कविता का सारांश:
केदारनाथ अग्रवाल की कविता "चंद्र गहना से लौटती बेर" ग्रामीण जीवन की सुंदरता, सरलता और श्रमशीलता का चित्रण करती है। इसमें कवि ने प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंध को उजागर किया है।
कविता में "चंद्र गहना" एक पहाड़ी स्थान या प्रकृति का रमणीय स्थल हो सकता है, जहाँ से लौटते हुए व्यक्ति अपने आसपास के ग्रामीण परिवेश को देखता है। वह खेतों, नदियों, पेड़ों और मेहनतकश किसानों के जीवन को निहारता है। यह कविता गाँव के उन लोगों के परिश्रम और संघर्ष को दर्शाती है, जो प्रकृति की गोद में रहते हुए अपनी जीविका चलाते हैं।
कवि का दृष्टिकोण श्रम के प्रति आदरभाव का है। वह मानते हैं कि किसान और श्रमिक ही समाज की असली रीढ़ हैं। इस कविता में प्राकृतिक सौंदर्य, श्रम का महत्त्व और गाँव की आत्मीयता एक साथ मिलकर एक मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हैं।
मुख्य विषय:
- प्रकृति का सौंदर्य: गाँव की सुंदरता, नदियाँ, खेत, वृक्ष और चिड़ियों का वर्णन।
- श्रम का गौरव: किसानों और श्रमिकों की मेहनत को महिमामंडित किया गया है।
- ग्राम्य जीवन: ग्रामीण समाज की सरलता, ईमानदारी और आत्मनिर्भरता को रेखांकित किया गया है।
- सामाजिक संदेश: मेहनत और ईमानदारी ही सच्चे आनंद और संतोष का स्रोत हैं।
कुल मिलाकर, यह कविता ग्रामीण भारत की जड़ों से जुड़ाव और श्रम के सौंदर्य को दर्शाती है, जिससे पाठक को प्रकृति और मेहनतकश जीवन के प्रति नई दृष्टि मिलती है।
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