रमानाथ उपन्यास का नायक है। उपन्यास के पुरूष-पात्रों में उसका प्रमुख स्थान है। उपन्यास की सभी घटनाओं का वह केन्द्र-बिन्दु है। उसके चरित्र के कारण ही उपन्यास का कथानक विकसित होता चलता है। रमानाथ दयानाथ का पुत्र है। दयानाथ पचास रुपये मासिक पर कचहरी में नौकर थे। पिता की आय कम होने के कारण रमानाथ को कॉलिज छोड़ना पड़ा। पिता ने उससे साफ कह दिया कि मैं तुम्हारी डिग्री के लिए सबको भूखा और नंगा नहीं रख सकता, पढ़ना चाहते हो तो अपने पुरूषार्थ से पढ़ो। किन्तु रमानाथ में इतनी प्रेरणा एवं लगन नहीं थी कि वह ऐसा कर सके। बल्कि वह बिलकुल इसके विपरित था। वह सारा दिन शतरंज खेलता, सैर-सपाटे करता और माँ और छोटे भाइयों पर रोब जमाता। दोस्तों की बदौलत उसके सारे शौक पूरे होते थे। किसी का चेस्टर, किसी का जूता, किसी की घड़ी आदि लेकर अपने शौक पूरे करता। रमानाथ के इसी व्यवहार के कारण ही उसके पिता उसका विवाह कर देना अधर्म समझते थे क्योंकि जो व्यक्ति अपने प्रति लापरवाह हो वह भला अपनी पत्नी की जिम्मेदारी कैसे पूरा करेगा। लेकिन रमानाथ की माता जागेश्वरी के दबाव के कारण दयानाथ को जालपा वाला रिश्ता मान लेना पड़ा। रमानाथ में एक बात सबसे बुरी थी कि वह बहुत ही दिखावा करता था। जब उसका विवाह तय हुआ तो उसने ठान ली कि उसकी बारात ऐसी धूम-धाम से निकले कि गाँव भर के लोग देखते रह जाए और शोच मच जाए। उसे ठाट-बाठ से रहने का शौक था और विवाह के बाद भी उसकी आदतें वैसी-की-वैसी ही रही। उसकी इसी प्रवृत्ति के कारण विवाह में अत्यधिक खर्च हो गया और उसके पिता पर लोगों के पैसों का उधार हो गया। रमानाथ चाहता तो अपने पिता के कन्धे पर से उधार का बोझ हलका कर सकता था लेकिन उलटे उसने अपने पिता को ही दोषी ठहरा दिया। रमानाथ के चरित्र का अन्य विशेषताएँ इस प्रकार है।
1 कायर और झूठा अभिमान -- झूठा अभिमान रमानाथ के चरित्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसी कारण उसके विवाह में शान-शौकत के लिए अंधाधुंध खर्च किया जाता है, जिससे सर्राफ के रुपये चुकाए नहीं जा सके। रमानाथ ने कभी भी जालपा के सामने अपने वास्तविक आर्थिक परिस्थिति के बारे में खुलकर नहीं बताया। बल्कि वह जालपा को हर बात में खूब बढ़ा-चढ़ाकर बोला करता था कि उसके पिता की जमीन्दारी है, बैंकों में पैसा रखा है। लेकिन जब विवाह के बाद जालपा के सारे गहने चोरी हो गये जो कि रमानाथ ने सर्राफ के उधार चुकाने हेतु की थी, तब भी रमानाथ को अकल नहीं आयी कि वह जालपा से सच कह डाले। जब जालपा से उसे प्रताड़ना मिलती है तो वह नौकरी की तलाश करता है। शतरंज की बदौलत उसका कई अच्छे-अच्छे व्यक्तियों से संपर्क था लेकिन संकोच के कारण किसी से भी अपनी वास्विक स्थिति प्रकट नहीं कह सकता था। जानता था कि ऐसा करना उसके हित में नहीं है। नौकरी लग जाने पर भी उसकी आदतें नहीं सुधरी बल्कि वह और अधिक ऐश्वर्य पर ध्यान देने लगा। इसी कारण उसके रुपये नहीं बचते थे। झूठे अभिमान के अलावा उसकी कायरता ने भी उसे पतन की ओर ढकेला था। दफ्तर के पैसों के गबन के बाद वह प्रयाग छोड़कर भाग जाना उसकी कायरता का पहला उदाहरण है। कलकत्ता में जब वह पुलिस के हत्थे चढ़कर झूठी गवाही देने पर मजबूर होता है तो जालपा उसे बार-बार समझाती है लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सच कह कर अपना अपराध स्वीकार कर ले। बार-बार उसके सामने मौका मिलने पर भी वह अपना झूठा अभिमान और कायरता को नहीं छोडता है।
