बुजुर्ग ने लड़की की शादी में क्या करने से मना किया? उत्तर: टीमटाम
रिश्तेदारों में क्या कटने का डर था? उत्तर: नाक
किस तरह की नाक बहुत नाजुक होती है? उत्तर: छोटे आदमी की
कुछ बड़े आदमियों की नाक किस चीज की होती है? उत्तर: इस्पात की
जो होशियार होते हैं, वे अपनी नाक कहाँ रखते हैं? उत्तर: तलवे में
कुछ नाकें किस पौधे की तरह होती हैं? उत्तर: गुलाब
'जूते खा गए' मुहावरे पर लेखक क्या कहते हैं? उत्तर: भुखमरा
बुजुर्ग की नाक कैसी हो गई थी? उत्तर: लंबी
बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा किस तरह के होते हैं? उत्तर: एक तरह के
लेखक किससे दूर रहने की सलाह देते हैं? उत्तर: बिगड़े रईस
बुजुर्ग अपनी बेटी का कैसा विवाह कर रहे थे? उत्तर: अंतरजातीय
लड़की का लड़का किस जाति का था? उत्तर: कान्यकुब्ज
लेखक ने किस तरह शादी करने की सलाह दी? उत्तर: आर्यसमाज
लड़के को शादी में कितना पैसा नहीं चाहिए था? उत्तर: एक पैसा
बुजुर्ग के करीबी रिश्तेदार कहाँ रहते थे? उत्तर: पटियाला
लेखक को निमंत्रण पत्र पाकर कैसा लगता है? उत्तर: घबराता
लेखक ने किस महीने की लग्नें हटाने को कहा? उत्तर: मई और जून
किस विवाह में लड़का-लड़की भागकर शादी कर लेते हैं? उत्तर: गांधर्व
लेखक के अनुसार, कौन संस्कृत नहीं समझता? उत्तर: पंडित
साहूकार क्यों निराश लौट जाते थे? उत्तर: नाक नहीं थी
संदर्भ प्रसंग व्याख्या वाले नोट्स
अवतरण 1: '...रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी। नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे ज्यादा इसी देश में होती है।'
संदर्भ -- प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित व्यंग्य निबंध दो नाक वाले लोग से ली गयी है।
प्रसंग: यह कहानी का शुरुआती हिस्सा है जहाँ एक बुजुर्ग अपनी बेटी की शादी सादगी से करने के बजाय दिखावे के साथ करना चाहते हैं।
व्याख्या: परसाई जी यहाँ 'नाक' शब्द का प्रयोग इज्जत, प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मान के प्रतीक के रूप में करते हैं। वे व्यंग्य करते हैं कि भारत में लोग अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए कितना चिंतित रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। वे शारीरिक नाक के बहाने सामाजिक प्रतिष्ठा की रक्षा के प्रति लोगों के obsessive व्यवहार पर कटाक्ष कर रहे हैं।
अवतरण 2: 'कुछ बड़े आदमी, जिनकी हैसियत है, इस्पात की नाक लगवा लेते हैं और चमड़े का रंग चढ़वा लेते हैं। कालाबाजार में जेल हो आए हैं...'
संदर्भ -- प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित व्यंग्य निबंध दो नाक वाले लोग से ली गयी है।
प्रसंग: लेखक समाज के उन प्रभावशाली लोगों पर व्यंग्य कर रहे हैं जो नैतिक रूप से भ्रष्ट हैं, लेकिन फिर भी समाज में उनका सम्मान बना रहता है।
व्याख्या: यहाँ 'इस्पात की नाक' उन लोगों की प्रतिष्ठा का प्रतीक है जो गलत काम करने के बावजूद अप्रभावित रहती है। लेखक कहते हैं कि ये लोग इतने शक्तिशाली होते हैं कि उन्हें किसी भी बात का फर्क नहीं पड़ता। उनकी नाक स्टील की होती है, जिसे कोई काट नहीं सकता। यह टिप्पणी बताती है कि समाज में नैतिकता और सम्मान अक्सर आर्थिक और राजनीतिक हैसियत से तय होता है, न कि कर्मों से।
अवतरण 3: 'जूते खा गए' अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
संदर्भ -- प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित दो नाक वाले लोग व्यंग्य निबंध से ली गयी है।
प्रसंग: लेखक 'नाक' से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए 'जूते खा गए' मुहावरे पर अपनी सोच प्रकट करते हैं।
व्याख्या: यह एक गहरा व्यंग्य है। लेखक इस मुहावरे के शाब्दिक अर्थ को लेते हुए भारतीयों की गरीबी और अपमान सहने की आदत पर कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि लोग शारीरिक रूप से इतने भूखे हैं कि वे अपमान (जूते) को भी सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं, मानो वह कोई भोजन हो। यह दर्शाता है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक मजबूरियाँ व्यक्ति के आत्मसम्मान को नष्ट कर देती हैं।
अवतरण 4: 'मैंने कहा-लड़का उत्तर प्रदेश का कान्यकुब्ज और आप पंजाब के खत्री-एक दूसरे के रिश्तेदारों को कोई नहीं जानता... लड़के के पिता की मृत्यु हो चुकी है... आप एक सलाह मेरी मानिए... हम आपको शादी में नहीं बुला सके।'
संदर्भ -- प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित दो नाक वाले लोग व्यंग्य निबंध से ली गयी है।
प्रसंग: लेखक बुजुर्ग को दिखावे से बचने के लिए एक काल्पनिक कहानी गढ़ने की सलाह देते हैं, जिसमें लड़के के पिता की मृत्यु को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
व्याख्या: यह हिस्सा लेखक की धोखेबाजी और हास्य का अद्भुत मिश्रण है। लेखक यहाँ यह दिखाना चाहते हैं कि दिखावे से बचने के लिए लोग किस हद तक जा सकते हैं। वे बुजुर्ग को एक झूठ बोलने की सलाह देते हैं ताकि वे रिश्तेदारों के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचा सकें और शादी का खर्च भी कम हो जाए। यह अंततः कहानी के केंद्रीय विषय - 'सामाजिक दबाव' और 'दिखावा' - को पुष्ट करता है और बताता है कि लोग अपनी नाक बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
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