता है तुम तो अपनी नई दुनिया में हो, तुम्हें माँ के किसी काम की फ़िक्र ही नहीं है।" इस तरह वह मीरा को अपराधबोध में धकेल देता। मीरा ने कहा कि काम वाली को तो रखा ही इसलिए है कि वह घरेलू काम करे। फिर भी सैंडी कहता है कि यह सारा काम मीरा का था और काम वाली रखना सिर्फ़ मीरा के नख़रे हैं क्योंकि मात्र कुछ चिल्लर कमाती है फिर भी कमाई की धौंस जमा रही है। मीरा को समझ में नहीं आता कि वह करे तो करे क्या? क्योंकि काम वाली तो सिर्फ़ सुबह ही उसकी मदद करती है और बाक़ी सारा काम मीरा अकेले ही स्कूल जाने से पहले करके जाती है या फिर वापस आकर करती है। स्कूल और घर के दोनों काम अकेले मीरा को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से थका देते थे। उस पर से सैंडी के ताने आग में घी का काम करते। मीरा कई बार इस बात को समझ चुकी थी और अपनी सास तथा ससुर से भी बात कर चुकी थी। यहाँ तक कि साहस कर उसने सैंडी से भी कहा था। लेकिन नतीजा कुछ नहीं हुआ, बल्कि उल्टे मीरा को सैंडी के हाथ से चाँटा भी पड़ा।

यही सिलसिला चलता रहा। एक बार जब सास ने प्यार से मीरा को उसके जन्मदिन पर तोहफ़ा दिया, तो सैंडी ने तुरंत माहौल को ज़हरीला बना दिया। "देखो! सिर्फ़ मेरी माँ ही हैं जो तुम्हें इतना प्यार देती हैं, जबकि तुम्हें इसकी कोई क़द्र नहीं है," उसने ताना मारा, "तुम्हारे घर वालों ने कभी किसी की इज़्ज़त करना सीखा ही नहीं। उन्होंने तुम्हें कुछ 'सिखाया' ही नहीं है।" मीरा ने कहा कि तुम मेरे साथ मायके चलो मेरे माता-पिता को भी तुम्हारे लिए कुछ करने दो तो सैंडी झिड़कते हुए कहता है कि "रहने दो रहने दो जानता हूँ कितना करते हैं और क्या करते हैं। हूँह! मुझे जाकर वहाँ उबले चने खाकर गुज़ारा नहीं करना तुम जैसे भिखारी लेबरर्स की तरह..." मीरा अपने ही जन्मदिन पर अपने माता-पिता के लिए कहे गए अपमानजनक बातों को सुनकर आँसू बहाकर रह गई। वह जानती थी कि प्रतिवाद करने पर उसे सैंडी थप्पड़ न मार दे। उसकी बेइज्जती करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ता था।

मीरा को कहानियाँ लिखने का बहुत शौक था। वह अक्सर अपने ख़ाली समय में कहानी लिखा करती थी। उसके स्कूल के एक वरिष्ठ सहकर्मी ने मीरा को प्रेरित कर एक राष्ट्रीय स्तर की कहानी प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा। मीरा ने उसमें भाग तो ले लिया। देवयोग से वह उस कहानी प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रही, लेकिन फिर भी यह मीरा के लिए बहुत बड़ी ख़ुशी की बात थी। उसने सोचा कि यह ख़ुशी वह सब से बाँटेगी। अपने माता-पिता के साथ-साथ उसने यह बात सैंडी को भी बताई, लेकिन सैंडी ने जान-बूझकर कहा, "क्या ज़रूरत है इतनी उड़ने की? यह सब बचकाना है। तुम हर छोटी चीज़ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती हो। एक तो सेकंड आई हो और अपने आप को बड़ी साहित्यकार मानने लगी हो। फ़ालतू के ये सब किस्से कहानी छोड़ो और अपनी नौकरी पर ध्यान दो। दो पैसे आते हैं उससे। तुम्हारी ये बकवास कहानी हमें रोटी नहीं देगी।" मीरा बहुत दुखी हो जाती है। वह सैंडी को कहती है कि वह उसे ऐसी बातें क्यों कहता है? वह दुखी करने वाली और अपमानित करने वाली बातें क्यों कहता है? क्या वह उससे प्यार नहीं करता? तब सैंडी कहता है "तुम तो प्यार के काबिल ही नहीं हो। तुम बस स्वार्थी हो।" जब मीरा इस अन्याय पर गुस्सा दिखाती है, तो सैंडी गुस्से से आग-बबूला होकर उसे देखता, और एक पल में उसे 'मेंटल' कहकर कमरे से निकल जाता।

मीरा पढ़ी-लिखी और तार्किक थी, लेकिन सैंडी उसे लगातार 'गँवार' कहकर उसका आत्मविश्वास तोड़ता था।