2 झूठ बोलने की आदत एवं रिश्तों की कदर ना करना -- रमानाथ के चरित्र की दूसरी विशेषता थी कि वह झूठ बहुत बोलता था और अपने नैतिक रिश्तों की भी कदर नहीं करता था। वह हर बार झूठी बात कहकर काम चलाने का आदि हो गया था। वह अपने माता-पिता से तो झूठ बोलता ही था, रतन जो उसकी पत्नी जालपा की अच्छी सहेली थी उससे भी झूठ बोलता रहा। उसके रुपयों को अपने उधार रुपये चुकाने के काम में लाता है और उसे झूठ कहकर टालता रहता है। जब उसे नौकरी मिलती है तो जालपा को वह कहता है कि तीस रुपये मासिक वेतन मिलेगा लेकिन अपने माता-पिता से वह बीस रुपये वेतन ही कहता है। रमानाथ अपने से हर बात पर झूठ बोलता है। लेकिन उपन्यास में जोहरा नामक पात्र का रमानाथ के जीवन में प्रवेश होता है तो वह उससे झूठ नहीं बोल पाता है। जोहरा के सामने उसका झूठ,कपट सब धरा-का-धरा रह जाता है। रतन, वकील साहब, देवीदीन, जग्गो आदि निश्छल पात्रों के साथ भी वह कपट एवं छल का व्यवहार करता है। पुलिस के झूठे प्रलोभनों में आकर वह किसी के साथ भी विश्वासघात करने से नहीं कतराता है।
3 हृदय की सरलता -- रमानाथ एक साधारण मनुष्य है जिसमें सारी दुर्बलताएँ भरी हुई है। रमानाथ के चरित्र में तब परिवर्तन आता है जब रमानाथ पुलिस के शिकंजे में होता है और जालपा जब उसे समझाती है कि उस पर गबन का कोई मुकदमा नहीं है। बल्कि पुलिस अपना उल्लु सीधा करने के लिए रमानाथ को केवल इस्तेमाल कर रही है। रमानाथ अपनी दुर्बलताओं के कारण ही हमेशा से सबसे छल करता रहा है लेकिन उसने किसी का बुरा नहीं सोचा था। रमानाथ जानता था कि यदि उसने अदालत में पुलिस के कहने पर झूठी गवाही दी तो कई सारे निर्दोष लोगों की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी। वह हृदय से चाहता था कि ऐसा कुछ ना हो लेकिन उसकी कारयता के कारण ही वह सत्य का साथ नहीं दे पा रहा था। अंत में जब उसे यह बात समझ में आती है कि सत्य का साथ देना ही सही है तो वह अदालत में अपने सारी गलतियाँ स्वीकार करता है और डकैती के इलजाम में पकड़े गए सारे कैदियों को बचा लेता है। इसके अलावा वह जालपा से सच्चा प्यार भी करता था। देवीदीन तथा जग्गों के प्रति भी उसके मन में लगाव था तभी वह उनके तानों तथा बातों से प्रभावित हो जाता था।
अंत में प्रेमचन्द रमानाथ के चरित्र के जरिए यही बताना चाहते है कि मध्यमवर्गीय परिवारों में इस प्रकार की दुर्बलताएँ होती है लेकिन यदि उनका सही ढंग से संशोधन किया जाए तो समाज में फिर कभी भी ऐसी बुरी और उलझी हुई परिस्थितियाँ खड़ी नहीं होंगी।
पढ़कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंAap ki is information ke liye thanku so much
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंरमाकांत की चारित्रिक विशेषताएं
जवाब देंहटाएंजोहरा की चरित्र चित्रण
जवाब देंहटाएंThanks
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