एक शब्द वाले लघु प्रश्नोत्तर
* लैला की शादी किसके साथ होने वाली थी?
उत्तर: उस्मान
* मजनू निराश होकर किसमें भर्ती हो गया?
उत्तर: मिलिट्री
* लैला की माँ ने कितने बोरे गेहूँ माँगे थे?
उत्तर: सत्रह
* लैला की माँ कहाँ पर रोते हुए खड़ी थी?
उत्तर: बाज़ार
* शहर का नामी गुंडा कौन था?
उत्तर: उस्मान
* लैला की माँ मजनू से क्या खरीद लाने को कह रही थी?
उत्तर: गेहूँ
* सत्रह बोरे गेहूँ खरीदना मजनू के लिए कैसा था?
उत्तर: नामुमकिन
* मजनू ने लैला की माँ के लिए कितने सेर गेहूँ ख़रीदा था?
उत्तर: तीन
* लैला की माँ ने अंत में किसे सौंपने को मंजूर कर लिया था?
उत्तर: मजनू
* लैला की माँ को बाज़ार में कैसा माहौल मिला?
उत्तर: लड़ाई
2. संदर्भ-प्रसंग-व्याख्या
उद्धरण: "और भीड़ को चीर कर उस्मान दुकानदार के पास पहुँच गया – 'क्यों सेठ, लगाऊँ दो दे या दे देते हो सत्रह बोरे गेहूँ?'..."
* संदर्भ: यह पंक्तियाँ राधाकृष्ण द्वारा लिखित कहानी 'लैला की शादी' से ली गई हैं।
* प्रसंग: गेहूँ की कमी से लाचार लैला की माँ की मदद के बहाने, गुंडा उस्मान अपनी ताकत दिखाकर बलपूर्वक सत्रह बोरे गेहूँ हासिल करने की कोशिश करता है।
* व्याख्या: यह गद्यांश दिखाता है कि कैसे समाज में पैसे और ताकत (उस्मान) के सामने सच्चा प्रेम और गरीबी (मजनू) हार जाते हैं। उस्मान दुकानदार को धमकी देकर लैला की माँ की मजबूरी का फायदा उठाता है।
उद्धरण: "अब आज के समाचार-पत्र में मैं पढ़ रहा हूँ कि लैला की शादी उसी उस्मान से होनेवाली है। मजनू बेचारा निराश हो कर मिलिटरी में भर्ती हो गया।"
* संदर्भ: यह पंक्तियाँ कहानी 'लैला की शादी' के अंतिम हिस्से से ली गई हैं।
* प्रसंग: मजनू के प्रेम को दरकिनार करते हुए, लैला की माँ भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने वाले उस्मान से लैला की शादी तय कर देती है, जिससे निराश होकर मजनू सैन्य सेवा के लिए निकल जाता है।
* व्याख्या: यह कहानी का दुखांत अंत है। यह समाज की उस कठोर वास्तविकता को दर्शाता है, जहाँ प्रेम से अधिक सुरक्षा और सुविधा को महत्त्व दिया जाता है। मजनू का बलिदान और उस्मान की जीत बताती है कि आर्थिक संकट प्रेम संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकता है।
उद्धरण: "सहसा अँधेरे में बिजली की चमक की तरह वहाँ मजनू दिखलाई दे गया। शादी की ख़ुशी में वह अपने दोस्त के साथ सैर करने को निकला था। लैला की माँ उसके पास पहुँच कर गिड़गिड़ाने लगी – शादी क्या हुई, मुसीबत हो गई, पास भी जिन्स नहीं मिलती, बेटा! देखो, मदद करो..." (पृष्ठ 13)
* संदर्भ: यह पंक्तियाँ कहानी 'लैला की शादी' के मध्य भाग से ली गई हैं।
* प्रसंग: मजनू से शादी तय होने के बाद, बाज़ार में अराजकता और महंगाई देखकर लैला की माँ घबरा जाती है और अचानक मजनू को देखकर उससे मदद की गुहार लगाती है।
* व्याख्या: लैला की माँ को मजनू संकट की घड़ी में आस की किरण की तरह दिखाई देता है। यह दृश्य बताता है कि कैसे समाज में अव्यवस्था, जमाखोरी और महंगाई एक खुशी के मौके (शादी) को भी बड़ी मुसीबत में बदल सकती है, और एक माँ को अपने बेटी के प्रेमी के सामने भी गिड़गिड़ाने पर मजबूर कर देती है।
