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रविवार, 7 दिसंबर 2025

गाथा कुरुक्षेत्र की संदर्भ प्रसंग व्याख्या

 

जुआ खेल युधिष्ठिर ने लगाया दांव सब कुछ पैसों पर

खोया राज्य, वनवास पाया

यह अपराध मेरा है?

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गाथा कुरुक्षेत्र की से ली गयी है। यह एक काव्य नाटक है और इसके रचैता है मनोहर श्याम गोशी।

प्रसंग – प्रस्तुत कथन दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र से कहता है। जब कृष्ण के समझाने पर भी दुर्योधन पाण्डवों को पाँच गाँव तक देने के लिए तैयार नहीं होता है तो धृतराष्ट्र उसे समझाने आते हैं। धृतराष्ट्र और गांधारी उसे कहते हैं कि वह कृष्ण की शरण में चला जाए, पाण्डवों की मांग पूरी कर दे। तब दुर्योधन उनका विरोध करते हुए यह कहता है ।

व्याख्या – दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र से कहता है कि जब जुए के खेल का निमंत्रण हुआ था तो युधिष्ठिर से उसे स्वीकार कर लिया और उसने अपना सबकुछ उसमें दाव पर लगा दिया। उसने अपना राज्य, अपनी संपत्ति तथा भाइयों और अपनी पत्नी को भी दाव पर लगा दिया और हार गया। क्या इसमें भी मेरा अपराध है? उसे तो जुआ खेलना नहीं चाहिए था। अब सब कुछ खोकर उसने वनवास पाया तो क्या यह मेरा अपराध है? उसने दाव पर सब कुछ क्यों लगाया? उसे तो ऐसा नहीं करना चाहिए था।

वास्तव में युधिष्ठिर मामा शकुनि की चाल को समझ नहीं सका था जिसके कारण वह जुए में हार गया था। वही शकुनि तथा दुर्योधन के बार-बार उकसाए जाने पर युधिष्ठिर आवेश में आकर सब कुछ दाव पर लगा देता है तथा हार जाता है। परन्तु दुर्योधन यह सभी बातें जानते हुए भी वह युधिष्ठिर को इसलिए कुछ नहीं देना चाहता था क्योंकि उसके मन में भय था कि कही पाण्डव दुबारा से शक्ति संचित कर ताकतवर न बन जाए और हस्तिनापुर से भी अधिक शक्तिशाली राज्य न खड़ा कर दें। इसलिए वह अपने पिता की बात मानने से भी अस्वीकार कर देता है।

 

विशेष –यह पंक्तियाँ हमें यह सीख देती है कि हमें कभी भी जुआ जैसा खेल नहीं खेलना चाहिए जो कि मनुष्य को बर्बाद कर सकता है। वही इन पंक्तियों में दुर्योधन का भय स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

 

 

मारा गया वो स्वर्ग पायेगा

और यदि जीता तो भोगेगा

अस्तु, हे कौन्तेय! हो तैयार

जमकर युद्धकर।

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गाथा कुरुक्षेत्र की से ली गयी है। यह एक काव्य नाटक है और इसके रचैता है मनोहर श्याम गोशी।

प्रसंग – प्रस्तुत कथन श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को कहा गया है। अर्जुन कुरुक्षेत्र में युद्ध प्रारंभ होने से पहले दोनों पक्षों को युद्ध भूमि के मध्य में जाकर ठीके से देख लेना चाहता था। अतः वह कृष्ण को युद्ध आरंभ होने से पहले युद्ध भूमि के मध्य में ले चलने का आग्रह करते हैं। वही जब वे युद्ध भूमि के बीच आकर कौरव पक्ष को देखते हैं तो उन्हें वहाँ केवल अपने सगे-संबंधि ही नज़र आते हैं। वे तब युद्ध में अपने पितामह, गुरु, कुलगुरु आदि पर अस्त्र चलाने पर पाप का भागी हो जाने की चिन्ता करते हैं। तब कृष्ण उन्हें गीता का ज्ञान देना प्रारंभ करते हैं और अर्जुन को समझाते हैं कि वास्तव में यह युद्ध क्यों हो रहा है।

व्याख्या – अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि हे कौन्तेय(कुन्ती के पुत्र) यह युद्ध धर्म के लिए लड़ा जा रहा है। इस युद्ध में जो भी मारा जाएगा वह स्वर्ग पायेगा और अगर कोई जीवित रह गया और युद्ध जीत गया तो वह हस्तिनापुर की धरती का राजा बनेगा और उसका भोग करेगा। अतः युद्ध तो हर हाल में ही करना होगा। तुम तैयार हो जाओ और जमकर युद्ध करो।

