प्रिय प्रवास हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महा काव्य है जिसके रचैता अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी है। इसका मुख्य विषय भगवान् कृष्ण का गोकुल को छोड़कर मथुरा चले जाने पर आधारित है।
इसके प्रथम सर्ग का सारांश (१-१५) कुछ इस प्रकार है।रविवार, 17 दिसंबर 2023
प्रिय प्रवास प्रथम सर्ग व्याख्या
मंगलवार, 12 सितंबर 2023
भारतीय काव्यशास्त्र -- काव्य का अर्थ एवं परिचय Part-2
काव्यं लोकोत्तर निपुणं कवि-कर्म। -- काव्य प्रकाशः मम्मट, प्रथमोल्लास पृ.सं72
विस्तार
लोकोत्तर :- संसार से अलग, संसारिक ज्ञान से भिन्न। लोकोत्तर अवस्था वह अवस्था है जिसमें संसार का विस्मरण हो जाता है और जो भी हमारी कल्पना होती वह संसारिक नहीं होती है। हमें संसार का ज्ञान नहीं रहता है। कविता हमारी चेतना को लोकोत्तर चेतना से जोड़ती है। कविता हमें लोकोत्तर अनुभूति कराती है। जो कविता हमें लोकोत्तर चेतना से जोड़ती है उसे हम काव्य कहते है।
लोकोत्तर निपुणं :- इसका अर्थ है जिस कवि कर्म में हमारी चेतना को लोकोत्तर चेतना से जोड़ने की क्षमता हो उसे हम लोकोत्तर निपुणं कहते है। कवि दक्ष होते है इसलिए वे हमारे चेतना को लोकोत्तर में पहुँचा देते है और उसी दक्षता को हम लोकोत्तर निपुणं कहते है। जो कर्म हमारे भीतर की भावना, सौन्दर्य अंतर-दृष्टि को जगा दे उसे लोकोत्तर निपुणं कहते है।
काव्य कवि के द्वारा निर्मित वह रचना है जिसमें कवि अपने अनुभव, सौन्दर्य से बाह्य चेतना से हमें लोकोत्तर चेतना में पहुँचा देती है। लोकोत्तर चेतना बाहरी और आन्तरिक चेतना और सूक्षम अनुभव से जुड़ी होती है।
अपारे काव्य-संसारे कविरेव प्रजापतिः।
अर्थात् कवि रूपी असीम संसार में कवि ही ब्रह्मा होता है। रचनाकार होता है कवि। कवि के लिए संसार का कोई भी विषय काव्य का विषय हो सकता है। कवि किसी भी वस्तु को कोई भी रूप प्रदान कर सकता है। "जहाँ न जाय रवि, वहाँ जाय कवि।" कवि के संसार की कोई सीमा नहीं है।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः।
अर्थात् कवि मनीषी है, ज्ञानी है। मनीषा वह शक्ति है जो किसी वस्तु के मूल रूप को देख सकती है। मनीषा आंतरिक चेतना, आंतरिक ज्ञान है। अर्थात् कवि के पास आंतरिक चेतना और ज्ञान है। कवि के पास मन की आत्मा की आँखे है जिससे वह किसी वस्तु के बाहरी और आंतरिक स्वरूप को भी देख सकता है। कवि परिभू होता है। परिभू शब्द का अर्थ है जिसकी अनुभूति का क्षेत्र असीम हो वह संसार के किसी भी वस्तु को अपने अनुभव के क्षेत्र में ला सकता है। कवि की परीधी में पूरा संसार सिमट जाता है। कवि स्वयंभू है अर्थात् कवि स्वयं को कही भी प्रकट कर सकता है बिना किसी शक्ति के अर्थात् स्वयं प्रकट होना। जो अपने अनुभव किसी दूसरे पर निर्भर रहकर नहीं प्रकट करता है। कवि अपने अनुभव के लिए स्वयं ही कारण है। वैदिक साहित्य में कवि को द्रष्टा और ऋषि भी कहा गया है एवं एक माना गया है।
सहितस्य भावः साहित्यम्। -- आचार्य विश्वनाथ साहित्य दर्पण
सहित की भावना से पूर्ण, चेतना, विचार और अनुभव से युक्त रचना ही साहित्य अथवा काव्य है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार हित से पूर्ण चेतना, विचार और अनुभव ही साहित्य है। काव्य से मनुष्य की चेतना और मन विशाल रूप धारण कर सकती है। काव्य से मनुष्य के मन की संकीर्णता दूर हो जाती है। काव्य से मनुष्य का कल्याण होता है। अर्थात् उपरोक्त श्लोक का अर्थ है जो रचना कल्याण के भाव से पूर्ण हो वह काव्य है।
शब्दार्थों सहितं काव्यम्
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार जो रचना सुन्दर शब्द एवं सुन्दर शब्द के अर्थ के साथ हो वह काव्य है। इसलिए शब्द को काव्य का शरीर और अर्थ का आत्मा कहा गया है। आचार्य विश्वनाथ कहते है कि काव्य के लिए सुन्दर शब्द, अलंकार, रस, भावना, कला और अर्थ इन सभी तत्वों की आवश्यकता होती है।
वाक्यं रसात्मकं काव्यम्। -- आचार्य विश्वनाथ साहित्य दर्पण
अर्थात् रसात्मक कथन ही काव्य है। रसात्मक कथन का अर्थ होता है कि हम किसी दूसरे के सुख-दुख की अनुभूति स्वयं में कर सके और प्रत्येक वस्तु में सजीवता देख सके और वही अनुभूति और सजीवता का वर्णन कर सके, यही रसात्मक कथन कहलाता है।
जैसे (1) शुष्कं काष्ठं तिष्ठति अग्रे।
(2) अग्रे विलपति शुष्कं काष्ठम्।
वैसा कथन जिसमें रचनाकार की संवेदना, सौन्दर्य भाव बोलता है उसे रसात्मक कथन ही काव्य है। यहाँ पर आचार्य विश्वनाथ ने रस को काव्य का प्रमुख लक्षण बताया है। उनके अनुसार रस काव्य की आत्मा है।
