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गुरुवार, 29 अगस्त 2024

B.com 3rd Sem रामायतन तुलसीदास व्याख्या Part-1

 देखी पाय मुनिराय तुम्हारे। भए सुकृत सब सुफल हमारे।

अब जहँ राउर आयसु होई। मुनि उदबेगु न पावै कोई ।।

मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं। ते नरेस बिनु पावक दहहीं।

मंगल मूल बिप्र परितोषू। दहइ कोटी कुल भूसुर रोषू।।


प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित रामायण से ली गयी है। इन पंक्तियों में श्री राम मुनियों के दर्शन कर रहे हैं एवं उनसे बात कर रहे हैं और उनसे अपने रहने के लिए स्थान के बारे में पूछ रहे हैं।

व्याख्या :- हे मुनिराज! आपके चरणों का दर्शन करने से आज हमारे सब पुण्य सफल हो गए अर्थात् हमें सारे पुण्यों का फल मिल गया। अब जहाँ आपकी आज्ञा हो और जहाँ कोई भी मुनि उद्वेग को प्राप्त न हो, क्योंकि जिनसे मुनि और तपस्वी दुख पाते हैं, वे राजा बिना अग्नि के ही (अपने दुष्ट कर्मों से ही) जलकर भस्म हो जाते हैं। ब्राह्मणों का संतोष सब मंगलों की जड़ है और भूदेव अर्थात् पृथ्वी पर ब्राह्मण रूपी देवता का क्रोध करोड़ों कुलों(परिवारों) को भस्म कर देता है।

अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ। सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ।।

तहँ रचि रुचिर परन तृन साला। बासु करौ कछु काल कृपाला।।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में श्री राम मुनियों से ऐसे स्थान के बारे में पूछ रहे हैं जहाँ वे अपनी पत्नी सीता एवं भाई सौमित्र लक्ष्मण के साथ पत्तों की कुटिया बना कर रह सके।

व्याख्या :- हे मुनिराज ऐसा हृदय में समझकर मुझे वह स्थान बतलाइए जहाँ मैं सीता और लक्ष्मण सहित जा सकु और वहाँ सुंदर पत्तों और घास की कुटिया बनाकर कुछ समय निवास कर सकूं।

सहज सरल सुनि रघुबर बानी। साधु साधु बोले मुनि ग्यानी।।

कस न कहहु अस रघुकुलकेतू। तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू।।

प्रसंग :- प्रस्तुत प्रसंग में श्री राम की बातें सुनकर मुनियों को बड़ा आनन्द आता है। वे श्री राम की सहज, सरल बातें सुनकर साधु-साधु कर उठते हैं।

व्याख्या :- जब श्री राम बड़ी सहजता से मुनियों से अपने रहने के लिए स्थान बतला देने की बात कहते हैं तो सभी ऋषि-मुनि उनकी बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न होते हैं। उनकी बानी सुनकर वे धन्य!धन्य! कहने लगते हैं। वे तब श्री राम से कहते हैं --हे रघुकुल के ध्वजास्वरूप। आप ऐसा क्यों न कहेंगे? आप सदैव वेद की मर्यादा का पालन करते हैं। अर्थात् राम के विनम्र व्यवहार और विनम्र और विनम्र वाणी सुनकर सभी ऋषि-मुनि राम का गुणगान करने लगते हैं।

विशेषता :- विनम्रता सबको प्रसन्न करती है और व्यक्ति को सभी का प्रिय बना देती है।

श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी

जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की।।

जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी।

सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी।।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में ऋषि-मुनि गण श्री राम की प्रशंसा कर रहें हैं एवं वे राम, सीता और लक्ष्मण का वास्तविक परिचय भी दे रहे हैं। वे सभी जानते हैं कि श्री राम और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान् विष्णु के अवतार हैं वे जगदीश्वर हैं।

व्याख्या :- वे कहते हैं हे राम! आप वेदकी मर्यादा के रक्षक हैं, जगदीश्वर हैं और जानकी जी (आपकी स्वरूप भूता) माया हैं, जो कृपा की भण्डार है तथा आपकी आज्ञा पाकर जगत् का सृजन, पालन और संहार करती हैं। जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी और पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करने वाले हैं, वही चराचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण हैं। देवताओं के कार्य करने के लिये आपने राजा का शरीर धारण किया है और दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिये चले हैं।