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शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

B.com 3rd Sem रामायतन Part 3

 जननी सम जानहिं। धन पराव विष तें विष भारी।।

जो हरषहि पर सम्पत्ति देखो। दुखित होहिं पर विपति विसेषी।।

जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।। 

स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात।।

मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात।।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में मुनि वालमीकि जी श्री राम को उन व्यक्तियों के गुणों के बारे में बता रहे हैं जिनके मन में श्री राम का वास होता है।

व्याख्या :- मुनि कह रहे हैं कि हे राम! आप उनके मन में बस जाइए जो पराई स्त्री को जन्म देने वाली माता के समान मानकर उनका आदर करता हो और पराया धन जिन्हें विष से भी ज्यादा विषैला लगता है। हे रामजी आप उनके मन में बस जाइए जो दूसरे की सम्पत्ति देखकर हर्षित होते हैं और दूसरे की विपत्ति देखकर विशेष रूप से दुखी होते हैं। हे रामजी जिन्हें आप प्राणों के समान प्यारे हैं, उनका मन आपके रहने योग्य और शुभ भवन के समान है। हे तात(श्रीराम) जिनके लिए आप ही सुबकुछ है अर्थात् जिनके स्वामी, सखा, पिता, माता और गुरु सब कुछ आप ही हैं, उनके मन रूपी मंदिर में सीता सहित आप दोनों भाई निवास कीजिए।

अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। विप्र धेनु हित संकट सहहीं।।

नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका। घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका।।

गन तुम्हार समुझाइ निज दोसा। जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा।।

राम भगत प्रिय लागहिं जेही। तेहि उर बसहु सहित बैदेही।।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में मुनि वाल्मीकि जी श्री राम को मनुष्य के उत्तम गुणों के बारे में बता रहे हैं तथा एक सच्चे राम भक्त की पहचान भी बता रहे हैं।

व्याख्या :- मुनि वाल्मीकि जी कह रहे हैं कि हे राम! जो अवगुणों को छोड़कर सबके गुणों को ग्रहण करते हैं, ब्राह्मण और गौ के लिए संकट सहते हैं, नीति-निपुणता में जिनकी जगत् में मर्यादा है, उनका सुन्दर मन आपका घर है। जो गुणों को आपका और दोषों को अपना समझता है, जिसे सब प्रकार से आपका ही भरोसा है और राम भक्त जिसे प्यारे लगते हैं , उसके हृदय में आप सीता सहित निवास कीजिए। वास्तव में यहाँ गोस्वामी तुलसीदास जी मुनि वाल्मीकि जी के द्वारा मानव समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि संसार में यदि सभी मनुष्य में ऐसे उत्तम गुण हो तो भगवान सदैव उनके मन में विराजेंगे। मनुष्य को सदैव दूसरों में अवगुण देखने के बजाय उनके गुणों को देखना चाहिए और उन्हें अपनाना चाहिए। दूसरों की सहायता करने वाला, दूसरों की रक्षा हेतु स्वयं संकट से लड़ने वाला व्यक्ति समाज के लिए कितना आवश्यक है। जो व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम राम का भक्त हो ऐसे व्यक्ति को वह प्रिय लगे ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी से शत्रुता नहीं कर सकता। अतः हमें ऐसे उत्तम गुण अपनाने चाहिए। तभी हमारे मन में भगवान का वास रहेगा।

जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई।।

सब तजि तुम्हरि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।।

सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देखे धरें धनु बाना।।

करम वचन मन राउर चेरा। राम करहु तेहि कें उर डेरा।।

जाहि न चाहिउ कबहुँ कछु तुम्ह मन सहज सनेहु।

निरंतर तास मन सो राउर निज गेहु।।

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियों में मुनि वाल्मीकि जी मनुष्य के ऐसे उत्तम गुण के बारे में बता रहे हैं जो कि पूरे समाज को भी अपनाने की जरूरत है। वह बता रहे हैं कि जो व्यक्ति जाति-पाति, धर्म, परिवार आदि के बंधन से मुक्त होकर सबको छोड़कर केवल श्री राम को ही हृदय में धारण करता है उसके हृदय में ही श्री राम को बसना चाहिए।