काव्यं गाह्यमलंकारात् सौन्दर्यमलंकार। -- वामनः
आचार्य वामन के अनुसार काव्य अलंकार के कारण ग्रहण करने योग्य होता है क्योंकि अलंकार सुन्दर होते है। जिस शब्द से कथन में चमत्कार उत्पन्न हो वह अलंकार है। अलंकार से युक्त सौन्दर्य वाला कथन ही काव्य है।
तद्दोषौं शब्दार्थो सगुणावमलंकृती पुनः क्वापि। -- मम्मट
दोष, शब्द, अर्थ, गुण और अलंकार से युक्त रचना काव्य है।
निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुणो भूषिता
सालंकार रसानेका वृर्त्ति काव्यनाम भाक्। -- जयदेव
जो रचना निर्दोष हो, रचना में काव्य के लक्षण हो, रीति से विभूषित हो, अलंकार से युक्त हो, रसो से भरी पड़ी हो एवं जिसमें वृत्ति हो ऐसे गुणों वाली रचना को काव्य कहते है।
रमणीयार्थ प्रतिपादकः काव्यम्। -- मम्मट
जिस कथन में सौन्दर्य और अलंकार हो उसे काव्य कहते है।
शनिवार, 26 अगस्त 2023
भारतीय काव्य शास्त्र-- काव्य का अर्थ एवं परिचय Part -1
काव्य -- पहला भाग है पद्यात्मक जिसमें काव्य, महाकाव्य, खण्डकाव्य, प्रबन्ध काव्य, कविता आते हैं।
दूसरा भाग है गद्यात्मक जिसमें निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी आदि आते हैं।
Note-- प्राचीन काल में जो भी शास्त्र लिखे जाते थे या लिखे गये हैं वे सब पद्यात्मक रूप में ही लिखे गये थे। वर्तमान समय में गद्यात्मक शैली में लिखा जाता है।
काव्य का उद्देश्य :- भारतीय आचार्यों की दृष्टि में काव्य का उद्देश्य है आनंद। किसी भी भाषा में जितने शब्द है उन सबके अलग-अलग अर्थ होते हैं। आनंद का भी एक अर्थ है परन्तु वह भी एक नाम के रूप में। वह है सुख। 'सु' का सुगम तथा 'ख' गमन या गति करना। अर्थात् सुगम से गति करना। प्रत्येक व्यक्ति का मन कुछ चाहता है। यदि व्यक्ति के मन के अनुकूल सुगमता से कुछ मिलता जाय तो वह सुख होता है। उल्लास सुख से मिलता है। हर्ष मन से निकलता है। प्रसन्नता मुख से निकलती है। यह सभी तथ्य हमारी बाहरी इन्द्रियाँ है। आत्मा की अनुभूति को आनंद कहते हैं। आत्मा का सम्बन्ध बाहरी दुनियाँ से नहीं होता है। आनंद अंदर-ही-अंदर महसूस किया जाता है। जो व्यक्त न किया जा सके परन्तु अंदर-ही-अंदर अनुभव की जा सके, वह आनंद कहलाता है। आनंद की प्राप्ति तीन रूपों में होती है। दृश्य(देखने का विषय), श्रव्य(सुनने का विषय), मिश्रित(पठ्य, दृश्य, श्रव्य का विषय)।
काव्य के रूप :- भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के तीन रूप है। दृश्य काव्य, श्रव्य काव्य तथा मिश्रित काव्य। इन्हीं तीनों रूपों से आनंद की प्राप्ति होती है।
काव्य को गद्य और पद्य के सम्मुख रखने से समझा जा सकता है। दोनों की अभिव्यक्ति का माध्यम शब्द से है अथवा शब्द समूह या वाक्य से है। परन्तु दोनों में शब्द की रचना और व्यवस्था अलग-अलग प्रकार से है। (कर्ता-कर्म-क्रिया) शब्दों का जो संयोजन होता है उसे रूपात्मक भाषा कहते है। व्याकरण के अनुसार वाक्य में जो शब्दों का जो गठन होता है उसे व्याकरण के अनुसार रूपात्मक भाषा कहते है। Formal Language or the formal structure of language यदि कर्ता, कर्म, क्रिया या अन्य अपने निश्चित स्थान पर न हो तो उसे विरूपात्मक भाषा कहते हैं। काव्य में कविता की भाषा विरूपात्मक होती है। यही गद्य और पद्य का पहला अंतर है। जैसे
वह आता
दो टूक कलेजे को करता
पछताता पथ पर आता
इसमें वाक्य संगठन के सिद्धांतो का पालन नहीं हुआ है। यदि सिद्धांत के अनुसार लिखा जाता तो कुछ इस प्रकार लिखा जाता -- वह कलेजे को दो टूक करता हुआ तथा पछताता हुआ पथ पर आता है। अर्थात् कविता में यदि वाक्य संगठन के निर्धारित मानदण्ड तोड़ने के बावजूद भी अगर अर्थ स्पष्ट हो और अंतर न पड़े अर्थ में तो वह पद्यात्मक भाषा कहलाती है और वही काव्य कहलाता है। काव्य को समझने के लिए गद्य का समझना आवश्यक है। गद्य का जो स्वरूप है उस स्वरूप से ठीक उलटा काव्य होता है। पद्य की भाषा में वाक्य के निर्माण की पद्धति व्याकरण के अनुसार नहीं होती है। कविता में भाव तत्व प्रधान होता है। भावना की स्थिति में व्यवस्था का ध्यान नहीं रहता। कवि इस कारण कविता के रूप में अपनी भावना प्रकट करता है। भावना का आवेग जब मनुष्य पर चढ़ता है तब वह व्यवस्था का ध्यान नहीं रखता, क्रम का ध्यान नहीं रखता, वह हर पल यही चेष्टा करता है कि कैसे वह अपनी भावनाओं को प्रकट कर सके। गद्य और पद्य में भाषा की जो व्यवस्था है विशेषतः वाक्य का उसमें अंतर है। गद्य में वर्णन होता है और पद्य में चित्रण। किसी वस्तु अथवा विषय का स्थूल पद्धति में परिचय देना वर्णन कहलाता है। जहाँ एक-एक वस्तु या विषय का परिचय न देकर चित्र प्रस्तुत किया जाता है। चित्रण में जहाँ कुछ ही शब्दों में सारी बाते भीतर की हो चाहे बाहर की हो चित्र रूप में परिचय कराया जाता है। जहाँ किसी वस्तु की आंतरिक और बाह्य प्रकृति को कुछ ही शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है वह चित्रण कहलाता है। गद्य में वाष्पीकरण और पद्य में संघनन की क्रिया होती है। वाष्पीकरण और संघनन दोनों वैज्ञानिक शब्द है। गद्य में शब्दों का वाष्पीकरण हो जाता है और पद्य में शब्द एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।