पात्रों का पर आधारित टिप्पणियां
1. मजनू
* सच्चा प्रेमी और लाचार: मजनू लैला से सच्चा प्रेम करता है और उसकी शादी के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने को तैयार है, लेकिन वह इतना गरीब है कि लैला की माँ द्वारा माँगे गए सत्रह बोरे गेहूँ नहीं खरीद सकता।
* ईमानदार और मेहनती: वह नामुमकिन काम को भी पूरा करने की कोशिश करता है और तीन सेर गेहूँ खरीद लाता है, जो उसकी लगन दिखाता है।
* निराश और त्यागी: प्रेम में असफल होने पर वह निराशा में डूब जाता है और दुनिया को छोड़कर मिलिट्री में भर्ती हो जाता है। वह दिखाता है कि सामाजिक मजबूरियों के सामने सच्चा प्रेम भी हार जाता है।
2. उस्मान
* धनी और बाहुबली: वह शहर का नामी गुंडा है, जिसके पास पैसा और ताकत दोनों हैं। वह अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी भी चीज़ को बलपूर्वक हासिल करने के लिए करता है।
* अवसरवादी: वह लैला की माँ की लाचारी का फायदा उठाता है और तुरंत सारा सामान (गेहूँ) उपलब्ध कराकर शादी का प्रस्ताव रखता है, जिससे वह मजनू से बाजी जीत सके।
* विलेन (प्रतिद्वंद्वी): वह मजनू के प्रेम का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और अंत में धन और बल के दम पर लैला को जीत लेता है।
3. लैला की माँ
* मज़बूर और यथार्थवादी: वह अपनी बेटी की शादी के लिए चिंतित है। वह जानती है कि बिना गेहूँ के शादी नहीं हो सकती, जो उसकी यथार्थवादी सोच दिखाता है।
* लाचार और निर्णय लेने वाली: वह अपनी गरीबी के कारण मजनू के सच्चे प्यार को दरकिनार करके, अंत में उस व्यक्ति (उस्मान) से शादी तय करती है जो उसकी भौतिक ज़रूरतें पूरी कर सकता है।
* परेशान: बाज़ार में सामान न मिलने पर वह अत्यंत परेशान और घबराई हुई दिखती है।
कहानी का सारांश
लैला की शादी की बात चल रही है। लैला की माँ लैला के प्रेमी मजनू के सामने सत्रह बोरे गेहूँ खरीदने की शर्त रखती है। मजनू के लिए यह काम नामुमकिन है क्योंकि वह गरीब है, लेकिन फिर भी वह अपनी पूरी कोशिश करता है और कुछ गेहूँ लेकर आता है। इस बीच, लैला की माँ बाज़ार में गेहूँ न मिलने और महंगाई से परेशान होकर रोने लगती है।
शहर का नामी गुंडा उस्मान उसकी लाचारी देखता है। वह लैला की माँ को बताता है कि दुनिया में मजनू ही अकेला प्रेमी नहीं है, और वह उससे लैला की शादी कराने के बदले सारा सामान उपलब्ध कराने का वादा करता है। उस्मान अपनी ताकत का इस्तेमाल करके दुकानदार से सत्रह बोरे गेहूँ समेत शादी का सारा सामान बलपूर्वक खरीदकर लैला के घर पहुँचा देता है।
लैला की माँ, सच्चे प्रेम (मजनू) के बजाय भौतिक सुरक्षा (उस्मान) को चुनती है। कहानी का अंत यह बताता है कि लैला की शादी उस्मान से हो जाती है और बेचारा मजनू निराश होकर देश सेवा के लिए मिलिट्री में भर्ती हो जाता है। यह कहानी उस सामाजिक विडंबना को उजागर करती है, जहाँ प्रेम और भावनात्मक बंधन, रोटी और कपड़े जैसी बुनियादी ज़रूरतों के सामने हार मान जाते हैं।
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