इसी बीच दोनों की शादी की सालगिरह आई। परिवार के दबाव में सैंडी ने मीरा को घुमाने ले चलने का प्रस्ताव दिया। मीरा को लगा, शायद यह बदलाव की शुरुआत है। वे शहर से बाहर घूमने गए। यात्रा अच्छी रही, लेकिन घर लौटते ही सैंडी का भयानक गुस्सा फूट पड़ा। "जानती हो कितना ख़र्चा हुआ? और मुझे कितनी तकलीफ़ हुई? तुम्हारे लिए मुझे यह सब करना पड़ता है," उसने चिल्लाकर, एहसान जताते हुए कहा। फिर वह गरजते हुए मीरा से चाय के लिए पूछता है, ताकि वह घूमने ले जाने के 'एहसान' के अपराधबोध में तुरंत डरकर घर के सारे काम करने लगे। मीरा आख़िर वही करती है जो सैंडी चाहता था। लेकिन मीरा अब यह सब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसके मन में सैंडी के प्रति प्यार और ख़ुद के लिए सैंडी से प्यार पाने की उम्मीद टूट चुकी थी।

समय के साथ, मीरा की आँखों से सैंडी का तिलिस्म टूट गया। उसने समझा कि यह प्यार नहीं, शोषण है। वह अपनी ख़ुशी के छोटे-छोटे पल सैंडी से छिपाकर जीने लगी। उसने सैंडी की चालाकियों को अब युक्तिपूर्वक सँभालना शुरू किया। जब वह ताना मारता, तो मीरा शांत रहती, कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं देती। वह घर के काम भी तेज़ी से निपटाती। सैंडी जब तक घर पर नहीं रहता वह सुकून से रहती। और अपने मन को शांत कर ख़ुद को सकारात्मक विचार प्रदान करती।

यह प्रतिरोध सैंडी को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने मीरा से साफ़ कहा, "मैं जानता हूँ तुम क्या कर रही हो। तुम अपनी हरकतों से दुनिया को मेरे ख़िलाफ़ करना चाहती हो।" उसका व्यवहार और अधिक कटु हो गया। लेकिन मीरा इसके लिए अब मन-ही-मन तैयार होने लगी थी।

आख़िरकार वह मौक़ा भी मीरा को मिला। एक महत्वपूर्ण पारिवारिक समारोह में, सैंडी हमेशा की तरह, सबके सामने 'आदर्श पति' का नाटक कर रहा था। उसने मीरा का हाथ पकड़कर कहा, "मीरा कितनी प्यारी है, हमेशा मेरे परिवार के बारे में ही सोचती है।" फिर उसने हँसते हुए, एक छोटा, अपमानजनक मज़ाक जोड़ा जो केवल घर की बात थी।

बस! मीरा का सब्र टूट गया। उसने सैंडी की आँखों में देखा और वहीं, सबके सामने, शांत लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा,

"सैंडी, आप सबके सामने मेरी इतनी क़द्र दिखाते हैं, यह अच्छा है। लेकिन घर के अंदर की सच्चाई भी ज़रूरी है। अगर आप मेरी इतनी ही क़द्र करते, तो शायद मुझे बार-बार 'गँवार' नहीं कहते, और मेरे माँ-बाप को यह दोष नहीं देते कि उन्होंने मुझे कुछ सिखाया नहीं, न ही उनका अपमान करते। और मुझे 'मेंटल' कहकर तो आप मेरी समस्या का समाधान बिलकुल नहीं करते। न ही आप घर और बाहर अपने दो चेहरे लेकर घूमते। यह आपके घर वाले अच्छे से जानते हैं। लेकिन वे भी चुप हैं, पता नहीं क्यों? उन्हें यह समझ में आता क्यों नहीं कि उनका बेटा अपनी पत्नी की मानसिक पीड़ा दे-देकर उसकी ज़िंदगी ख़राब कर चुका है।"

पूरा हॉल सन्नाटे में डूब गया। सैंडी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसका मुखौटा, जो बरसों से लोगों को धोखा दे रहा था, एक झटके में नीचे गिर गया।

मीरा ने आख़िरकार ख़ुद को उस ज़हरीले बंधन से मुक्त करने की ओर पहला, साहसी कदम बढ़ा दिया था। उसने दुनिया के सामने सैंडी का वास्तविक 'दूसरा चेहरा' दिखाकर, अपने आत्म-सम्मान की ओर बढ़ने का रास्ता चुना। अगले कुछ दिन घर में इस बात पर बहुत झगड़े हुए और मीरा के माता-पिता को भी बुलाया गया। लेकिन मीरा इस बार पूरी तैयारी के साथ थी। उसने सैंडी से तलाक़ लेने की सोच ली थी।


डॉ मधुछन्दा चक्रवर्ती 

बंगलुरू

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