निसि दिन बरसत नैन हमारे,
सदा रहत पावस रितु हम पे,
जब ते स्याम सिधारे।
गद्य में यद्यपि शब्द अलग-अलग होते है और अर्थ भी प्रकट करते है परन्तु चित्र उत्पन्न नहीं कर पाते है। काव्य में शब्दों के योजनाओं की सुन्दरता के फलस्वरूप किसी वस्तु का चित्र उत्पन्न कर देते हैं।
पद्य में भावों और विचारों का उत्कृष्ट केन्द्रण होता है। परीधि से भीतर की और आने को केन्द्रण कहते है। केन्द्र से बाहर की ओर जाने को विकेन्द्रण कहते है। अर्थात् पद्य में भावों और विचारों का उत्तम ढंग से केन्द्रण होताहै।
जैसे--
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
बुधवार, 23 अगस्त 2023
एकांत(Covid-19 A mother's isolation from her just born baby)
आज
तुलु बड़ी प्रसन्न थी। आखिर उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा हो चुका था। नौ साल
की लम्बी प्रतीक्षा, हस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर, मंदीरों के दर्शनों और
पूजा-पाठ एवं व्रत के फल के रूप में आखिर वह माँ बन ही गयी। गोद में नन्हीं प्यारी
सी गुड़िया। उसके नन्हें-नन्हें हाथ-पैर छाती पर लग रहे थे। नन्हें होटों से वह
दूध पी रही थी। तुलु बड़े प्यार से अपनी गुड़िया की तरफ देख रही थी। उसे होश ही
नहीं था कि कमरे में कोई और है या नहीं। बस एक-टक अपनी बच्ची की तरफ देखे जा रही
थी। डॉक्टर साहिबा आयी और तुलु को देखकर चली गयी। उन्होंने डिलिवरी के बाद
क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी है सबकुछ बता दिया। तुलु ने सुना और फिर अपनी बच्ची की
तरफ नज़र घुमा ली। उसके मस्तिष्क में उन बातों ने कितनी जगह पायी है ये तो भगवान
ही जाने?
मारे खुशी के जैसे उसका अपने-आप पर कोई नियंत्रण ही नहीं था।
उसने
अपने सभी परीचितों एवं रिश्तेदारों को खबर कर देने के लिए बाबन से कह दिया था। आज
हस्पताल से उसे और उसके बच्ची को छुट्टी मिलने वाली थी। वह बड़ी आतुरता के साथ
डिस्चार्ज सर्टिफिकेट का इंतज़ार कर रही थी। वैसे भी दो दिन देरी से ही उसे और
बच्ची को छुट्टी मिल रही थी। बच्ची को जन्म के बाद पीलिया हो गया था। अब बच्ची के
स्वस्थ होने की रिपोर्ट आ गयी है। दादाजी उसे लेने आए है। बाहर उनकी नयी लाल रंग
की आई-20 खड़ी है जिसे गुलाबी रंग के गुब्बारें से सजाया जाएगा। पीछे बच्चा होने
का पर्चा लगाया गया है। हस्पताल से निकलने से पहले वहाँ की बड़ी नर्स और संचालिका
महोदय उनसे मिलने आती हैं। वे लोग तुलु और बाबन के साथ बच्ची को लेकर तस्वीर
खिचवातीं हैं। आजकल ये एक प्रवृत्ति सी बन गयी है क्योंकि हस्पतालों में एक होड़
सी लगी रहती है कि किसने कितने परिवारों को सुखी किया है। तुलु ये बात समझती है और
तस्वीर खिचवाती है। वह तो सचमुच खुश है। अब तक जितने हस्तपतालों के चक्कर लगाये थे
उसने सभी ने उम्मीद कम बीमारियों की लिस्ट ही उसे ज्यादा दी थी। किसी ने उसकी असल
तकलीफों को ठीक से जांचने की कोशिश ही न की थी। खैर पुरानी बातों पर मिट्टी डालते
हुए वह बड़ी नर्स और संचालिका साहिबा से हँस-हँस बातें करते हुए विदा लेती है।
नन्हीं गुड़िया को उसके दादा जी गोद में लेकर सामने की सीट पर बैठ जाते हैं। तुलु
पीछे बैठती है। वह बार-बार अपने आस-पास से गुज़रती गाड़ियों और उनमें बैठे लोगों
की तरफ देखती है और मन-ही-मन कहती है कि देखो दुनिया वालों देखो! आखिर मैं भी माँ बन गयी हूँ। मेरे पास दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज है। वह मन-ही-मन इतरा रही है। हँस-हँस कर
गाड़ी की खिड़की से बाहर झाँक रही है। मगर ये सबकुछ उसके चेहरे पर लगे मास्क में
छुप गया है। उसके चेहरे पर मास्क लगा होने से उसके भाव नहीं दिख रहे हैं। कोविड का
समय है और ये नियम देश के सभी नागरिकों को ही मानना पड़ेगा। फिर नवजात के सामने तो
और भी अधिक सावधानियाँ बरतनी पड़ती ही है।
गाड़ी
अपार्टमेंट के गेट पर आकर रुकी। अपार्टमेंट की सीढ़ियों पर सास खड़ी थी। देवरानी
और उसका चार साल का बच्चा फुदक रहा था। वॉच मेन ने सबके हाथों में
