श्री नरेश मेहता द्वारा रचित खंडकाव्य 'शबरी' के प्रथम अध्याय 'त्रेता' का पद्यांश-वार संदर्भ, प्रसंग और व्याख्या नीचे दी गई है।
पद्यांश 1
"त्रेता-युग की व्यथामयी यह कथा दीन नारी की,
राम-कथा से जुड़ कर पावन हुई, उसी शबरी की।"
संदर्भ: ये पंक्तियाँ आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि नरेश मेहता द्वारा रचित खंडकाव्य 'शबरी' से ली गई हैं।
प्रसंग: कवि यहाँ खंडकाव्य की मुख्य पात्र शबरी का परिचय दे रहे हैं। वे बताते हैं कि शबरी का जीवन दुख और अभाव से भरा था, लेकिन भगवान राम की कथा से जुड़ने पर उनका जीवन पवित्र और पूज्यनीय हो गया। यह पंक्ति शबरी के चरित्र की महत्ता और उसकी भक्ति की शक्ति को दर्शाती है।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि त्रेता युग में एक साधारण और दुखी महिला की कहानी, जो अपने जीवन में कष्ट झेल रही थी, राम के आगमन और उनकी कथा का हिस्सा बनने के कारण अत्यंत पावन हो गई। यह पद्यांश हमें बताता है कि शबरी की पहचान केवल एक "दीन नारी" के रूप में नहीं है, बल्कि एक ऐसी भक्त के रूप में है जिसकी कहानी राम से जुड़कर अमर हो गई।
पद्यांश 2
"बदल गया था सतयुग का सारा समाज त्रेता में,
वन-अरण्य को ग्राम-सभ्यता थी त्रेता में।"
संदर्भ: ये पंक्तियाँ 'शबरी' खंडकाव्य के प्रथम अध्याय 'त्रेता' से उद्धृत हैं।
प्रसंग: कवि यहाँ सतयुग और त्रेता युग के बीच हुए सामाजिक बदलावों को स्पष्ट कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि बताते हैं कि त्रेता युग में आते-आते सतयुग के आदर्शों और सामाजिक व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव आ गया था। जहाँ सतयुग में लोग प्रकृति और वनों के निकट रहते थे, वहीं त्रेता में शहरीकरण (ग्राम-सभ्यता) का उदय होने लगा था। यहाँ 'वन-अरण्य' का अर्थ है जंगल और 'ग्राम-सभ्यता' का अर्थ है गाँव और शहरी जीवन। यह पद्यांश यह दर्शाता है कि मनुष्य का जीवन अब प्रकृति से दूर और अधिक संगठित हो गया था।
पद्यांश 3
"काट वनों को लोगों ने खलिहान-खेत फैलाये,
जोड़ पथों से विकट दुरियाँ कस्बे-नगर बसाये।"
संदर्भ: ये पंक्तियाँ उसी खंडकाव्य से ली गई हैं।
प्रसंग: इस पद्यांश में कवि शहरीकरण की प्रक्रिया और उसके परिणामों का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि त्रेता युग में लोगों ने अपनी ज़रूरतों के लिए जंगलों को काटना शुरू कर दिया था ताकि वे वहाँ खेत और खलिहान बना सकें। इसके साथ ही, उन्होंने कठिन रास्तों को जोड़कर नए कस्बे और नगर बसाए। यह विकास मानव की जीवनशैली को और जटिल बना रहा था, जिससे प्रकृति से उसका संबंध दूर हो रहा था। यह पद्यांश मनुष्य द्वारा प्रकृति में किए गए बदलावों को दर्शाता है।
पद्यांश 4
"जन्म ले रहे थे समाज में राज्य और कुछ जनपद,
सभी सभ्यताएँ पनपी हैं मैदानों, नदियों तट।"
संदर्भ: ये पंक्तियाँ श्री नरेश मेहता द्वारा रचित खंडकाव्य 'शबरी' के प्रथम अध्याय 'त्रेता' से ली गई हैं।
प्रसंग: इस पद्यांश में कवि समाज में हो रहे राजनैतिक और भौगोलिक बदलावों का वर्णन कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि किस तरह छोटे-छोटे समुदाय संगठित होकर राज्यों और जनपदों में बदल रहे थे और ये सभ्यताएं कहाँ विकसित हुईं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि त्रेता युग में समाज की संरचना बदल रही थी। अब लोग छोटे समूहों में रहने की बजाय संगठित होकर राज्यों और जनपदों (राज्यों के छोटे हिस्से) का निर्माण कर रहे थे। इसके साथ ही, कवि एक महत्वपूर्ण भौगोलिक तथ्य को भी दर्शाते हैं कि दुनिया की जितनी भी महान सभ्यताएं हैं, उन सबका विकास हमेशा उपजाऊ मैदानों और नदियों के किनारे हुआ है। नदियाँ जीवन का आधार थीं और उन्होंने मानव बस्तियों को विकसित होने का अवसर दिया। यह पद्यांश हमें बताता है कि मानव सभ्यता का विकास हमेशा प्रकृति, खासकर नदियों के साथ जुड़ा हुआ रहा है।
पद्यांश 5
"विन्ध्य-हिमालय के बीच अगर गंगा न होती,
क्या होता यह देश और संस्कृति क्या होती।"
संदर्भ: ये पंक्तियाँ खंडकाव्य के प्रथम अध्याय के अंतिम अंश हैं।
प्रसंग: कवि यहाँ भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान में गंगा और हिमालय के महत्व को रेखांकित करते हैं।
व्याख्या: कवि एक प्रश्न के माध्यम से कहते हैं कि यदि विंध्य पर्वत (दक्षिण भारत) और हिमालय पर्वत (उत्तर भारत) के बीच गंगा नदी न बहती, तो क्या भारत का भौगोलिक और सांस्कृतिक स्वरूप वैसा ही होता जैसा आज है? यह पद्यांश दर्शाता है कि गंगा और हिमालय केवल प्राकृतिक संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान हैं। वे जीवन, आध्यात्म और इतिहास के प्रतीक बन गए
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