गिरिजाकुमार माथुर की कविता "छाया मत छूना" एक गहन दार्शनिक संदेश देती है, जो हमें मोह-माया, भ्रामक सुख, और जीवन की अस्थिरता को समझने की प्रेरणा देती है। इसका मूल भावार्थ इस प्रकार है:
1. मोह-माया से दूर रहने की सीख
कवि चेतावनी देते हैं कि छायाओं को छूने से दुख दोगुना हो जाएगा। यहाँ "छाया" प्रतीक है उन आकर्षणों का, जो वास्तविक नहीं होते—जो केवल भ्रम हैं। जीवन में हमें कई बार कुछ सुहावने और सुखद अनुभव होते हैं, लेकिन वे क्षणिक होते हैं। यदि हम इन्हें पकड़ने का प्रयास करेंगे, तो केवल दुःख ही हाथ लगेगा।
2. जीवन की अस्थिरता और वास्तविकता को स्वीकार करना
कवि कहते हैं कि जीवन में यादों की तरह सुखद क्षण आते हैं और चले जाते हैं। जैसे बालों में लगे फूलों की सुगंध रह जाती है, लेकिन फूल मुरझा जाते हैं, वैसे ही जीवन की खुशियाँ अस्थायी होती हैं। जो बीत गया, उसे पकड़ने का प्रयास करना व्यर्थ है।
3. भौतिक उपलब्धियाँ और भ्रम
यश, वैभव, और मान-सम्मान भी मृगतृष्णा के समान हैं। मनुष्य जितना इनकी ओर भागता है, उतना ही भ्रमित होता जाता है। प्रभुता (सत्ता, शक्ति) का आकर्षण एक छलावा है। हर चमकती चीज़ के पीछे अंधकार छिपा होता है। अतः, व्यक्ति को यथार्थ को अपनाकर ही संतोष पाना चाहिए।
4. कठिनाइयों का सामना और भविष्य की ओर देखना
कवि बताते हैं कि मनुष्य का साहस कई बार दुविधाओं के कारण डगमगा जाता है। शारीरिक सुख संभव है, लेकिन मानसिक कष्टों का कोई अंत नहीं। जीवन में कई इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन यह सोचकर दुखी होने का कोई लाभ नहीं।
कवि हमें यह सीख देते हैं कि बीते हुए सुखों और अधूरी इच्छाओं के पीछे भागने की बजाय, हमें यथार्थ को स्वीकार कर भविष्य की ओर देखना चाहिए।
निष्कर्ष:
"छाया मत छूना" कविता हमें यह संदेश देती है कि हमें भ्रामक सुखों और मृगतृष्णा का पीछा करने की बजाय जीवन के वास्तविक पहलुओं को अपनाना चाहिए। मोह-माया में उलझकर दुखी होने से बेहतर है कि हम सत्य को स्वीकार करें और संतोषपूर्वक आगे बढ़ें।
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