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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

B.com 2nd Sem SEP वंदेमातरम कविता का सारांश

      वंदेमातरम कविता श्री बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' जी द्वारा लिखित है। इस कविता में उन्होंने भारत की महिमा का वर्णन किया है। उन्होंने भारत की प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ भारत के समृद्ध इतिहास तथा भारतीय समाज के प्रत्येक जाति के द्वारा किए गए महान कार्यों के बारे में बताया है। उन्होंने भारत पर कई बार आक्रमण तथा उसके साथ होते लूट-पाट के बावजूद भी उसकी संप्रभुता, शान्ति तथा समृद्ध में किसी भी प्रकार की कमी न आने की सराहना करते हुए उसका बखान भी किया है।

    कवि कहते हैं कि हे भारत भूमि भवानी आपकी जय हो। यहाँ पर कवि ने भारत भूमि को भवानी कहा है अर्थात् माता के रूप में भारत भूमि की तुलना की है। भारत हमारी माता है। वे कहते हैं कि हे भारत माता आपकी जय हो। जिसकी पताका का सुयश जगत् के दसों दिशाओं  में फैला हुआ  है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि हमारा भारत देश सदा से ही पूरे विश्व में कई कारणों से प्रसिद्ध रहा है। देश-विदेश के लोग प्राचीन काल से ही भारत भूमि में आते रहे हैं तथा यहाँ कि संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा इत्यादि से प्रभावित होते रहे हैं तथा यही से सब कुछ ग्रहण करते हैं। कवि कहते हैं कि भारत में सभी ऋतुएँ एक समान सुहानी होती है तथा प्रत्येक ऋतु में सब प्रकार की सामग्री सहज रूप से उपलब्ध हो जाती है। 

    कवि कहते हैं कि भारत भूमि की श्री अर्थात् धन तथा वैभव की शोभा को देख कुबेर की अलका पुरी तथा इंद्र की अमरावती नगरी भी खिसयाने लगती है। अर्थात् भारत में इतना धन-वैभव और सुन्दरता कूट-कूट कर भरी हुई है। कवि आगे कहते हैं कि यह वह देश है जहाँ धर्म का सूर्य उदित हुआ है तथा नीति-नियमों आदि को प्रथम पहचान मिली। कवि के अनुसार भारत ही वह देश है जहाँ धर्म रूपी सूर्य का प्रथम उदय हुआ। धर्म को उन्होंने सूर्य के समान माना है। कवि के अनुसार ही भारत ही वह देश है जहाँ नीति-नियमों का उदय हुआ तथा उसको पहचान मिली एवं वह पूरी विश्व में फैल गयी।

    कवि कहते हैं कि भारत में ही सभी कलाओं का जन्म हुआ। सारी सभ्यताएँ तथा समस्त गुणों सहित भारत में ही आकर फलने-फूलने लगे तथा विकसित हुए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहाँ की सनातन संस्कृति ने उसे पहचाना तथा उसे अपना लिया। कवि आगे कहते हैं कि इसी देश में ही सारे योगी, तपस्वी, ऋषि-मुनि एवं ज्ञानी व्यक्तियों का उदय हुआ। वे कहते हैं कि इसी देश में ऐसे-ऐसे विद्वान ब्राह्मण हुए है जिनके माध्यम से विज्ञान समेत सभी प्रकार की विद्या एवं ज्ञान पूरे जगत् को प्राप्त हुआ और जगत् के लोगों ने इसे जाना। उदाहरण के तौर पर आचार्य कणाद, बौधायन, चरक, कौमारभृत्य, सुश्रुत, आर्यभट, वराह मिहिर, ब्रह्मगुप्त, वाग्भट, नागार्जुन, भास्कराचार्य आदि को ले सकते हैं जो कि ब्राह्मण है तथा उन्होंने कला, विज्ञान, गणित, चिकित्सा आदि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कवि कहते हैं कि इसी देश में ऐसे प्रतापी राजा हुए हैं जिन्होंने पूरे विश्व को जीत लिया परन्तु उनके गुणों और न्याय प्रियता को जगत् ने जाना। अर्थात् सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा सांगा इत्यादि।

    कवि क्षत्रियों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि यहाँ ऐसे क्षत्रिय नरेश हुए हैं, ऐसे शूर वीर हुए हैं जिनके प्रताप से असुरों की हिम्मत मिट्टी में मिल जाती थी तथा असुरों का विनाश हो जाता था। यहाँ के क्षत्रियों में इतना अभिमान है कि वे काल अर्थात् मृत्यु के समान विरोधी शत्रुओं को भी तृण(घास) के समान तुच्छ समझते हैं।

    कवि इसी प्रकार भारतीय समाज की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि इन्ही वीर क्षत्रियों में ऐसी वीर क्षत्राणी वधु भी हुई है जिन्होंने भगवान बुद्ध को भी जन्म दिया है। कवि यहाँ माया देवी की बात कर रहे हैं जिन्होंने राजकुमार गौतम को जन्म दिया था परन्तु उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनके बाद उनकी छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने उनका पालन-पोषण किया था। राजकुमार गौतम बहुत प्रतिभाशाली थे जो प्रत्येक क्षेत्र में बहुत आगे थे। परन्तु उन्होंने समाज के कल्याण हेतु सन्यास लेकर तपस्या की तथा वे महात्मा बुद्ध बने। कवि इसी प्रकार वैश्य समुदाय की भी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि इस देश में करोड़ो करोड़पति बनिया रहते हैं जो कि सदैव अपना धन दान-पुण्य में लगाते रहते हैं। ये सभी व्यापार करने वाले बनिज सदैव धर्म कार्य के लिए बहुत दान करते हैं। ये समाज का पालन-पोषण करते हैं।

    इसी प्रकार वे शूद्र जाति के लोगों के लिए भी कहते हैं कि ये शिल्पकार तथा अन्य सभी प्रकार के काम करने वाले अपनी सेवा से ही समृद्धि को बढ़ाते हैं । उन्हें उनके काम के लिए उचित मूल्य दिया जाता था। वे जिसका अन्न पेट भर खाते हैं उसी के जाति के नाम पर ऐठन भी दिखाते थे।

    कवि आगे भारत में होने वाले आक्रमणों और लूटपाट की बात करते हुए कहते हैं कि जिस देश में कई बार आक्रमण होते रहे तथा उसकी सम्पत्ति को हजारों बरसों तक लूटा जाता रहा फिर भी उसमें जरा सा भी खोट या फ़र्क उत्पन्न नहीं हुआ। जो हजारों सालों से रोज नए-नए दुख सहन कर रहे हैं फिर भी उसके मन में कोई ग्लानी उत्पन्न नहीं हुई। यहाँ की सम्पत्ति की सुगन्ध उसका शोभासन इतना अधिक प्रभावशाली है कि जगत् के सारे राजाओं को सदा ही लुभाती रही है।  तीस करोड़ लोग सदैव हाथ जोड़े जिसको प्रणाम करते हैं यह वो भारत देश है।

    कवि अंत में भारत के लोगों की एकता की मिसाल देते हुए कहते हैं कि भारतीय लोगों की एकता को देख जगत् की मति भी सहम जाती है तथा ईश्वर की कृपा से सब कोई प्रेम का धनी बनकर रहता है जिस कारण भारत की ऐसी छवि सदैव की सब पर छायी रहे।

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