इलेक्ट्रॉनिक थर्मामीटर लगाकर बुखार देखा। कोरोना काल के कारण यह देखना लाजीमी था।
सभी स्वस्थ पाए गए और अंदर जाने की अनुमति मिल गयी। तुलु की देवरानी से रहा नहीं
गया। ससुर जी बच्ची को लेकर गाड़ी से उतरते ही वह दौड़ी हुई आयी। हालांकि तुलु की
इच्छा थी कि वह अपनी बच्ची को लेकर घर में खुद प्रवेश करें लेकिन दूसरों की इच्छा
के आगे वह बस रह गयी। खुश तो वह तब भी थी। क्योंकि अब उसका अधूरा जीवन पूरा जो हो
गया था। उसके जीवन का खालीपन भर जो गया था।
घर
में प्रवेश करते ही सास और देवरानी ने उलू ध्वनि की। सिलेटी बंगाली परिवारों की यह
प्रथा है। प्रवास में रह कर भी लोग अपनी इन प्रथाओं को नहीं भूले हैं। तुलु बच्ची
के साथ अपने कमरे में गयी। जाते ही निर्देश हुआ कि सभी बारी-बारी अच्छे से नहा ले
तथा सभी के कपड़े वगैरह जल्द-से-जल्द धुलने के लिए जमा हो जाए। तुलु ने बच्ची के
कपड़े बदले। उसे नहलाया नहीं जा सकता था। देर जो हो गयी थी। किसी तरह एक छोटे से
कपड़े को भिगोकर उसने उसका मुख पोछा और दूसरा कपड़ा पहना कर उसे सास को दे दिया।
बाबन
ने उसे जल्दी नहा आने के लिए कहा। तुलु नहाने चली गयी। उसी दिन पड़ोस की पिया उससे
मिलने आयी। बच्ची के लिए कुछ नए कपड़े भी ले आयी। उसकी दोनों बेटियाँ चुन्नी और
गिन्नी भी इस छोटी सी गुड़िया को देखने आयी। सभी के चेहरे पर पट्टा बंधा था।
नन्हीं गुड़िया टुकुर-टुकुर अपनी आँखों से सभी को देख रही थी। उसकी समझ में कुछ
नहीं आ रहा था। मानव का यह रूप ही शायद उसके लिए स्वाभाविक था। उसने बस अपनी माँ
को ही पूरे चेहरे के साथ दो एक बार देखा था।
उसी
शाम तुलु के ससुर ने गले में ख़राश होने की बात की। अपने फेमिलि डॉक्टर से वह बात
कर रहे थे कि कोरोना की वैक्सीन लेने के बाद से ही उन्हें गले में खराश सी महसूस
होने लगी है। तुलु के कानों में ये बातें पड़ी तो उसका दिल अचानक ही किसी अनहोनी
की आशंका से भयभीत होने लगा था। वैसे भी माँ बने उसे सिर्फ हफ्ताभर ही तो हुआ था।
उसने अपने कई शुभचिंतकों से सुना था कि वैक्सीन लेने बाद भी कई लोगों को कोरोना हो
चुका है। तुलु के मन में भी यही आशंका घर कर गयी थी। उधर उसी रात अचानक उसके ससुर
खाने की मेज पर ही बेहोश से हो गए थे। बाबन और अशोक(छोटा भाई) अपने पिता की हालत
से बौखलाए से थे। वे तेज़ आवाज़ में एक-दूसरे से बातें भी कर रहे थे। पिताजी ने जो
अपने फेमिलि डॉक्टर से पूछकर दवा ली थी उसे उन्होंने सही मात्रा में नहीं लिया था।
तभी दवा का असर उलटा पड़ गया था। बाबन कमरे में आकर तुलु को बताता है कि वह बच्ची
का ख़याल रखे। वह पिताजी को लेकर अस्पताल जा रहा है।
अस्पताल
से खबर आने के इंतज़ार में सभी थे। इतने में ही तुलु के पास उसकी बहन का फोन आया
और तुलु अपने डर की बात अपनी बहन से कहने लगी। तुलु कहते-कहते रो रही थी। क्योंकि तुलु
को लग रहा था कि उसके ससुर को कोरोना ही हुआ है। उसने न्यूज़ में भी सुना था कि
कोरोना की वैक्सीन लेकर भी कई लोगों को कोरोना की बीमारी हुई है। किसी तरह वह शाम
का वक्त गुज़ारती है। इसी बीच बाबन घर आता है। वह तुलु को उसके कमरे में ही खाना
देता है। सिलेटी परिवारों की यह परम्परा है कि माँ बनने के बाद स्त्रियों को एक
महीना सुचिकाघर में ही रहना पड़ता है। हालांकि वर्तमान में अस्पताल में ही जचकी
होती है फिर भी ये नियम माना जाता है। तुलु ने बाबन से ससुर जी के बारे में पूछा
तो बाबन उसे बताता है कि उन्हें बहुत ज्यादा गेस हुआ है जिसकी वजह से वह बेहोश हो
गये थे। वे अगले दिन घर आ जाएंगे। तुलु खबर सुनकर थोड़ी आश्वस्थ होती है।
अगले
दिन ही बाबन और तुलु को अपनी नवजात बच्ची को लेकर अस्पताल जाना था। नवजात बच्ची को
जन्म के बाद ही पीलिया होने के कारण उसकी लगातार जांच की ज़रूरत थी ताकि ये
सुनिश्चित हो सके कि अभी बच्ची को ये बीमारी है या नहीं। डॉक्टर ने पहले ही हिदायत
दी थी कि उसे दुबारा जांच के लिए लेकर आना होगा। बाबन और तुलु हस्पताल पहुँचते
हैं। वहाँ बच्चों के डॉ को वे दिखाते हैं। डॉ एक मशीन के सहारे नन्हीं तुलु के
शरीर को देखते हैं तो पता चलता है कि उसका पीलिया अभी तक ठीक नहीं हुआ है। उसे
दुबारा से हस्पताल में भर्ती होना होगा। इन्फ़्रारेड लाइट वाले झूले में उसे
दुबारा रखा जाएगा ताकि बच्ची का शरीर पीलिया मुक्त हो। तुलु का दिल टूट जाता है।
वह बहुत दुखी होती है। अपनी बच्ची को लेकर वह घर में आराम से रहना चाहती थी। पर अब
उसे यही रहना होगा। दो दिन, तीन दिन जब तक बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ न हो जाए।
तुलु
