बन्द
हो चुकी है किताब सपनों की
थम
चुकी है कविता दिल के अरमानों की
रुक
चुकी है कलम, रुक गए मेरे हाथ
विचार,
विमर्श, कल्पनाएँ
सोच,
समझ, सारी कलाएँ
रस,छन्द,
अलंकार
सब
धरे-के-धरे रह गए है
खो
चुकी शक्ति शब्दों की भी
लगता
है अब ऐसा,
जैसे
लिखी ही नहीं थी कविता कभी
एक
वक्त था जब धारा सी बहा करती थी
एक
वक्त आज है जहाँ स्रोत ही सूख गया है
पर
फिर भी धारा तो धारा है
जब
से बही है मार्ग तो बना गयी है
वर्षा
के होते ही फिर से बहेगी।
पर
वर्षा होगी कब पता नहीं?
जीवन में ऐसा मोड़ आया
जिसकी मधुर कल्पना थी मन में कही
हाथ थाम कर दूर मंजिल तक पहुँचेंगे
आशा थी बड़ी।
हाथ थाम कर ले जा रहा है मुझे
मैं साथ चली जा रही हूँ
पर किस दिशा में
मुझे पता नहीं, पता नहीं, पता नहीं।
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