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सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

हमारे जीवन में वनों का महत्व लघु प्रश्नोत्तर और संदर्भ प्रसंग व्याख्या


1 मनुस्मृति में वृक्ष काटने वाले को क्या कहा गया है?

 पापी

2 भारतीय संस्कृति का श्रेष्ठतम और सुन्दरतम उद्भव कहाँ हुआ?

 तपोवनों (या आश्रमों)

3 बुद्ध भगवान को किस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था?

 वट-वृक्ष

4 महाभारत में वर्णित वन का नाम क्या है जिसे जलाया गया था?

 खांडव

5 वृक्षारोपण को आजकल क्या बना दिया गया है? 

फैशन

6 शकुन्तला वृक्षों को पानी दिए बिना स्वयं क्या ग्रहण नहीं करती थी?

 पानी (या जल)

7 सती सीता किस वन में रही थीं, जिसके कारण करुणापूर्ण वातावरण की छाप है? 

अशोक

8 हमारे पास अन्न न होने का मुख्य कारण क्या है?

 पानी (या जल)

9 कृष्ण भगवान ने अपना संदेश कहाँ सुनाया था? 

वृन्दावन

10 अग्निपुराण के अनुसार, वृक्ष लगाने वाला कितने पितरों को मोक्ष दिलाता है?

 तीस हज़ार (या 30,000)


संदर्भ-प्रसंग-व्याख्या (Reference to Context) के लिए महत्वपूर्ण नोट्स नीचे दिए गए हैं।

1. अवतरण: "हमारी संस्कृति में जो सुन्दरतम और श्रेष्ठतम है, उसका उद्भव आश्रमों और तपोवनों में हुआ था। हमारे संस्कारों पर नंदन-वन के सौन्दर्य और सती सीता के कारण अशोक वन के करुणापूर्ण वातावरण की छाप लगी हुई है। वृन्दावन को भी हम कैसे भूल सकते हैं, जहाँ कृष्ण भगवान ने अपना संदेश हमें सुनाया था।"

संदर्भ (Reference):

प्रस्तुत गद्यांश कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा लिखित निबंध "हमारे जीवन में वनों का महत्व" से लिया गया है।

प्रसंग (Context):

इस भाग में लेखक भारतीय संस्कृति के विकास में वनों और प्राकृतिक स्थानों के केंद्रीय महत्व को बता रहे हैं। वह सिद्ध करते हैं कि आश्रम और तपोवन ही हमारी सभ्यता के मूल प्रेरणास्रोत रहे हैं।

व्याख्या (Explanation):

लेखक बताते हैं कि भारतीय संस्कृति का जो भी सुंदर, महान और श्रेष्ठ पक्ष है, उसका जन्म जंगलों (आश्रमों) के शांत और पवित्र वातावरण में हुआ।

हमारी जीवनशैली और विचारों पर पौराणिक वनों का गहरा प्रभाव है—जैसे इंद्र का नंदन-वन (सौंदर्य का प्रतीक) और लंका का अशोक-वन (जहाँ सीता जी ने दुःख सहा, जो करुणा का प्रतीक है)।

अंत में, वृन्दावन का उल्लेख किया गया है, जहाँ भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाएँ रची और ज्ञान का उपदेश दिया। यह दर्शाता है कि वन सिर्फ प्राकृतिक स्थान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी हैं।

2. अवतरण: "वृक्ष ही जल है और जल ही रोटी है और रोटी ही जीवन है।" यह नग्न सत्य है। आज सभी भारतीय हृदयों में असन्तोष भरा है, क्योंकि हमारे पास खाने को अन्न नहीं है। हमारे पास अन्न नहीं है, क्योंकि पानी संग्रह करने की पुरानी पद्धति हम हस्तगत नहीं कर सके। हमारे पास पानी नहीं है, वर्षा अनिश्चित है, क्योंकि हम तरु-महिमा भूल गए।"

संदर्भ (Reference):

प्रस्तुत गद्यांश कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा लिखित निबंध "हमारे जीवन में वनों का महत्व" से लिया गया है।

प्रसंग (Context):

इस अंश में लेखक वृक्ष, जल और अन्न के बीच के अटूट संबंध को स्थापित करते हुए भारतीय समाज में फैली गरीबी और असंतोष का कारण बता रहे हैं।

व्याख्या (Explanation):

लेखक एक सीधे और मूलभूत सत्य (नग्न सत्य) को प्रस्तुत करते हैं: वृक्ष जल को बचाते हैं, जल अन्न पैदा करता है, और अन्न ही जीवन का आधार है।

वह बताते हैं कि आज भारत में जो असंतुष्टि (असन्तोष) और भुखमरी (अन्न की कमी) है, उसका मूल कारण पानी की कमी है।

पानी की कमी इसलिए है क्योंकि हमने पानी को बचाने की पुरानी (पारंपरिक) पद्धतियाँ छोड़ दी हैं।

पानी की कमी और वर्षा की अनिश्चितता का अंतिम कारण है वृक्षों का महत्व (तरु-महिमा) भूल जाना। यानी, वनों की कटाई से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है, जिसका सीधा असर जल और अन्न की उपलब्धता पर पड़ रहा है।

3. अवतरण: "जो मनुष्य लोगों के हित के लिए वृक्ष लगाता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है। वृक्ष लगाने वाला मनुष्य अपने 30,000 भूत और भावी पितरों को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है।"

संदर्भ (Reference):

प्रस्तुत गद्यांश कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा लिखित निबंध "हमारे जीवन में वनों का महत्व" से लिया गया है।

प्रसंग (Context):

इस अंश में लेखक वृक्षारोपण के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डाल रहे हैं, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।

व्याख्या (Explanation):

लेखक अग्निपुराण के उद्धरण का उपयोग करते हुए वृक्ष लगाने के कार्य को एक महानतम पुण्य घोषित करते हैं।

यह कार्य केवल लौकिक लाभ (पर्यावरण) के लिए नहीं, बल्कि परलोक सुधारने के लिए भी है।

जो व्यक्ति जनता के कल्याण (लोगों के हित) की भावना से वृक्ष लगाता है, उसे मोक्ष (जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति) प्राप्त होता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि वृक्षारोपण करने वाला व्यक्ति केवल स्वयं को नहीं, बल्कि अपने तीस हज़ार भूत (बीते हुए) और भावी (आने वाले) पितरों (पूर्वजों) को भी मुक्ति (मोक्ष) दिलाने में सहायता करता है। यह वृक्ष लगाने के महत्व को पीढ़ी-दर-पीढ़ी के कल्याण से जोड़ता है।

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