            वास्तव में श्री कृष्ण के इस कथन में रहस्य छिपा है। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि महाभारत का यह युद्ध धर्म और अधर्म की लड़ाई है। यदि में अधिक सोच-विचार किया गया तो युद्ध लड़ने का वास्तविक कारण ही धूमिल पड़ जाएगा और कदाचित अधर्मी कौरवों की जीत हो सकती है। यह युद्ध केवल द्रौपदी के अपमान या हस्तिनापुर के सिंहासन की लड़ाई नहीं है बल्कि अधर्मी कौरवों का नाश करने की लड़ाई है। यदि ये युद्ध नहीं होता है तो पाण्डव डर के हार मान चुके हैं ऐसा भ्रम भी फैल सकता है जिससे साधारण जन-मानस में भी सत्य और धर्म के लिए खड़े होने की इच्छा समाप्त हो जाएगी। वही यदि वे लड़ते हैं तो चाहे हारे या जीते दोनों ही रूप से उन्हें लाभ मिलेगा। या तो स्वर्ग मिलेगा या फिर भूमि। परन्तु युगो-युगो तक लोगों को प्रेरणा मिलेगी की उन्हें  सत्य और धर्म के लिए लड़ना भी पड़े तो वह उचित है।

 

विशेष  -- अक्सर लोग अपने रिश्ते नातों की मोह माया में आकर सत्य और धर्म का त्याग कर देते हैं जो कि समाज के लिए लम्बे समय में हानी पहुँचाने का काम करता है। किसी भी प्रकार की अधार्मिक काम से दूसरों को तकलीफ होने पर भी जब उसके अपने स्वजन ही इस पर पर्दा डाल देते हैं तो आगे चल कर यह उन्हीं का ही अहित करता है। अतः श्री कृष्ण के अनुसार सदैव धर्म और सत्य के लिए अपनों से भी लड़ना पड़ जाए तो उसमें कोई हानि नहीं है।

 

 

उत्तरा के पुत्र में तो प्राण मैं फिर भी डाल दूंगा

किन्तु तुमको दे रहा हूँ श्राप

पीब और लहू की गंध से तुम भर जाओगे सदा

जड़ा के लिए

हजारों वर्ष तक अकेले और भोगते ही रहोगे इस धरा पर

 

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गाथा कुरुक्षेत्र की से ली गयी है। यह एक काव्य नाटक है और इसके रचैता है मनोहर श्याम गोशी।

प्रसंग – प्रस्तुत कथन श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा। युद्ध के अंत में कौरव पक्ष में केवल अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कृतवर्मा ही बच गए थे। तथा दुर्योधन की हार का बदला लेने और अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने अश्वत्थामा पाण्डव शिविर में रात में ही घुस कर पाण्डव पुत्रों तथा अन्य रिश्तेदार आदि की हत्या कर देता है। फिर अर्जुन के साथ युद्ध करते समय वह ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता जिसे आकर श्री वेदव्यास जी रोकने का प्रयास करते हैं। परन्तु ब्रह्मास्त्र को वापस न लौटा पाने का ज्ञान न होने पर अश्वत्थामा उसे उत्तरा के गर्भ की ओर छोड़ देता है जिससे उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की मृत्यु हो जाती है। तब कृष्ण उसे अभिशाप देते हुए यह कहते हैं।

व्याख्या—अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है। श्री कृष्ण तब क्रोध में आकर अश्वत्थामा को कहते हैं कि तुम्हारे कारण एक निष्पाप अजन्में शिशु की ब्रह्मास्त्र जैसे शक्तिशाली अस्त्र से मृत्यु हुई है। मैं तो फिर भी उसे जीवित कर दूंगा। परन्तु जो तुमने किया है वह पाप है। द्रौपदी के पुत्र जिन्होंने इस युद्ध में भाग भी नहीं लिया था तथा अन्य संबंधियों को जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था उन सभी निर्दोषों की हत्या तथा उत्तरा के अजन्में शिशु को मारकर तुमने भयंकर पाप किया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम्हारी इस मृत्यु लोक में मृत्यु नहीं होगी। बल्कि तुम्हारे शरीर में पीब(फोड़े का मवाद) तथा लहू की गंध भर जाएगी जो कि कभी भी नहीं छूटेगी। तुम हज़ारों वर्षों तक अकेले इस गंध और पीड़ा को भोगते रहोगे और धरती पर भटकते रहोगे। मृत्यु के लिए तुम तरसोगे लेकिन तुम्हें मृत्यु भी नहीं आएगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू बहता रहेगा।

