हरिशंकर परसाई की कहानी का विस्तृत सारांश: 'दो नाक वाले लोग'
1. शीर्षक का औचित्य और केंद्रीय विचार
यह कहानी हरिशंकर परसाई का एक प्रसिद्ध व्यंग्य है, जिसमें उन्होंने भारतीय समाज की दिखावे की प्रवृत्ति, सामाजिक प्रतिष्ठा और नैतिक खोखलेपन पर तीखा प्रहार किया है। कहानी का शीर्षक 'दो नाक वाले लोग' स्वयं कथावाचक की भूमिका को दर्शाता है, जो एक बुजुर्ग व्यक्ति को सामाजिक दबाव से ऊपर उठकर व्यावहारिक और तर्कसंगत निर्णय लेने की सलाह दे रहे हैं। कहानी का केंद्रीय विचार 'नाक' है, जिसका प्रयोग लेखक ने सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में किया है।
2. कहानी के प्रमुख पात्र और घटनाक्रम
कहानी में मुख्य रूप से दो पात्र हैं: कथावाचक (लेखक) और एक बिगड़ा हुआ रईस बुजुर्ग। बुजुर्ग अपनी बेटी का अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, जो कि एक प्रगतिशील कदम है, लेकिन वे यह शादी पुराने ठाठ-बाठ से करना चाहते हैं। इसका कारण है रिश्तेदारों के सामने अपनी 'नाक' कटने का डर।
कथावाचक बुजुर्ग को समझाते हैं कि वे अपनी हैसियत से अधिक खर्च न करें और कर्ज लेकर दिखावा न करें। वे उन्हें शादी को आर्य-समाजी रीति से सादगी के साथ करने का सुझाव देते हैं। वे तर्क देते हैं कि दूर के रिश्तेदार (जो पंजाब, दिल्ली आदि में हैं) निमंत्रण पाकर खुश नहीं होंगे, बल्कि परेशान होंगे। कथावाचक यह भी बताते हैं कि दिखावे के बजाय नैतिक मूल्यों को अपनाना अधिक महत्वपूर्ण है।
3. 'नाक' का प्रतीकात्मक प्रयोग और व्यंग्य
परसाई जी ने इस कहानी में 'नाक' का उपयोग कई प्रतीकात्मक अर्थों में किया है:
छोटे आदमी की नाजुक नाक: जो छोटी-सी बात पर कट जाती है।
बड़े आदमी की 'इस्पात की नाक': जो कालाबाजारी, भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों के बाद भी नहीं कटती। ये लोग इतनी हैसियत रखते हैं कि सामाजिक आलोचना से बच जाते हैं।
होशियार लोगों की 'तलवे में रखी नाक': जो इतने चालाक होते हैं कि उनकी इज्जत पर कोई आंच ही नहीं आ पाती।
गुलाब के पौधे जैसी नाक: जो बदनामी के बाद और भी बढ़ जाती है।
'कटी हुई नाक': कहानी के अंत में, जब बुजुर्ग दिखावा करने के लिए कर्ज लेते हैं और साहूकार रोज तकादा करने आते हैं, तब लेखक बताते हैं कि उनकी नाक रोज थोड़ी-थोड़ी कटने लगी है, और अंत में काटने के लिए कुछ बचता ही नहीं है।
यह प्रतीकात्मक प्रयोग भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों के पतन और दिखावे की प्रवृत्ति पर गहरा व्यंग्य करता है।
4. कहानी का उद्देश्य और संदेश
कहानी का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त दिखावे की संस्कृति पर चोट करना है। लेखक समझाते हैं कि दिखावा और झूठी प्रतिष्ठा व्यक्ति को कर्ज और परेशानियों के दलदल में धकेल देती है। यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि बाहरी आडंबर और सामाजिक दबावों के बजाय, हमें सादगी, ईमानदारी और अपनी हैसियत के अनुसार जीवन जीना चाहिए।
परसाई जी ने अपनी व्यंग्य शैली में हास्य और कटु सत्य का मिश्रण किया है। वे एक ओर तो 'जूते खा गए' जैसे मुहावरे पर व्यंग्य करते हैं, वहीं दूसरी ओर कर्ज और दिखावे के कारण होने वाले दुखों को भी उजागर करते हैं।
5. निष्कर्ष
'दो नाक वाले लोग' सिर्फ एक व्यंग्य नहीं है, बल्कि समाज के एक कड़वे सच का आईना है। यह बताती है कि कैसे लोग अपनी झूठी इज्जत (नाक) बचाने के लिए अपनी वास्तविक नैतिकता और आर्थिक स्थिति को दांव पर लगा देते हैं। अंत में, बुजुर्ग को अपनी गलती का एहसास तब होता है, जब उनकी नाक सचमुच कट चुकी होती है। यह कहानी हमें दिखावे से दूर रहने और यथार्थवादी जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
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