अपनी बच्ची की हालत देख बार-बार ही रोये जा रही थी। बाबन ने दोनों को कमरे में
पहुँचाने के बाद खाना लेने चला गया था। खाना लेकर बाबन कमरे में आता है। इस बीच
नर्से बच्ची के लिए इन्फ़्रारेड़ लाइटों का प्रबंध करती हैं। वे बच्ची को झूले में
केवल डायपर, टोपी और रूई का चश्मा पहना कर लिटा देते है। बाकि बदन खुला ही छोड़
देती हैं ताकि लाइट का असर अच्छे से हो सके। बाबन जब उसे खाना देकर दूसरे काम पूरे
करने गया तो तुलु खाने को देखकर न जाने क्यों रो पड़ी? वह खाना मुह में रखते ही बार-बार रो पड़ती। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि
वह क्या करे? वह खाना अधूरा छोड़ देती है। इतने में बाबन उसे
बताने आता है कि वह घर जा रहा है ताकि तुलु और अपने कपड़े और बाकि ज़रूरी चीज़े ला
सके।
उसके जाते ही तुलु अपने पिता को फोन
लगाती है। उसके पिता को जब यह पता चलता है कि तो वे तुलु को डाँटते हैं कि इन सब
चीज़ों के लिए हस्पताल में जाने की क्या ज़रूरत थी? तब तुलु उन्हें सारी
बातें बताती है तो वे भी चिंतित हो जाते हैं। वही तुलु की छोटी बहन मितु भी उसे
धीरज धरने और अपनी नवजात बच्ची जो कि मात्र 20 दिन पहले जन्मी थी उसके भी पीलिया
मुक्त होने की बात बताकर तुलु की परेशानी कम करने की कोशिश करती है। वह बताती है
कि जन्म के बाद नवजात का पाचन तंत्र धीरे-धीरे विकसित होता है, बच्चा स्वयं अपनी
माँ से दूध पीकर पचाने की कोशिश करता है। ऐसे में पीलिया होना स्वाभाविक है
क्योंकि उसका लीवर अभी मजबूत नहीं हुआ है। तुलु इन बातों से थोड़ा बहुत आश्वस्थ
ज़रूर होती है मगर उसके मन के एक कोने में शंका बनी रहती है। इस बीत बाबन घर से
उसके लिए कपड़े और बाकि चीज़े ले आता है। वही नर्स भी आती है ताकि बच्ची को जगाने
का समय हो जाता है। उसे दूध पिलाने का समय हो जाता है। बच्ची कमरे में सबकी आवाज़
सुनकर जाग जाती है और रोने लगती है। बाबन उसे गोद में लेकर शांत करते हुए तुलु के
गोद में दे देता है। बच्ची शान्त हो जाती है। तुलु उसे दूध पिलाना शुरु करती है
मगर बच्ची माँ को टुकुर-टुकुर देखती है। तभी वहाँ आयी नर्स कहती है कि वह बच्ची को
दूध पिला देगी ताकि तुलु और बाबन को बच्ची को सही तरीके से दूध पिलाने और बाद में
डकार लगाने का तरीका सिखा सके। बाबन और तुलु दोनों नर्स की बात मान जाते हैं। तुलु
नर्स के निर्देशानुसार पम्प के जरिए बोतल में दूध निकालकर देती है । नर्स बड़े
प्यार और होशियारी से बच्ची को साथ बातें करते-करते दूध पिलाती है। फिर बच्ची को
अपने कन्धे पर रख कर थपकी देने लगती है। इससे बच्ची एक डकार लेती है। नर्स बताती
है कि बच्ची को बार-बार दूध पिलाने के बाद उसे डकार दिलवाना बहुत ज़रूरी है वरना
उसे उल्टी या फिर पेट दर्द होगा। इसके बाद वह चली जाती है। बाबन बच्ची को दुबारा
झूले पर सुला देता है। मगर बच्ची ठीक से नहीं सो पाती है। उसे दुबारा गोद में लेकर
थपकी देकर वह सुलाना चाहता था। वह चाहता था कि बच्ची ज्यादा-से-ज्यादा उस झूले पर
रहे ताकि इन्फ़्रारेड लाइट उसके शरीर पर पड़े ताकि वह पीलिया मुक्त हो सके। मगर
बच्ची नहीं सो पाती है। तब तुलु अपने मोबाइल फोन में एक सुन्दर सा गाना लगा देती
है। उस गाने को सुनते-सुनते बच्ची सो जाती है। तब बाबन उसे झूले पर सुलाकर बाहर
चला जाता है। तुलु कमरे में बच्ची की तरफ देखती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि
काश वह अपने पिता के घर होती तो कितना अच्छा था। वह खिड़की के बाहर हस्पताल के
किनारे लगे पेड़ों को देखती है और ऊपर आकाश की ओर देखने लगती है।
किसी प्रकार दो दिन बीतते हैं। बच्ची
की रक्त जाँच होती है और रिपोर्ट आती है कि वह पीलिया मुक्त हो चुकी है। कमरे में तुलु
और बाबन घर जाने की तैयारी में लगे होते हैं। वहाँ एक नर्स भी आती है जो कि तुलु
को समझाती है कि घर जाकर वह बच्ची को सुबह-सुबह तेल मालिश कर धूप में रख दिया करे।
इससे धूप की मदद से बच्ची की शारीरिक क्षमता बढ़ेगी और वह जल्दी ही स्वस्थ होगी। उसे
बार-बार दूध पिलाते समय थपकी देकर डकार लगवाया करे ताकि बच्ची को पेट दर्द या उलटी
ना हो, न ही सास की तकलीफ। तुलु सारे निर्देश ध्यान से सुन रही होती है। बाबन भी
सारी बातें ध्यान से सुन रहा होता है और तुलु को कहता रहता है – ध्यान से सुनो
क्या कह रही है। तुम पर तो कोई भरोसा नहीं है, तुम्हें कहा जाएगा एक और तुम करोगी
कुछ और। बाबन ऐसी बातें अक्सर ही तुलु को कहता रहता था। तुलु को भूल जाने की आदत
जो थी। वे लोग दोपहर को ही घर लौट आते हैं। बाबन घर आते ही कहता है कि वह हस्पताल