           

विशेष – श्री कृष्ण का क्रोध इन पंक्तियों में दिख रहा है। निर्दोषों की हत्या करना महा पाप है। अज्ञानता के कारण ब्रह्मास्त्र को लौटा न पाना हमें यह सिखाता है कि किसी भी प्रकार की शक्ति को धारण करने के लिए हमें उचित ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।

शनिवार, 6 दिसंबर 2025

एक शाम और हरसिंगार के प्रेम

अरुणाचल प्रदेश के ख़ूबसूरत पहाड़ी ज़िले पश्चिमी सियांग का सुंदर शहर अलोंग । यह 90 के दशक का अंतिम समय रहा होगा, और शहर अपनी हरी-भरी ख़ूबसूरती लिए दुनिया के सामने इठला रहा था। अभी-अभी अच्छी बारिश होकर गुज़री थी। हल्की-सी धुंध और भीगी हरियाली तन-मन को जितनी शीतलता दे रही थी, उससे कहीं अधिक एक अजीब-सी कसक पैदा कर रही थी। चंदा अपने क्वार्टर के बरामदे में माँ के साथ छत से टपकते बारिश के पानी को पास रखे एक लोहे के ड्रम में इकट्ठा कर रही थी। इतनी ऊँचाई वाली जगहों पर पानी की आपूर्ति दिन में केवल एक ही बार आती थी, इसलिए घर के अन्य ज़रूरतों के लिए पानी बड़ी मुश्किल से हो पाता था। असम राइफल्स के क्वार्टर में रहने वाले सभी परिवारों का यही एक तरीक़ा था जिससे वे पानी की कमी पूरी करते थे। सभी के घर में बड़े-बड़े, खाली पड़े पेट्रोल के ड्रम थे, जिनमें वे बारिश के दिनों का पानी भरते और उसी से काम चलाते थे।

अगले दिन चंदा की स्कूल से छुट्टी थी। घर के सारे काम हो चुके थे। शाम के समय चंदा माँ के साथ बैठकर एक सफ़ेद

शनिवार, 22 नवंबर 2025

कहै कबीर सुनो भाई साधो लघु प्रश्नोत्तर

 

| 1 | कबीर ब्याह के बाद क्या हो गए थे? 

 बेफिक्र और बेपरवाह। 

| 2 | कबीर के बच्चों का नाम क्या है? 

कमाल और कमाली। 

| 3 | कमाल और कमाली कितने वर्ष के थे? 

कमाल पाँच साल का था और कमाली गोद की थी। 

| 4 | किनकी करतूतें देखकर कबीर की ज़बान में कवित्त आते थे? 

 पंडितों और मुल्लाओं की। 

| 5 | कबीर की जान किसमें बसती है? 

कवित्त में 

| 6 | किसका परिवार मुसीबत में था? 

कुंदन का। 

| 7 | कुंदन और उसका परिवार किस मुसीबत में फँसा था?

 उसके घर में आग लग गई थी। 

| 8 | कोतवाल ने किसको पीटा था? 

कमाल को। 

| 9 | कमाल पर कबीर क्या आरोप लगाते हैं? 

 रामनाम बेचने का। 

| 10 | बोधन सत्संग करने कहाँ गये थे? 

 दिल्ली। 

| 11 | बोधन क्या काम करता था? 

वह किसन (किसान) था। 

| 12 | बोधन को किसने मरवा दिया था? 

 सिकन्दर लोदी ने। 

| 13 | बोधन और रमजनिया किसके शिष्य थे? 

 कबीर के। 

| 14 | सिकन्दर लोदी के जासूस का नाम क्या है? 

शेख़ तक़ी। 

| 15 | किसकी मजलिसों में हज़ारों लोग शामिल होने लगे थे? 

कबीर की। 

| 16 | शेख़ तक़ी कबीर को क्या मानता था? 

गुरु

| 17 | रमजनिया कौन थी?

नाचने गाने वाली वेश्या। 

| 18 | सुलतान कबीर को हराने के लिए किससे मदद माँगता है? 

वज़ीर से। 

| 19 | वज़ीर कबीर के बारे में कोतवाल से क्या झूठ फैलाने को कहता है? 

 कि कबीर और रमजनिया में ग़लत संबंध है। 

| 20 | कबीर के सत्संग में आकर कौन लोगों को भड़काने की कोशिश करते हैं? 

