दारुन
दुगुन दुरजोधन तें अवरंग
भूषन
भनत जग राख्यो छल मढ़िकैं।
धरम
धरम, बल भीम, पैज अरजुन,
नकुल
अकिल, सहदेव तेज, चढ़िकैं।
साहि
के शिवाजी गाजी करयो दिल्ली माँहि,
चंड
पाँडवनह तें पुरुषारथ सु बढ़िकैं।
सूने
लाखभौन ते कढ़े वै पाँच राति मैं,
जु
धौस लाल चौकी ते अकेलो आयो कढ़िकै।
व्याख्या
– कवि भूषण
शिवाजी की राजनीतिक बुद्धि की प्रशंसा करते हुए कहते है कि ये औरंगजेब बिलकुल
दुर्योधन के समान अधर्मी है। उसने छल से ही सब कुछ अपने कब्जे में कर रखा है।
परन्तु शिवाजी उसे भी छलकर आज़ाद हो जाते हैं। क्योंकि शिवाजी का धर्म युधिष्ठिर
के समान है, बल भीम के समान, प्रतिज्ञा अर्जुन के समान, बुद्धि नकुल के समान तथा तेज
सहदेव के समान है। इन सबकी सम्मिलित शक्ति से ही शिवाजी ने दिल्ली में अपना कमाल
दिखा दिया। वे पाँच पांडव तो दुर्योधन के लाक्षागृह से रात को भाग निकले थे जब
वहाँ कोई नहीं था। लेकिन शिवाजी की विशेषता यह है कि वे दिन-दहाड़े इतने सारे
सैनिकों के बीच से ही अपना कौशल दिखाते हुए कैद से मुक्त हो गए। उन्होंने प्रतिदिन
गरीबों के मिठाई बाटने के बहाने अवसर पाकर एक दिन टोकरी में बैठ कर औरंगजेब के कैद
से मुक्त हो गए।
वेद
राखे विदित पुरान परसिद्ध राखे,
राम
नाम राख्यो अति रसना सुघर मैं।
हिन्दुन
की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन को,
काँधे
मैं जनेऊ राख्यो माला राखी गर मैं।
मीड़ि
राखे मुगल मरोड़ि राखे पातसाह,
बैरी
पीसि राखे बरदान राख्यो कर मैं।
राजन
की हद्द राखी तेग-बल सिवराज,
देव
राखे देवल स्वधर्म राख्यों घर मैं।
व्याख्या
– कवि भूषण ने
शिवाजी को धर्म-रक्षक वीर के रूप में चित्रित किया है। जब औरंगजेब सम्पूर्ण भारत
में देवस्थानों को नष्ट कर रहा था, वेद-पुराणों को जला रहा था, हिन्दुओं की चोटी
कटवा रहा था, ब्राह्मणों के जनेऊ उतरवा रहा था और उनकी मालाओं को तुड़वा रहा था,
तब शिवाजी महाराज ने ही मुगलों को मरोड़ कर और शत्रुओं को नष्ट कर सुप्रसिद्ध
वेद-पुराणों की रक्षा की, लोगों को राम नाम लेने की स्वतंत्रता प्रदान की,
हिन्दुओं की चोटी रखी, सिपाहियों को अपने यहाँ रखकर उनको रोटी दी, ब्राह्मणों के
कंधे पर जनेऊ, गले में माला रखी। देवस्थानों पर देवताओं की रक्षा की और स्वधर्म की
घर-घर में रक्षा की।
गढ़नेर,
गढ़-चांदा, भागनेर, बीजापुर,
नृपन
की नारी रोय, हाथन मलति हैं।
करनाट,
हबस, फिरंगह, बिलायत,
बलख,
रूम अरि-तिय छतियाँ दलति हैं।
भूषन
भनत साहि सिवराज, एते मान,
तब
धाक आगे चहुँ दिशा बबलति हैं।
तेरो
चमू चलिबे की चरचा चले तें,
चक्रवर्तिन
की चतुरंग चमू विचलति हैं।
व्याख्या
– कवि भूषण
शिवाजी के आतंक का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि गढ़नेर(नगरगढ़), चाँदागढ़, भागनेर(
गोलकुण्डा का भाग नगर) तथा बीजापुर के राजाओं की स्त्रियाँ हाथ मलन लग जाती है
रोने लग जाती हैं। वही कर्नाटक, हबशियों का देश, विदेशी राज्य, बलख(तुर्किस्तान का
एक नगर) तथा रूम तक के शत्रु राजाओं की स्त्रियाँ भी छाती पीटती रह जाती हैं।
शिवाजी की धाक सुनकर सभी दिशाये उबलने लग जाती हैं। यदि कही यह चर्चा सुनाई दे
जाती है कि शिवाजी की सेना आ रही है तो बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राटों की भी
चतुरंगिणी सेनाये तक विचलित हो जाती है।