जा रहा है पिताजी को देखने। वे चार दिनों से वही थे। उनकी हालत काफी खराब थी। जिस
दिन से उनके गले में खराश थी उन्होंने डॉक्टर की दी हुई दवा तो ली थी मगर वे बेहोश
हो गए थे। पहले तो सबको लगा कि उन्हें दवा से गैस हो गया है। मगर डॉक्टर ने खून की
जाँच करवाने को कहा ताकि ये पता चल सके कि कही उन्हें खून की कमी वगैरह तो नहीं
हुई है। खून की जाँच में पता चलता है कि उनका ब्लड प्लेटलेट कम हो गया है। डॉक्टर
उन्हें तुरन्त हस्पताल में भर्ती करने को कहते हैं। उन्हें अंदेशा होता है कि कही बाबन
के पिता को डेंग्यु या मलेरिया न हो गया हो। उनकी जाँच हस्पताल में शुरु होती है।
मगर सारी जाँच की रिपोर्ट उनकी साफ आती है। अंत में डॉक्टर कोविड की जाँच का आदेश
देते हैं। बाबन जब शाम को अपने पिता से मिलने हस्पताल जाता है तो डॉक्टर साहब उसे
कमरे के बाहर बुलवाते है। बाबन को डॉक्टर के इस प्रकार बुलावा भेजने पर मन में
खकटा ज़रूर लगता है लेकिन वह उनसे मिलता है। जैसे ही डॉक्टर उसे बताते हैं कि उसके
पिता को कोविड है जिसकी वजह से उनके खून में ये कमी आ गयी थी तो बाबन के पैरों तले
की जमीन खिसक जाती है। वह समझ नहीं पाता है कि क्या करे? डॉक्टर उसे ढाढस बंधाते हुए कहते हैं कि ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत
नहीं है। यदि वे पौष्टिक आहार और सही दवाई लेंगे तो जल्दी ही ठीक हो जाएंगे। खून
में ब्लड प्लेटलेट की कमी के कारण वे ज्यादा कमज़ोर हुए हैं। उन्हें ज्यादा करके
पानीय पदार्थ लेने की ज़रूरत होगी। बाबन डॉक्टर से सलाह लेता है कि क्या उन्हें
हस्पताल में रहना होगा या घर पर ही ठीक होंगे। डॉक्टर बाबन को आश्वस्थ करते हुए
कहते हैं कि हस्पताल से कही जल्दी वे घर पर ही स्वस्थ होंगे।
बाबन अपने पिता को वापस घर लेकर चला
आता है। रास्ते में उसे तुलु उसे फोन करती है। बाबन उसे ये सारी बातें बताता है।
बाबन उससे कहता है कि क्योंकि वह इतने समय से पिताजी के साथ था सो वह अब कुछ दिन
अकेले रहेगा ताकि बच्ची तक किसी प्रकार का संक्रमण न पहुँचे। तुलु इस खबर को सुनते
ही भय के मारे कांपने लगती है। उसे जिस बात का अंदेशा था वहीं होता है। तुलु
घबराहट में अपने माता-पिता को फोन लगाती है और रोते-रोते सारी बातें कह देती है।
वे लोग उसे समझाते हुए कहते हैं कि वह इस प्रकार न घबराए। तुलु के पिता उसे समझाते
हैं कि जब तुलु का जन्म हुआ था तो उसके दादाजी मात्र सत्रह दिन बाद ही गुज़र गए
थे। तब उनके अंतिम संस्कार में तुलु के पिता को जाना पड़ा था। तुलु बहुत छोटी थी
इसलिए वह और उसकी माँ असम रायफल्स के कैम्पस के क्वार्टर में अकेले ही रहने पर
मजबूर थे। तब तुलु की माँ ने ही अकेले घर और तुलु दोनों को संभाला था। तुलु को
उसके पिता समझाते है कि कैसे उसकी माँ ने बहुत सारे कष्ट उठाते हुए सबकुछ किया था।
उस वक्त न तो इतनी सुविधाएँ थी न ही इतने आधुनिक तकनीकों वाले गेजेट्स जिससे की घर
का सारा काम आसानी आजकल हो जाता है। तुलु अपने पिता की बातें सुनकर आश्वस्थ होती
है। तब उसके पिता उससे कहते हैं कि बच्ची अभी छोटी है। वह जब सोयी रहेगी तब तू
जितना हो सके घर के काम संभाल लेना। तुलु हामी भरते हुए फोन रख देती है।
बाबन घर आता है और दूसरे कमरे में चला
जाता है। तुलु उसके आते ही कमरे में आते ही दरवाजे पर जाकर खड़ी हो जाती है। बाबन
से वह पूछने को होती है कि बाबन झल्ला उठता है। वह कहता है कि तुम यहाँ किस लिए
खड़ी हो। पता तो है कि कोविड का संक्रमण
किस प्रकार फैलता है। थोड़ी दूर जाकर खड़े होने की बात वह कहता है। तुलु बहुत
कमज़ोर और टूटा हुआ महसूस कर रही थी। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। वह बाबन के
झल्लाने से और दुखी होकर दूर खड़ी हो जाती है। इतने में बच्ची के रोने की आवाज़
आती है। वह बच्ची को दूध पिलाने वापस चली जाती है। बाबन तब तक किसी से फोन पर बात
करता है। फिर कमरे में आकर तुलु से कहता है कि उसने अपने पहचान के एक लैब वाले को
बुलाया है। घर में सभी लोगों की जाँच होगी। वह परसु आकर सभी के सैम्पल लेगा। तुलु
पूछती है कि क्या उसकी भी जाँच होगी क्योंकि उसका तो कुछ दिन पहले ही जाँच हुआ था।
तब नेकेटिव ही था। फिर वह तो सास-ससुर दोनों में से किसी के संपर्क में भी नहीं
रही है। बाबन उसे चिंता नहीं करने को कहता है और अपने झल्लाने पर उससे माफी भी
मांग लेता है। उस रात दोनों अलग-अलग कमरे में सोते हैं। तुलु के लिए वह रात बहुत
ही चुनौतिपूर्ण था। एक तो कटे हुए पेट का दर्द, उस पर से बच्ची को समय-समय पर
जगाकर दूध पिलाना तथा उसके गंदे कपड़े बदलना। बच्ची को सुलाना भी काफी मुश्किल था।