साधु और तुर्क 


गुरुवार, 13 नवंबर 2025

BCA 1st Sem लैला की शादी notes

एक शब्द वाले लघु प्रश्नोत्तर 

 * लैला की शादी किसके साथ होने वाली थी?

   उत्तर: उस्मान

 * मजनू निराश होकर किसमें भर्ती हो गया?

   उत्तर: मिलिट्री

 * लैला की माँ ने कितने बोरे गेहूँ माँगे थे?

   उत्तर: सत्रह

 * लैला की माँ कहाँ पर रोते हुए खड़ी थी?

   उत्तर: बाज़ार

 * शहर का नामी गुंडा कौन था?

   उत्तर: उस्मान

 * लैला की माँ मजनू से क्या खरीद लाने को कह रही थी?

   उत्तर: गेहूँ

 * सत्रह बोरे गेहूँ खरीदना मजनू के लिए कैसा था?

   उत्तर: नामुमकिन

 * मजनू ने लैला की माँ के लिए कितने सेर गेहूँ ख़रीदा था?

   उत्तर: तीन

 * लैला की माँ ने अंत में किसे सौंपने को मंजूर कर लिया था?

   उत्तर: मजनू

 * लैला की माँ को बाज़ार में कैसा माहौल मिला?

   उत्तर: लड़ाई

2. संदर्भ-प्रसंग-व्याख्या 

उद्धरण: "और भीड़ को चीर कर उस्मान दुकानदार के पास पहुँच गया – 'क्यों सेठ, लगाऊँ दो दे या दे देते हो सत्रह बोरे गेहूँ?'..." 

 * संदर्भ: यह पंक्तियाँ राधाकृष्ण द्वारा लिखित कहानी 'लैला की शादी' से ली गई हैं।

 * प्रसंग: गेहूँ की कमी से लाचार लैला की माँ की मदद के बहाने, गुंडा उस्मान अपनी ताकत दिखाकर बलपूर्वक सत्रह बोरे गेहूँ हासिल करने की कोशिश करता है।

 * व्याख्या: यह गद्यांश दिखाता है कि कैसे समाज में पैसे और ताकत (उस्मान) के सामने सच्चा प्रेम और गरीबी (मजनू) हार जाते हैं। उस्मान दुकानदार को धमकी देकर लैला की माँ की मजबूरी का फायदा उठाता है।


उद्धरण: "अब आज के समाचार-पत्र में मैं पढ़ रहा हूँ कि लैला की शादी उसी उस्मान से होनेवाली है। मजनू बेचारा निराश हो कर मिलिटरी में भर्ती हो गया।" 

 * संदर्भ: यह पंक्तियाँ कहानी 'लैला की शादी' के अंतिम हिस्से से ली गई हैं।

 * प्रसंग: मजनू के प्रेम को दरकिनार करते हुए, लैला की माँ भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने वाले उस्मान से लैला की शादी तय कर देती है, जिससे निराश होकर मजनू सैन्य सेवा के लिए निकल जाता है।

 * व्याख्या: यह कहानी का दुखांत अंत है। यह समाज की उस कठोर वास्तविकता को दर्शाता है, जहाँ प्रेम से अधिक सुरक्षा और सुविधा को महत्त्व दिया जाता है। मजनू का बलिदान और उस्मान की जीत बताती है कि आर्थिक संकट प्रेम संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकता है।


उद्धरण: "सहसा अँधेरे में बिजली की चमक की तरह वहाँ मजनू दिखलाई दे गया। शादी की ख़ुशी में वह अपने दोस्त के साथ सैर करने को निकला था। लैला की माँ उसके पास पहुँच कर गिड़गिड़ाने लगी – शादी क्या हुई, मुसीबत हो गई, पास भी जिन्स नहीं मिलती, बेटा! देखो, मदद करो..." (पृष्ठ 13)

 * संदर्भ: यह पंक्तियाँ कहानी 'लैला की शादी' के मध्य भाग से ली गई हैं।

 * प्रसंग: मजनू से शादी तय होने के बाद, बाज़ार में अराजकता और महंगाई देखकर लैला की माँ घबरा जाती है और अचानक मजनू को देखकर उससे मदद की गुहार लगाती है।

 * व्याख्या: लैला की माँ को मजनू संकट की घड़ी में आस की किरण की तरह दिखाई देता है। यह दृश्य बताता है कि कैसे समाज में अव्यवस्था, जमाखोरी और महंगाई एक खुशी के मौके (शादी) को भी बड़ी मुसीबत में बदल सकती है, और एक माँ को अपने बेटी के प्रेमी के सामने भी गिड़गिड़ाने पर मजबूर कर देती है।