व्याख्या :- मुनि वाल्मीकि जी श्री राम जी से कह रहे हैं कि हे राम! आप उनके हृदय मे ंरहिए जो जाति, पाति, धन, धर्म, बड़ाई, प्यारा परिवार और सुख देने वाला घर सबको छोड़कर केवल आपको ही हृदय में धारण किए रहता है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति के लिए तो पूरा विश्व ही उसका परिवार है। जैसे भगवान के लिए समस्त संसार तथा उसमें रहने वाले सभी प्राणी एक समान है वैसे ही जिस व्यक्ति के मन में ऐसी विचार धारा हो वही ईश्वर के समान सबको अपने हृदय में स्थान दे सकता है। अन्यथा लोग तो केवल जाति, पाति, धर्म, परिवार आदि के चक्करों में पड़कर स्वार्थी हो जाते हैं। वे तब समाज का भला नहीं कर सकते हैं। उनके हृदय में संकीर्णता वास करती है। 

    मुनि आगे कहते हैं कि हे राम! जिस व्यक्ति के लिए स्वर्ग, नरक तथा मोक्ष(जन्म मृत्यु के चक्कर से मुक्त हो जाना) एक समान है, क्योंकि वह जहाँ-तहाँ आपको ही केवल धनुष-बाण धारण किए देखता है, जो कर्म से, वचन से और मन से आपका दास है, हे राम! आप उसके हृदय में डेरा कीजिए। मुनि वाल्मीकि जी यह कहना चाहते हैं कि जिस मनुष्य के लिए स्वर्ग-नरक एक समान है अर्थात् प्रभु श्री राम बिना स्वर्ग भी नरक के समान है तथा जहांँ राम है वही वैकुण्ठ है वही व्यक्ति शुद्ध हृदय वाला व्यक्ति है। क्योंकि जो व्यक्ति केवल इस कारण लोगों की सेवा करता हो कि इससे उसे स्वर्ग प्राप्त होगा तो वह तो केवल उसका स्वार्थ होगा। जिस व्यक्ति के लिए ये सारी बाते मायने नहीं रखती केवल यह मायने रखती है कि भगवान श्री राम तो कण-कण में बसे हैं तथा उनके बिना कोई भी स्थान अधुरा है वह व्यक्ति वास्तव में सच्चा भक्त है तथा सच्चा मनुष्य है। क्योंकि वही व्यक्ति किसी भी परिस्थिति या लोभ में भगवान को अपने हृदय से नहीं निकाल सकता है। 

    मुनि आगे कहते हैं कि जिसको कभी कुछ भी नहीं चाहिए और जिसको आपसे स्वाभाविक प्रेम है। आप उसके मन में निरंतर निवास कीजिए। वही आपका घर है।


विशेष :- उपरोक्त सभी पंक्तियों में दरअसल कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने मुनि वाल्मीकि द्वारा समाज को एक बड़ा संदेश देना चाहा है। प्रथम तो ये की श्री राम ही सच्चे परमेश्वर है जिन्होंने धरती पर मानव अवतार लेकर राक्षसों के अत्याचार से धरती को मुक्त कराने का प्रण लिया है। श्री राम ही सच्चे भगवान है जिन्होंने मनुष्य अवतार लेकर मर्यादा का पालन करके लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हमें भी सदैव मर्यादा पालन करना चाहिए। मर्यादा का पालन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। वही दूसरी बात यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य को भी सदैव उत्तम गुण धारण करना चाहिए। वरना वर्तमान समय में जिस प्रकार से समाज में अनाचार, पाप, अत्याचार का चलन है उससे एक दिन पूरा समाज ही ध्वस्त हो जाएगा।

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