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रविवार, 8 सितंबर 2024

शम्बूक BA 4th Sem व्याख्या

 भूमिका Disclaimer

कवि जगदीश गुप्त जी ने शम्बूक की कथा राम कथा ली है। इस कथा में कवि द्वारा यह दर्शाया गया है कि कैसे एक शूद्र की तपस्या के कारण तत्कालीन राम राज्य में एक ब्राह्मण के बेटे की मृत्यु हो जाती है। फिर ब्राह्मणों के कहने पर राम शम्बूक की खोज में जाते हैं और उसका वध करते हैं। हालांकि कवि के अनुसार मूल वाल्मीकि संस्कृत रामायण में इस कथा के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है बल्कि उत्तर रामायण में मिलाया हुआ बताते हैं। कवि के अनुसार 'प्रयाग को अपना 'मैका' माननेवाले डॉ फादर कामिल बुल्के ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'रामकथा' में कई अनुच्छेदों (618 था 628-632) में देदी है। साथ ही उन्होंने भलीभाँति विचार करके वाल्मीकि रामायण के समस्त उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त घोषित किया है। शम्बूक-वध भी उसी के प्रक्षिप्त सर्गों (72-82) में सम्भवतः सर्वप्रथम वर्णित किया गया है।' अर्थात् यह मिलाया गया है। वही शम्बूक वध की कथा दूसरे कई ग्रंथों में भी अलग-अलग प्रकार से लिखे गये हैं। 


व्याख्या प्रथम अध्याय राजद्वार

आगे ज्योति मण्डित …. उल्लास की उठती लहर।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्य पुस्तक शम्बूक से ली गयी है। इसके रचैता कवि जगदीश गुप्त जी है। प्रस्तुत पंक्तियों में राम के दरबार की शोभा का वर्णन किया गया है। 

व्याख्या:- कवि कहते हैं कि आगे ज्योति से मण्डित अर्थात् ज्योति से भरा हुआ और सजाया हुआ बड़ा सा उन्नत राजद्वार है। पीछे शक्तिशाली लोक के रक्षक राम का दरबार है। यह राज दरबार सुन्दर तोरणों, सुन्दर परदों, कलशों तथा ध्वजा की पंक्ति से सजा हुआ है। अलग-अलग प्रकार से रूप, रंग तथा बनावट वाले साजो-सामान से सजा हुआ है। प्रहरी सहजता से खड़े हुए राजद्वार का पहरा दे रहे हैं। वही दण्डधारी भी हर पहर में आकर खड़े हो रहे हैं। हर दिशा अर्थात् चारों दिशाओं में उल्लास की लहर सी उठ रही है। 

    कवि ने यहाँ राम के दरबार की सुन्दरता एवं भव्यता का वर्णन किया है।

यह अयोध्य का हृदय…..अमृत में विष घोलता है कौन।

प्रसंग :- प्रस्तुत प्रसंग में रामदरबार में जहाँ उल्लास और हर्ष छाया हुआ था वहाँ अचानक किसी के कर्कश स्वर सुनाई देने से लोगों में आशंका के बारे में बताया गया है। क्योंकि राम राज्य में तो चारों तरफ सुख-शान्ति थी फिर कोई क्यों दुखी होता।

व्याख्या :- कवि कह रहे हैं कि राजद्वार के पीछे जो राम का दरबार है वह अयोध्या का हृदय है और वह प्रत्यक्ष ही लग रहा है। क्योंकि वहाँ सभी प्रकार के लोग है और हंसी-उल्लास से पूरा राज दरबार भरा हुआ है। भला राम के दरबार के समान सुन्दर, भव्य और दिव्य और कौन इसके समान हो सकता है। चारों तरफ शहनाइयाँ बज रही है जो लोगों को आनन्दित कर रही है। 

    तभी अचानक शहनाइयों के स्वर को चीर कर किसी का दुख भरा स्वर सुनाई देता है। ऐसा लग रहा है कि जैसे लगता है कि यह दुख बहुत गहरा और असीम (जिसकी कोई सीमा न हो) है। कर्कश शब्द सुनकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कौन अमृत के समान इस मुहूर्त में विष घोल रहा है। अर्थात् राम दरबार में जो प्रसन्नता और उल्लास छाया हुआ है वह अमृत के समान है , वहाँ कौन अपनी कर्कश वाणी से विष घोल रहा है?

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