पात्रों का पर आधारित टिप्पणियां 

1. मजनू 

 * सच्चा प्रेमी और लाचार: मजनू लैला से सच्चा प्रेम करता है और उसकी शादी के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने को तैयार है, लेकिन वह इतना गरीब है कि लैला की माँ द्वारा माँगे गए सत्रह बोरे गेहूँ नहीं खरीद सकता।

 * ईमानदार और मेहनती: वह नामुमकिन काम को भी पूरा करने की कोशिश करता है और तीन सेर गेहूँ खरीद लाता है, जो उसकी लगन दिखाता है।

 * निराश और त्यागी: प्रेम में असफल होने पर वह निराशा में डूब जाता है और दुनिया को छोड़कर मिलिट्री में भर्ती हो जाता है। वह दिखाता है कि सामाजिक मजबूरियों के सामने सच्चा प्रेम भी हार जाता है।

2. उस्मान 

 * धनी और बाहुबली: वह शहर का नामी गुंडा है, जिसके पास पैसा और ताकत दोनों हैं। वह अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी भी चीज़ को बलपूर्वक हासिल करने के लिए करता है।

 * अवसरवादी: वह लैला की माँ की लाचारी का फायदा उठाता है और तुरंत सारा सामान (गेहूँ) उपलब्ध कराकर शादी का प्रस्ताव रखता है, जिससे वह मजनू से बाजी जीत सके।

 * विलेन (प्रतिद्वंद्वी): वह मजनू के प्रेम का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और अंत में धन और बल के दम पर लैला को जीत लेता है।

3. लैला की माँ 

 * मज़बूर और यथार्थवादी: वह अपनी बेटी की शादी के लिए चिंतित है। वह जानती है कि बिना गेहूँ के शादी नहीं हो सकती, जो उसकी यथार्थवादी सोच दिखाता है।

 * लाचार और निर्णय लेने वाली: वह अपनी गरीबी के कारण मजनू के सच्चे प्यार को दरकिनार करके, अंत में उस व्यक्ति (उस्मान) से शादी तय करती है जो उसकी भौतिक ज़रूरतें पूरी कर सकता है।

 * परेशान: बाज़ार में सामान न मिलने पर वह अत्यंत परेशान और घबराई हुई दिखती है।

 कहानी का सारांश 

लैला की शादी की बात चल रही है। लैला की माँ लैला के प्रेमी मजनू के सामने सत्रह बोरे गेहूँ खरीदने की शर्त रखती है। मजनू के लिए यह काम नामुमकिन है क्योंकि वह गरीब है, लेकिन फिर भी वह अपनी पूरी कोशिश करता है और कुछ गेहूँ लेकर आता है। इस बीच, लैला की माँ बाज़ार में गेहूँ न मिलने और महंगाई से परेशान होकर रोने लगती है।

शहर का नामी गुंडा उस्मान उसकी लाचारी देखता है। वह लैला की माँ को बताता है कि दुनिया में मजनू ही अकेला प्रेमी नहीं है, और वह उससे लैला की शादी कराने के बदले सारा सामान उपलब्ध कराने का वादा करता है। उस्मान अपनी ताकत का इस्तेमाल करके दुकानदार से सत्रह बोरे गेहूँ समेत शादी का सारा सामान बलपूर्वक खरीदकर लैला के घर पहुँचा देता है।

लैला की माँ, सच्चे प्रेम (मजनू) के बजाय भौतिक सुरक्षा (उस्मान) को चुनती है। कहानी का अंत यह बताता है कि लैला की शादी उस्मान से हो जाती है और बेचारा मजनू निराश होकर देश सेवा के लिए मिलिट्री में भर्ती हो जाता है। यह कहानी उस सामाजिक विडंबना को उजागर करती है, जहाँ प्रेम और भावनात्मक बंधन, रोटी और कपड़े जैसी बुनियादी ज़रूरतों के सामने हार मान जाते हैं।


गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

शबरी संदर्भ प्रसंग व्याख्या नोट्स

सामान्य संदर्भ 

प्रस्तुत निम्लिखित पद/अंश राष्ट्रकवि नरेश मेहता द्वारा रचित प्रसिद्ध खंडकाव्य 'शबरी' से लिए गए हैं।

1

पद का अंश: 'था सब कुछ वीभत्स वहाँ... परिवार लोग भी सारे... काले तन पर कसे लँगोटों... लगते ज्यों हतियार! | श्रमणा जैसा नाम, किन्तु, रहना तो घोर नरक में... खोत जाएगा क्या यह... सारा जीवन इसी नरक में?'

