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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

शबरी संदर्भ प्रसंग व्याख्या नोट्स

सामान्य संदर्भ 

प्रस्तुत निम्लिखित पद/अंश राष्ट्रकवि नरेश मेहता द्वारा रचित प्रसिद्ध खंडकाव्य 'शबरी' से लिए गए हैं।

1

पद का अंश: 'था सब कुछ वीभत्स वहाँ... परिवार लोग भी सारे... काले तन पर कसे लँगोटों... लगते ज्यों हतियार! | श्रमणा जैसा नाम, किन्तु, रहना तो घोर नरक में... खोत जाएगा क्या यह... सारा जीवन इसी नरक में?'

प्रसंग: इन पंक्तियों में, शबरी के मन में अपने शबर जाति के जीवन की वीभत्सता (भयानकता) और अपनी पहचान को लेकर गहन आत्म-ग्लानि और वैराग्य का भाव उभर रहा है।

व्याख्या: शबरी अपने समुदाय के जीवन को हिंसक और घिनौना बताती है, जहाँ लोग हत्यारों की तरह दिखते हैं। वह अपने नाम 'श्रमणा' और अपनी नियति (घोर नरक जैसा जीवन) के विरोधाभास पर प्रश्न करती है। वह भयभीत है कि कहीं उसका जीवन इसी हिंसक माहौल में बर्बाद न हो जाए। यह उसके आध्यात्मिक जागरण का पहला चरण है।

2

पद का अंश: 'सब बन्धन से कहीं श्रेष्ठ है... उस प्रभु का ही बन्धन... कुल-कुटुम्ब को चिन्ता से... अच्छा है प्रभु-आराधन'

प्रसंग: शबरी अपने जीवन की निरर्थकता पर चिंतन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि सांसारिक बंधनों की अपेक्षा ईश्वर की भक्ति ही वास्तविक और श्रेष्ठ मार्ग है।

व्याख्या: शबरी यह दृढ़ निश्चय करती है कि सभी पारिवारिक और सामाजिक बंधनों से उत्तम और श्रेष्ठ केवल प्रभु का ही बंधन है। वह मानती है कि परिवार और रिश्तेदारों की चिंता में फंसे रहने से बेहतर प्रभु की आराधना करना है। यह उसका वैराग्य और ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा है।

3

पद का अंश: 'वह-वेदीयाँ सुलग चुकी थीं... वेद-पाठ था, कितनी दिव्य और भव्य थीं... शान्ति यहाँ की सारी। | पहुँचा यह मतंग कवि-आश्रम... पावन... वह-धूस... दिव्य-गंध से युक्त हवा थी... मन-भावन'

प्रसंग: इन पदों में कवि ने उस पम्पासर स्थित ऋषि मतंग के आश्रम की दिव्यता, शांति और पवित्रता का वर्णन किया है।

व्याख्या: कवि बताते हैं कि आश्रम की वन-वेदियाँ सदियों की तपस्या और वेद-पाठ से पवित्र हो चुकी हैं, इसलिए यहाँ की शांति दिव्य और भव्य है। मतंग ऋषि के इस आश्रम को कवि ने 'पावन' बताया है, जिसकी धूल (धूस) भी पवित्र है। यहाँ की हवा दिव्य-गंध से युक्त है जो मन को भाती है। यह शबरी के लिए उपयुक्त आध्यात्मिक वातावरण को दर्शाता है।

4

पद का अंश: 'क्या आत्मा की उन्नति केवल... है उच्च वर्ग तक ही सीमित? | प्रभु तो सबके पिता, भला... उनका आराधन क्यों सीमित?' | 'चौंके मतंग, वह समझा गये... कीचड़ में कमल खिला है यह। होगी अद्भुत, पर जाने किन... जन्मों का पुण्य खिला है यह।'

प्रसंग: जब ऋषि मतंग शबरी को उसकी निम्न जाति के कारण आश्रम में स्थान देने से मना करते हैं, तब शबरी तर्कपूर्ण तरीके से भक्ति के मार्ग में जाति की संकीर्णता पर सवाल उठाती है।

व्याख्या: शबरी प्रश्न करती है कि यदि प्रभु सबके पिता हैं, तो आत्मा की उन्नति और उनका आराधन केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित क्यों होना चाहिए? यह भक्ति की सार्वभौमिकता को दर्शाता है। शबरी के इस तर्क और विश्वास को सुनकर ऋषि मतंग चौंक जाते हैं। वे उसे 'कीचड़ में खिला कमल' मानते हैं, जिसका अर्थ है कि निम्न जाति से होते हुए भी वह अत्यंत पवित्र और तेजस्वी है। मतंग इसे कई जन्मों का पुण्य मानते हैं।

5


पद का अंश: 'प्रभुके श्रीमुखसे प्रवचन सुन... यह भवसागर तर जाऊँगी... पायी हूँ, गुरु की कृपा हुई... तो हरि-गुण गा तर जाऊँगी।' | 'बोले मतंग – 'बेटी शबरी! यदि अन्त्यज तू, तो कौन श्रेष्ठ... निश्चय होगी तू भक्त श्रेष्ठ। | 'मैं तुझे सौंपता गौशाला...'

प्रसंग: शबरी, ऋषि मतंग के ज्ञान और कृपा को पाकर स्वयं को धन्य मानती है। ऋषि भी उसकी भक्ति को स्वीकार कर उसे भक्तों में श्रेष्ठ घोषित करते हुए आश्रम में स्थान देते हैं।

व्याख्या: शबरी कहती है कि गुरु मतंग के उपदेशों से ही वह भवसागर को पार कर पाएगी। यह गुरु की कृपा से ही संभव हुआ है। ऋषि मतंग शबरी की भक्ति से प्रभावित होकर उसे 'बेटी' कहते हैं और घोषणा करते हैं कि यदि वह 'अन्त्यज' है, तो वह निश्चय ही भक्तों में श्रेष्ठ है। सामाजिक रूढ़ियों को त्यागकर, ऋषि उसे आश्रम के महत्वपूर्ण कार्य – गौशाला की सेवा – सौंपते हैं। यह भक्ति के सामने जातिभेद के टूटने का प्रतीक है।

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