मेरे भीतर का इन्सान
सागर के उन लहरों सी है
जो बार-बार सपनों के साहिल से टकराती है
टकराती है क्या
बल्कि ढँढती है उस अधुरे इन्सान को
जिससे मिलकर मुझसी अधुरी इन्सान पूरी हो सके
पूरी कर सके
वह सारी अधुरी ख़्वाहिशें जो मैंने और उसने
देखे थे रात-भर अपनी-अपनी आँखों से
अपने-अपने कमरे में
मेरे भीतर का इन्सान
कभी-कभी तो उन्मत्त लहर बनकर
तट को ही नहीं बल्कि वहा खड़ी हर चीज को भीगों देती है
फिर देखने की कोशिश करती है
कि किसका वह सच्चा रूप है जो समाने लायक है
इस मन के सागर में
बार-बार वह यही करती है
ढूँढती है उसे जिसे दे सके प्यार का अंमृत जल
विश्वास और साथ का अथाह संसार
थक जाती है फिर भी वह यही करती है
बार-बार सपनों के साहिल से टकराती है.............
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
एक दिन......
एक दिन
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है
सूर्योदय से दिन की शुरूआत
सूर्यास्त से दिन का अन्त
बस इतनी सी बात ही सबके सामने रह जाती है
पर ये एक दिन
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है
एक दिन किसी को याद करने में बीतता है
एक दिन किसी के खयाल में बीतता है
एक दिन कोई काम की तलाश में बीतता है
एक दिन भूख को मिटाने में बीतता है
एक दिन सवालों के जवाब ढूंढने में बीतता है
एक दिन उलझनों को सुलझाने में बीतता है
एक दिन बिखरे चीजों को समेटने में बीतता है
एक दिन कुछ चीजों को, खयालों को, सपनों को सवारने में बीतता है
एक दिन सपनों को सच करने की चाह में बीतता है
फिर भी ये एक दिन यूं ही बीत जाता है
और ये बात किसी के सोच में नहीं आता है
एक दिन जो हमारे सामने से बीत जाता है।
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है
सूर्योदय से दिन की शुरूआत
सूर्यास्त से दिन का अन्त
बस इतनी सी बात ही सबके सामने रह जाती है
पर ये एक दिन
कैसे बीत जाता है
ये बात अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूं ही बीत जाता है
एक दिन किसी को याद करने में बीतता है
एक दिन किसी के खयाल में बीतता है
एक दिन कोई काम की तलाश में बीतता है
एक दिन भूख को मिटाने में बीतता है
एक दिन सवालों के जवाब ढूंढने में बीतता है
एक दिन उलझनों को सुलझाने में बीतता है
एक दिन बिखरे चीजों को समेटने में बीतता है
एक दिन कुछ चीजों को, खयालों को, सपनों को सवारने में बीतता है
एक दिन सपनों को सच करने की चाह में बीतता है
फिर भी ये एक दिन यूं ही बीत जाता है
और ये बात किसी के सोच में नहीं आता है
एक दिन जो हमारे सामने से बीत जाता है।
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
याद आते हो.............
याद आते हो.........
याद आते हो,
हर पल मुझे तुम याद आते हो
कुछ अनकही बातों में,
कुछ उभरते जज़बातों में।
तुम्हारे और मेरे बीच जो एहसास की डोर है,
उसके दोनों छोर पर हमारा दिल है।
अपने दिल की राह से जब तुम तक जाती हुँ
तब तुम याद आते हो।
जब दिसम्बर की सिकुड़ती रातों में
रज़ाई के नीचे मेरा मन सोता था
तब तुम याद आते थे।
जब उन दिनों चाँद भी बादलों की चादर ओढ़कर
अपनी रोशनी से जाहां को रोशन कर रहा था,
तब उस रोशनी में नहाया हुआ हर एक पल
तुम्हारी याद दिलाता था।
जब बारिश होती है
और मेरा जी प्यासा हो जाता है
तब तुम याद आते हो।
ये अजीब सी बात है कि
तुम्हारे और मेरे बीच कोई कड़ी छूटती नहीं है।
क्या हम एक हो चुके है साथी।
फूलों के रंगों में
मिट्टी की खूशबु में
पानी पर पड़ती परछाई में
तुम ही तो हो जो नज़र आते हो।
इन आँखों ने जो देखा है उन सबमे तुम्हें ही देखा है।
और जब आईने में मैं एक नज़र खुद से मिलाती हुँ
तो लगता है कि तुमसे नज़र मिला रही हुँ।
किताबों में न जाने कितने अनगिनत शब्द
हर शब्द का कुछ-कुछ अर्थ।
जब उन्हें पढ़ती हुँ
तो लगता है कि तुम्हारा नाम लेती हुँ।
क्योंकि तुम हर पन्ने में बसे हो।
जब पुराने पलटे पन्ने इक नज़र देखती हुँ
तब तुम याद आते हो।
और इस तरहा हर लम्हा गुज़र जाता है।
तुममे हम खोये रहते हैं,
पर बीता हर एक-एक पल
तुम्हारी याद दिलाता है।
क्योंकि उन बीतें लम्हों में तुम ही तो बीते थे
जो गज़ारे थे साथ हमने।
याद आते हो,
हर पल मुझे तुम याद आते हो
कुछ अनकही बातों में,
कुछ उभरते जज़बातों में।
तुम्हारे और मेरे बीच जो एहसास की डोर है,
उसके दोनों छोर पर हमारा दिल है।
अपने दिल की राह से जब तुम तक जाती हुँ
तब तुम याद आते हो।
जब दिसम्बर की सिकुड़ती रातों में
रज़ाई के नीचे मेरा मन सोता था
तब तुम याद आते थे।
जब उन दिनों चाँद भी बादलों की चादर ओढ़कर
अपनी रोशनी से जाहां को रोशन कर रहा था,
तब उस रोशनी में नहाया हुआ हर एक पल
तुम्हारी याद दिलाता था।
जब बारिश होती है
और मेरा जी प्यासा हो जाता है
तब तुम याद आते हो।
ये अजीब सी बात है कि
तुम्हारे और मेरे बीच कोई कड़ी छूटती नहीं है।
क्या हम एक हो चुके है साथी।
फूलों के रंगों में
मिट्टी की खूशबु में
पानी पर पड़ती परछाई में
तुम ही तो हो जो नज़र आते हो।
इन आँखों ने जो देखा है उन सबमे तुम्हें ही देखा है।
और जब आईने में मैं एक नज़र खुद से मिलाती हुँ
तो लगता है कि तुमसे नज़र मिला रही हुँ।
किताबों में न जाने कितने अनगिनत शब्द
हर शब्द का कुछ-कुछ अर्थ।
जब उन्हें पढ़ती हुँ
तो लगता है कि तुम्हारा नाम लेती हुँ।
क्योंकि तुम हर पन्ने में बसे हो।
जब पुराने पलटे पन्ने इक नज़र देखती हुँ
तब तुम याद आते हो।
और इस तरहा हर लम्हा गुज़र जाता है।
तुममे हम खोये रहते हैं,
पर बीता हर एक-एक पल
तुम्हारी याद दिलाता है।
क्योंकि उन बीतें लम्हों में तुम ही तो बीते थे
जो गज़ारे थे साथ हमने।
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