प्रसंग: इन पंक्तियों में, शबरी के मन में अपने शबर जाति के जीवन की वीभत्सता (भयानकता) और अपनी पहचान को लेकर गहन आत्म-ग्लानि और वैराग्य का भाव उभर रहा है।

व्याख्या: शबरी अपने समुदाय के जीवन को हिंसक और घिनौना बताती है, जहाँ लोग हत्यारों की तरह दिखते हैं। वह अपने नाम 'श्रमणा' और अपनी नियति (घोर नरक जैसा जीवन) के विरोधाभास पर प्रश्न करती है। वह भयभीत है कि कहीं उसका जीवन इसी हिंसक माहौल में बर्बाद न हो जाए। यह उसके आध्यात्मिक जागरण का पहला चरण है।

2

पद का अंश: 'सब बन्धन से कहीं श्रेष्ठ है... उस प्रभु का ही बन्धन... कुल-कुटुम्ब को चिन्ता से... अच्छा है प्रभु-आराधन'

प्रसंग: शबरी अपने जीवन की निरर्थकता पर चिंतन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि सांसारिक बंधनों की अपेक्षा ईश्वर की भक्ति ही वास्तविक और श्रेष्ठ मार्ग है।

व्याख्या: शबरी यह दृढ़ निश्चय करती है कि सभी पारिवारिक और सामाजिक बंधनों से उत्तम और श्रेष्ठ केवल प्रभु का ही बंधन है। वह मानती है कि परिवार और रिश्तेदारों की चिंता में फंसे रहने से बेहतर प्रभु की आराधना करना है। यह उसका वैराग्य और ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा है।

3

पद का अंश: 'वह-वेदीयाँ सुलग चुकी थीं... वेद-पाठ था, कितनी दिव्य और भव्य थीं... शान्ति यहाँ की सारी। | पहुँचा यह मतंग कवि-आश्रम... पावन... वह-धूस... दिव्य-गंध से युक्त हवा थी... मन-भावन'

प्रसंग: इन पदों में कवि ने उस पम्पासर स्थित ऋषि मतंग के आश्रम की दिव्यता, शांति और पवित्रता का वर्णन किया है।

व्याख्या: कवि बताते हैं कि आश्रम की वन-वेदियाँ सदियों की तपस्या और वेद-पाठ से पवित्र हो चुकी हैं, इसलिए यहाँ की शांति दिव्य और भव्य है। मतंग ऋषि के इस आश्रम को कवि ने 'पावन' बताया है, जिसकी धूल (धूस) भी पवित्र है। यहाँ की हवा दिव्य-गंध से युक्त है जो मन को भाती है। यह शबरी के लिए उपयुक्त आध्यात्मिक वातावरण को दर्शाता है।

4

पद का अंश: 'क्या आत्मा की उन्नति केवल... है उच्च वर्ग तक ही सीमित? | प्रभु तो सबके पिता, भला... उनका आराधन क्यों सीमित?' | 'चौंके मतंग, वह समझा गये... कीचड़ में कमल खिला है यह। होगी अद्भुत, पर जाने किन... जन्मों का पुण्य खिला है यह।'

प्रसंग: जब ऋषि मतंग शबरी को उसकी निम्न जाति के कारण आश्रम में स्थान देने से मना करते हैं, तब शबरी तर्कपूर्ण तरीके से भक्ति के मार्ग में जाति की संकीर्णता पर सवाल उठाती है।

व्याख्या: शबरी प्रश्न करती है कि यदि प्रभु सबके पिता हैं, तो आत्मा की उन्नति और उनका आराधन केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित क्यों होना चाहिए? यह भक्ति की सार्वभौमिकता को दर्शाता है। शबरी के इस तर्क और विश्वास को सुनकर ऋषि मतंग चौंक जाते हैं। वे उसे 'कीचड़ में खिला कमल' मानते हैं, जिसका अर्थ है कि निम्न जाति से होते हुए भी वह अत्यंत पवित्र और तेजस्वी है। मतंग इसे कई जन्मों का पुण्य मानते हैं।

5


पद का अंश: 'प्रभुके श्रीमुखसे प्रवचन सुन... यह भवसागर तर जाऊँगी... पायी हूँ, गुरु की कृपा हुई... तो हरि-गुण गा तर जाऊँगी।' | 'बोले मतंग – 'बेटी शबरी! यदि अन्त्यज तू, तो कौन श्रेष्ठ... निश्चय होगी तू भक्त श्रेष्ठ। | 'मैं तुझे सौंपता गौशाला...'

