हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में उठा करती है।
पर किसी खास पे,
नज़रे जाकर रूकती है।
उस ख़्वाहिश के साथ
हर लम्हा हम जीते है,
हर पल उसे अपनी पलकों पर सवारते है।
हज़ारों ख़्वाहिशें जो दिल में उठा करती है।
पर किसी खास पे नज़रे जाकर रूकती है।
कोई कहता है ख़्वाहिशें है बुलबुलें हैं पानी के,
बनती है एक पल में,पल में टूट जाती है।
तो क्या हुआ जो ये ख़्वाहिशें है बुलबुलें पानी के।
ज़िन्दगी भी तो ऐसी है कि आज आयी तो कल जानी है
फिर क्यों न ख़्वाहिशें दिल में उठा करें।
और उन ख़्वाहिशों में हम जिया करें।
उन ख़्वाहिशों से किसी की ज़िन्दगी भी सवार दिया करें।
हज़ारों ख़्वाहिशें इसीलिए दिल में उठा करती है
और किसी खास पे इसीलिए ही नज़रें जाकर रूकती है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!
Thans Sir. Aapki poem bhi achchhi lagi.
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