कहे कबीर सुनो भाई साधो
संदर्भ-प्रसंग-व्याख्या
पंक्तियाँ:
हमन है इश्क मस्ताना, हमन की होशियारी क्या,
रहें आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या,
जो बिछड़े हैं पियारे से, भटकते दर भी दर फिरते,
हमारा यार है हम में, हमन को इंतज़ारी क्या,
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाजुक है, हमन सर बोझ भारी क्या।
१. संदर्भ (Reference)
प्रस्तुत पंक्तियाँ नरेंद्र मोहन द्वारा लिखित नाटक 'कहे कबीर सुनो भाई साधो' से उद्धृत हैं। यह नाटक संत कबीरदास के जीवन, सामाजिक विरोध और उनकी निर्गुण भक्ति के दर्शन पर आधारित है। ये पंक्तियाँ कबीर के मस्त मौला फकीर स्वभाव, उनकी आध्यात्मिक स्वतंत्रता और आत्म-साक्षात्कार की अवस्था को दर्शाती हैं।
२. प्रसंग (Context)
यह पद सामान्यतः कबीर की विचारधारा और उनके जीवन-दर्शन को प्रकट करता है। नाटक के भीतर यह उन क्षणों में प्रयुक्त हुआ होगा जब कबीर लोक-लाज और सांसारिक बंधनों को त्यागकर परमात्मा के प्रेम (इश्क मस्ताना) में लीन हो जाते हैं। यह पद उनकी वैराग्य भावना और अद्वैत सिद्धांत को दर्शाता है, जहाँ उन्हें ईश्वर बाहर कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह उनके अपने भीतर ही मौजूद है। यह पंक्तियाँ उन लोगों के लिए भी एक संदेश है जो सांसारिक मोह को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहते हैं।
३. व्याख्या (Explanation)
इन पंक्तियों में कबीर (या नाटक में कबीर का चरित्र) अपनी आंतरिक अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि:
"हमन है इश्क मस्ताना, हमन की होशियारी क्या,"
हम तो ईश्वरीय प्रेम (इश्क) में डूबे हुए मस्त-मौला (मस्ताना) हैं। जब हृदय में सच्चा प्रेम और मस्ती समाई हुई है, तो हमें दुनियावी चालाकी (होशियारी) या समझदारी दिखाने की क्या आवश्यकता है? प्रेम की राह में ज्ञान और चालाकी का कोई काम नहीं है।
"रहें आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या,"
हम तो स्वयं में आज़ाद (मुक्त) हैं, हमें इस संसार (जग) से यारी (दोस्ती/संबंध) रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। जो आत्मा ईश्वर से जुड़ गई, उसके लिए संसार का मोह और संबंध तुच्छ हो जाता है।
"जो बिछड़े हैं पियारे से, भटकते दर भी दर फिरते, हमारा यार है हम में, हमन को इंतज़ारी क्या,"
जो लोग अपने प्रियतम (परमात्मा) से बिछड़ गए हैं, वे ही दर-दर (जगह-जगह) भटकते फिरते हैं। लेकिन हमारा यार (ईश्वर/प्रियतम) तो हमारे ही भीतर निवास करता है। जब ईश्वर हमारे अंदर ही है, तो हमें उसकी प्रतीक्षा (इंतज़ारी) करने या उसे बाहर खोजने की क्या आवश्यकता है? यह आत्म-ज्ञान का भाव है।
"कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से, जो चलना राह नाजुक है, हमन सर बोझ भारी क्या।"
कबीर कहते हैं कि ईश्वरीय प्रेम (इश्क) में मतवाला (माता) होकर, अपने दिल से द्वैत (दुई - मैं और तुम का भेद, जीवात्मा और परमात्मा का भेद) को दूर कर देना चाहिए।
क्योंकि मोक्ष की राह (राह नाजुक) अत्यंत बारीक और कठिन है, इसलिए हमें अपने सिर पर सांसारिक चिंता और अहंकार रूपी भारी बोझ (बोझ भारी) रखकर चलने की कोई ज़रूरत नहीं है। इस राह पर हल्के होकर (अहंकार रहित होकर) ही चला जा सकता है।
४. विशेष (Special Points)
रहस्यवाद और निर्गुण भक्ति: इन पंक्तियों में कबीर की निर्गुण भक्ति का रहस्यवादी स्वरूप स्पष्ट है, जहाँ ईश्वर को बाहर नहीं, बल्कि हृदय के भीतर खोजा जाता है।
फकीरी स्वभाव: यह पद कबीर के मस्त-मौला, बेपरवाह और सांसारिक बंधनों से मुक्त फकीरी स्वभाव को दर्शाता है।
अद्वैतवाद: "हमारा यार है हम में" की पंक्ति अद्वैत दर्शन का सार है—जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं।
प्रतीकात्मकता: 'इश्क मस्ताना' ईश्वरीय प्रेम का प्रतीक है, 'होशियारी' दुनियावी ज्ञान का, और 'बोझ भारी' अहंकार और मोह का प्रतीक है।
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