प्रसंग: शबरी, ऋषि मतंग के ज्ञान और कृपा को पाकर स्वयं को धन्य मानती है। ऋषि भी उसकी भक्ति को स्वीकार कर उसे भक्तों में श्रेष्ठ घोषित करते हुए आश्रम में स्थान देते हैं।

व्याख्या: शबरी कहती है कि गुरु मतंग के उपदेशों से ही वह भवसागर को पार कर पाएगी। यह गुरु की कृपा से ही संभव हुआ है। ऋषि मतंग शबरी की भक्ति से प्रभावित होकर उसे 'बेटी' कहते हैं और घोषणा करते हैं कि यदि वह 'अन्त्यज' है, तो वह निश्चय ही भक्तों में श्रेष्ठ है। सामाजिक रूढ़ियों को त्यागकर, ऋषि उसे आश्रम के महत्वपूर्ण कार्य – गौशाला की सेवा – सौंपते हैं। यह भक्ति के सामने जातिभेद के टूटने का प्रतीक है।

शबरी लघु प्रश्नोत्तर BA 3rd sem SEP

 क्रम सं. प्रश्न (Question) उत्तर (Answer)

1 शबरी किस जाति की थी? 

शबर

2 शबरी के मन में किस बात को लेकर घोर वितृष्णा (नफरत) भर आई थी? 

परिवार-मोह

3 प्रभु-आराधन किससे श्रेष्ठ है? 

सब बन्धन

4 ऋषि मतंग का आश्रम किस नाम से जाना जाता था, जहाँ शबरी पहुँची? 

पम्पासर

5 ऋषि मतंग किस जाति की स्त्री को अपने आश्रम में नहीं रख सकते थे? 

अछूत / अन्त्यज

6 शबरी अपने आपको किस नाम से पुकारती है? 

पापी / हतभागी

7 मतंग ऋषि ने कीचड़ में किसे खिला हुआ बताया है? 

कमल

8 शबरी को किस बात की सेवा करके संतोष मिल जाने की बात उसने कही? 

गायों

9 आश्रम के सारे शिष्य और आश्रमवासी शबरी को अंदर लाए जाने पर क्या हो रहे थे? 

चकराए

10 'श्रमणा' का नाम किसके लिए उपयुक्त नहीं था? 

शबर लड़की / शबरी

बुधवार, 22 अक्टूबर 2025

B.com Logistic 3rd semester SEP कहै कबीर सुनो भाई साधो एक शब्द और एक वाक्य वाले प्रश्नोत्तर

प्रश्न - मंच पर कौन गाते हुए प्रवेश करते हैं?

उत्तर-गायक और गायिका

प्रश्न -गायक के अनुसार मानवता के दूत कौन है?

उत्तर - कबीर

प्रश्न - सच्चाई के लिए समर्पित किसका जीवन था?

उत्तर-कबीर

प्रश्न-कबीर ने किसके बल पर नई दुनिया रचाई?

उत्तर-प्रेम

प्रश्न-सम्प्रदायों और धर्मों के बीच कबीर ने किसकी जोत जलाई?

उत्तर-सत्य की

प्रश्न-कबीर किस जाति के थे? 

उत्तर -जुलाहा

प्रश्न-कबीर कहा रहते थे?

उत्तर-काशी

प्रश्न-आदमी 1 को किसने पीटा था?

उत्तर-जमींदार के कारिन्दों ने

प्रश्न- दोनों आदमियों के अनुसार उन्हें पीटे जाने का क्या कारण था?

उत्तर - वे जाति के चमार थे इसलिए पीटा गया था।

प्रश्न- गायक-गायिका लोगों को किस रास्तें पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे?

उत्तर-सत्य के रास्ते पर

प्रश्न-समाज किन दो हिस्सों में बंटा हुआ है?

उत्तर- जातियों और फिरकों में

प्रश्न-फकीरों के गीत जलते हुए घावों पर क्या करते हैं?

उत्तर-मरहम लगाते हैं।

प्रश्न-प्यासों के लिए शीतल जल क्या है?

उत्तर-फकीरों की वाणी

प्रश्न-व्यक्ति की आँखें कैसे अँधी हो गयी थी?

उत्तर-उसकी आँखों में जलती सलाखे घुसेड़ की गयी थी।

प्रश्न- किन्होंने व्यक्ति की आँखों में जलती सलाखे घुसेड़ी थी?