उस रात जब तुलु बच्ची को दूध पिलाकर सुलाती है तो बच्ची आधे घण्टे में ही जाग जाती
है और रोने लगती है। शायद उसे भी महसूस हो रहा था कि कुछ तो बुरा घटने वाला है। वह
बार-बार माँ के गोद में ही रहने के लिए रो रही थी। तुलु बहुत थकी हुई और परेशान
महसूस कर रही थी। वह बच्ची को गोद में लेकर दूध पिलाती है और सुलाने की बार-बार
कोशिश करती है। लेकिन बच्ची जैसे ही बिस्तर पर लेटती है तो रो उठती है। बाबन अपने
कमरे से बच्ची के रोने की आवाज सुनकर समझ जाता है कि तुलु उसे सुला नहीं पा रही
है। वह तब कमरे के बाहर आकर तुलु से कहता है कि वह उसे लेकर थोड़ा टहल ले। इससे
बच्ची सो जाएगी। बाबन की बात से तुलु बच्ची को लेकर कमरे में टहलती है और बच्ची सो
भी जाती है। लेकिन बिस्तर पर रखते ही वह उठ जाती है और रोने लगती है। उस रात जैसे
नींद और बच्ची के बीच में एक घमासान सा चलता है। तुलु पूरी रात उसे गोद में लेकर
और परिस्थिति को कोसते हुए गुज़ारती है। अगले दिन बाबन अपने परिचित लेब वाले को
बुलवाता है और सबकी बारी-बारी से जाँच के लिए नाक से बलगम का नमूना लेकर वह लैब
वाला अपनी सैम्पल बॉक्स में रख लेता है। वह बताता है कि दो दिन के अंदर ही जाँच की
रिपोर्ट आ जाएगी। मगर रिपोर्ट आने में लगभग तीन से चार दिन की देरी होती है। वह
वक्त कोविड के दूसरे खतरनाक दौर से गुज़र रहा था जिसके कारण ये देरी हो रही थी।
इधर तुलु अपने माता-पिता के द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करते हुए बच्ची की
देखभाल और घर का काम करने लगी थी। अबतक वह ठीक से संभली भी नहीं थी कि उसे एक बुरी
खबर मिलती है। बाबन को उसके मोबाइल फोन पर ही सबकी कोविड जाँच की रिपोर्ट मिल चुकी
होती है। शाम के वक्त वह सबको खबर देता है और एक-एक करके सबकी रिपोर्ट पढ़ता है।
वह अचानक दंग रह जाता है जब वह देखता है कि न केवल उसके पिता बल्कि उसकी माँ,
देवरानी और तुलु को भी कोविड है। केवल बाबन और उसका भाई ही कोविड निगेटिव है। तुलु
को जब इसका पता चलता है तो वह भी हैरान हो जाती है। उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ जाता
है और दिल की धड़कने डर के मारे जोर-जोर
से धड़कने लगती है।
बाबन अब असमंजस में पड़ जाता है कि वह क्या करें? उसे न तो बच्ची को संभालना आता था न ही वह अकेले घर ही संभाल सकता था। वह
जानता था कि कोविड पोसिटिव आने पर सभी को एकांतवास में चले जाना होगा। ऐसे में वह
अकेले क्या करेगा समझ नहीं पा रहा था। वह तब निर्णय लेता है कि वह हस्पताल में फोन
करके डॉक्टर की सलाह लेगा। वह हस्पताल में तुलु की गाईनी को फोन लगाता है। उनके
बात करने पर पता चलता है कि तुलु को बच्ची से अलग रहना होगा। हालांकि वह बच्ची को
अपना दूध पिला सकेगी लेकिन उसे कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना होगा। डॉक्टर ने
बाबन को कहा कि वह तुलु को एक दूसरे डॉक्टर को दिखा दे ताकि उसे कोई अच्छी दवा मिल
सके जिसके बलबूते पर वह बच्ची को स्तनपान करा सके। इधर तुलु बहुत दुखी थी। वह
बच्ची को गोद में लेकर उसे छाती से लगाकर प्यार करना चाहती थी मगर अब उसके मन में
भय भर चुका था। तभी उसने बाबन को कहा कि जल्दी से वह पूछे डॉक्टर से कि उसे तो
किसी प्रकार का भी कोई लक्षण नहीं है। न ही उसे सूंघने में कोई दिक्कत या खाते समय
जीभ में स्वाद का पता न चलना जैसी कोई भी दिक्कत नहीं है। सांस लेने में भी कोई
दिक्कत नहीं है तो क्या उसे सच में कोविड है? क्या उसकी जाँच
दुबारा हो सकती हैं? बाबन झल्ला उठता है लेकिन वह किसी
प्रकार अपने को वश में करता है। तब डॉक्टर उसे खून की जाँच का आदेश देती है। बाबन
उनकी बात मान लेता है। उसके बाद वह बच्चो के डॉक्टर से भी सलाह लेता है। सभी यही
सलाह देते हैं कि तुलु को बच्ची से दूर रहना होगा। जब भी वह बच्ची को दूध पिलायेगी
तो उसे साफ़ कपड़े और धुले हाथों से ही बच्ची को पकड़ना होगा। बाबन बच्ची की भी
जाँच के बारे में पूछता है तो डॉक्टर कहते हैं कि बच्ची की जाँच की आवश्यकता नहीं
है पर उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए उसे कुछ दवाईयाँ देनी होगी। बाबन सारी
बातें समझने के बाद तुलु के पास से बच्ची को ले जाने आता है।
तुलु उस वक्त बहुत दुखी और डरी हुई
थी। वह अपनी बच्ची को दूध पिला रही थी। बच्ची दूध पीते-पीते सो गयी थी। सो तुलु ने
उसे बाबन को सौंप दिया था। बाबन अपनी माँ और पिता से इस बारे में बात करता है। वे
लोग मिलकर पहले तो फैसला लेते हैं कि तुलु को बच्ची को अपना दूध पिलाने की जरूरत
