कैसे-कैसे रंग ज़िन्दगी के
आँखों में उतरते जाते है
कुछ रंग आखों को चमकाते है
कुछ तिरछे कर देते है
कुछ जुगनुओं की तरह
इधर-उधर पलकों को नचाते
कुछ विस्मय में डाल देते है
कुछ काजल धो देते है
तो कुछ सिर्फ थोड़ा गिला करते है
ज़िन्दगी के ये रंग आँखों में सदा रहते है
जब नहीं रहते तो अँधेरा कर देते है
मन में समाकर वो फिर सपना बनकर आँखों को जगाते रहते है
कैसे-कैसे करके ये रंग ज़िन्दगी के
आँखों में उतरते जाते है।
मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010
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