उत्तर - वर्दीधारियों ने।

प्रश्न-कबीर काशी में कहाँ रहते थे?

उत्तर-जुलाहा पट्टी में।

प्रश्न-कबीर किसे अपना पूरा थान दे देते हैं?

उत्तर -गरीब आदमी को

प्रश्न-कबीर को पूरा थान देने से रोकने के लिए कौन आते हैं?

उत्तर -रैदास

प्रश्न-कबीर के तीनों मित्र कौन-कौन हैं?

उत्तर-रैदास, सुदर्शन,गोरा

प्रश्न-कबीर बनारस के पंडितों को क्या कहकर बुलाते थे?

उत्तर-ठग, धूर्त, पाखंडी, लोभी, लम्पट

प्रश्न- कौन कबीर से उसकी जाति पूछता है?

उत्तर- तिलकधारी साधु

प्रश्न-कबीर और रैदास को साधुओं की मार से बचाने कौन आते हैं?

उत्तर-बिजली खाँ और बोधन

प्रश्न-किसकी शह पाकर ये साधु, मुल्ला और तुर्क इतराते फिरते थे?

उत्तर-कोतवाल

प्रश्न- गीध (गिद्ध) के समान कौन था?

उत्तर -कोतवाल

प्रश्न-कबीर के माता-पिता का नाम क्या है?

उत्तर-नीरू और नीमा

प्रश्न-नीरू सारा जीवन किसके फेर में पड़े रहे?

उत्तर-साधु-संतों के फेर में

प्रश्न-कबीर अपने घर पर आधी-आधी रात तक क्या करते रहते थे?

उत्तर-सत्संग

प्रश्न-कौन कबीर की जान के पीछे पड़े हैं?

उत्तर-पंडित-मुल्ला

प्रश्न-कोतवाल की बीवी की क्या चीज़ चोरी हो गयी थी?

उत्तर-झुमका

प्रश्न-झुमका किसने वास्तव में चुराया था?

उत्तर-कोतवाल के साले ने

प्रश्न-झुमका चुराने का झूठा आरोप किन पर लगाया गया था?

उत्तर- बस्ती के लोगों पर

प्रश्न-बिजली खाँ और बोधन कहा गए थे?

उत्तर -मगहर

प्रश्न-किसान फरियाद लेकर किसके पास जाता है?

उत्तर-दीवान मियाँ भुवा

प्रश्न-बोधन को दिल्ली से किस लिए बुलावा आता है?

उत्तर-भजन-मंडली करने के लिए

प्रश्न-बोधन के साथ दिल्ली भजन मंडली में किसे साथ भेजने की बात कबीर कहते हैं?

उत्तर-बिजली खाँ को

प्रश्न-कबीर बोधन से किसे किसानों का दुख बताने को कहते हैं?

उत्तर- सुलतान को

प्रश्न-कबीर के गीत कौन गा रही थी?

उत्तर-लोई 

प्रश्न-लोई किसकी बेटी थी?

उत्तर-वनखंडी साधु

प्रश्न-लोई कबीर के सामने क्या रखती है?

उत्तर-दूध से भरा पात्र

प्रश्न-गंगा पार से कौन आने वाले थे जिसकी प्रतीक्षा कबीर कर रहे थे?

उत्तर-फकीर/रैदास

प्रश्न-वनखंडी साधु के घर कौन प्रवेश करते हैं?

उत्तर-रैदास

प्रश्न-कबीर के माता-पिता किससे उनका विवाह तय करते हैं?

उत्तर-लोई

प्रश्न-कबीर के घर वेवक्त कौन आ जाते हैं?

उत्तर-अवधूतों की मंडली

प्रश्न- कबीर और लोई किस दुविधा में पड़ जाते हैं?

उत्तर-कि अवधूतों के सत्कार की दुविधा में।

प्रश्न-कबीर और लोई अवधूतों का सत्कार क्यों नहीं कर पा रहे थे?

उत्तर-क्योंकि उनके घर में अन्न का एक दाना नहीं था।

प्रश्न-लोई किससे पैसे ले आती है?

उत्तर-साहूकार के बेटे से

 प्रश्न-लोई पर कौन आसक्त था?

उत्तर-साहूकार का बेटा।

प्रश्न-साहूकार का बेटा लोई को किस शर्त पर पैसे देता है?

उत्तर - कि लोई रात को उससे मिलने आएगी।

प्रश्न- कबीर किस तरह लोई को साहूकार के बेटे के पास लेकर जाते हैं?

उत्तर - कंधे पर बिठाकर