नहीं है। उसे फॉर्म्यूला दे देने से होगा। पर तुलु ये सब सुन लेती है और कहती है
कि ऐसा नहीं होगा। डॉक्टर ने जब कहा है कि मैं उसे अपना दूध पिला सकती हूँ तो फिर
बच्ची को डब्बे के दूध की क्या ज़रूरत। वहाँ उस वक्त उन सबके साथ तुलु की बहस हो
जाती है। वह काफी दूखी मन से कहती है कि वह अपनी बेटी को डब्बे का दूध नहीं पिलाने
देगी। इतने में अचानक उसकी बच्ची रोकर उठ जाती है। तुलु तुरंत ही अपने कपड़े बदलने
और साफ होने के लिए बाथरूम में चली जाती है। बच्ची भूख के मारे ज़ोरो से रोए जा
रही थी। तुलु जल्दी-जल्दी कपड़े बदल कर आती है और बाबन से कहती है कि वह बच्ची को
लाकर दे। वह मुँह पर मास्क भी लगाए हुए थी। मगर बाबन उसकी अपेक्षा भड़क उठता है।
वह तुलु को बच्ची से दूर रहने के लिए कहता है। तुलु अपनी बच्ची का रोना बर्दाश्त
नहीं कर पा रही थी। वह बाबन से कहती है कि जब डॉक्टर ने उसे कहा है कि वह बच्ची को
दूध पिला सकती है तो फिर बाबन मना क्यों कर रहा है। बाबन उसकी एक भी नहीं सुनता
है। तब तुलु बाबन के पैरों पर पड़कर गिड़गिड़ती है। इधर बच्ची के रोने की आवाज़
तेज़ होती जाती है। अंत में बाबन झल्लाते हुए कहता है कि “ओफ!! जाकर कमरे में बैठो तो। नौटंकी बंद करो अपनी। ” तुलु इस बात को सुनने के बाद भी बच्ची के लिए गुहार लगाती रहती है। फिर
वह कहती है कि अगर वह पम्प से दूध निकाल कर बोतल में दे तो क्या वह बच्ची को पिला
देगा। इस पर भी बाबन पहले राज़ी नहीं होता है। तुलु उस वक्त इतनी दुखी हो जाती है
और रोने लगती है कि उसकी सर्जरी वाली जगह पर दर्द शुरु हो जाता है। वह तब भगवान
कृष्ण की बाल छवि जो कि दिवार पर टंगी होती है उनकी तरफ देख कर रोते-रोते मौन ही
प्रार्थना करने लगती है। वह मन-ही-मन कहती है कि अगर उन्होंने उसकी बच्ची की भूख
शान्त की तो वह अपना दूध उन्हें अर्पण कर देगी। उसके बाद जैसे भगवान ने उसकी
प्रार्थना सुन ली थी। थोड़ी ही देर में बाबन उसे पम्प और बोतल लाकर देता है और
झल्लाते हुए कहता है – “जल्दी करो। दूध भरकर दे दो।” तुलु बहुत खुशी खुशी अपना दूध बोतल में भरना शुरु करती है। फिर वह भगवान
को दिए कथन के अनुसार अपना दूध उनके चरणों के सामने रखते हुए कहती है कि वह उसे
नैवेद्य के रूप में ग्रहण करे और उसकी बच्ची को ये दूध प्रसाद रूप में मिले। फिर
क्या था। भगवान भी शायद एक माँ की पुकार को समझ गए थे। उन्होंने जरूर उसे ग्रहण
किया था। फिर वह दूध बाबन को थमाते हुए कहती है कि वह बच्ची को पिला दे। बाबन
बच्ची को दूध पिलाने चला जाता है। तुलु आहत तब भी थी क्योंकि वह बाबन के इतने बुरे
व्यवहार से बहुत दुखी थी। वह तब अपनी सास को फोन करती है और सारी बातें कहती है।
वह पूछती है कि क्या इसी तरह का व्यवहार उसे मिलना था। उसका क्या दोष यदि उसे भी
कोविड हो गया है तो? उधर से तुलु को उसकी सास समझाती है कि
इस समय गुस्सा करने का नहीं है। वह कहती हैं कि बाबन से बात करेंगी। उस रात किसी
प्रकार ये मामला ठंडा हो जाता है। बाबन इस बात के लिए तैयार हो जाता है कि तुलु
हरेक घंटे में बोतल में अपना दूध निकाल कर दे दिया करेगी और बाबन बच्ची को पिला
दिया करेगा।
अगली सुबह से ही बाबन की जद्दोजहद
शुरु हो जाती है। वह ऑफिस के काम के लिए अपने सिनियर से बात कर रहा होता है। तभी
वह अपने घर की हालत उनसे बताता है। उसके सिनियर अफ्सर उसे एक महीने की छुट्टी लेने
की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि जरूरत न पड़ने पर वे उसे किसी भी कॉल या मीटिंग
के लिए नहीं कहेंगे। बाबन इस बात से थोड़ा आश्वस्थ होता है। उसके बाद उसकी
दिनचर्या शुरु होती है। बच्ची मात्र कुछ दिनों की थी इसीलिए उसे हर घंटे दूध पिलाना
जरूरी था। उसके डायपर और कपड़े बदलना भी
जरूरी था। बाबन के लिए एक पुरुष होकर यह कर पाना मुश्किल था। मगर एक अनजानी शक्ति
ने उसे जैसे ताकत दे दी थी। वह अब दोहरी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हो गया था।
सिलेठी परिवार की एक प्रथा के अनुसार
जब घर में बच्चा होता है तो कुछ दिनों के लिए असुची का पालन करते हुए भगवान की
नित्य सेवा नहीं की जाती है। ये केवल ग्यारह दिनों तक पालन किया जाता है। बाबन को
ठाकुर जी की पूजा नहीं करनी पड़ी। वह सुबह किसी प्रकार अपने और तुलु के लिए चाय
बनाता था। चाय के साथ कुछ बिस्किट्स और मूरी(मुरमुरे) के साथ दोनों सुबह का नाश्ता
करते थे। तुलु को वह दूध और सागू भी देता था ताकि वह कमज़ोर न पड़े। बाबन को अपने
किए पर पछतावा था या नहीं यह तुलु को पता नहीं था लेकिन बाबन अपनी पिता और पति
होने की जिम्मेदारी निभा रहा था।