देश मेरा बैठा है आज बारूद के ढेर पर,
पर राजनेता है कुर्सी के चर्चे पर।
देश मेरा है आज आतंक के निशाने पर,
पर राजनेता आपस में एक-दूसरे के निशाने पर।
भाषावाद,जातिवाद,क्षेत्रीयवाद यही सब रह गया है,
देश कब गया अंधेरे के गर्त में किसे खबर है
विकास के नाम पर तो वोट माँगे जाते है?
विशेष विशेष के कुछ और ही नाते आते हैं?
मगर गरीब की आबरु है आज भी ताक पर।
कोई दो अरब का आशियाना बनाए,
कही आशियाने ही जला दिए जाए।
कही है नौकरी और पढ़ाई पर रिजर्वेशन,
कही है पक्षपात और डिसक्रिमिनेशन।
देश मेरा आज किस ओर जा रहा है
किसे पता है,
किसे पता, क्या होगा आगे?
क्या यही है इक्कीसवी सदी का उभरता भारत।
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