लघु प्रश्नोत्तरी
1. भीष्म के धनुष को किसने काटा?
अर्जुन
2. भीष्म को कौन-सा अस्त्र मारने के लिए कृष्ण स्वयं जाने को तैयार हो जाते हैं?
चक्र
3. कृष्ण ने अर्जुन को किसके सिर का धनुष काटने को कहा?
भीष्म
4. भीष्म ने कृष्ण को 'युद्धश्रेष्ठ' कहकर क्या स्वीकार किया?
नमन
5. अर्जुन ने कृष्ण को क्या न करने के लिए वचनबद्ध बताया?
युद्ध
6. भीष्म के अनुसार अब किसका अंतिम समय समीप है?
अवसान दिवस
7. भीष्म को किसका वरदान प्राप्त था?
इच्छा-मृत्यु
8. भीष्म किस ऋतु की प्रतीक्षा में प्राण रोके हुए थे?
उत्तरायण
9. भीष्म ने अर्जुन से सिर के लिए क्या बनवाने को कहा?
सिराहाना (तकिया)
10. भीष्म की देह किस पर लेटी थी?
बाणों की शैया
11. भीष्म की प्यास किसने बुझाई?
अर्जुन
12. भीष्म की प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने कौन-सा अस्त्र चलाया?
पार्जन्य
13. पार्जन्य अस्त्र से निकली धारा कौन-सी थी?
गंगा मैया
14. दुर्योधन ने भीष्म से किस पर तकिया लगाने को कहा था?
मोटे तकिये
15. भीष्म का लोहा कवच किसने बाँध रखा था?
बाणों
16. भीष्म का वध करने कौन आगे आया?
शिखण्डी
17. शिखण्डी को किसकी आड़ बताया गया?
अर्जुन
18. शिखण्डी पूर्वजन्म में कौन थी?
अम्बालिका
19. शिखण्डी को भीष्म क्या नहीं मानते थे?
अस्त्र
20. भीष्म के अनुसार दुर्योधन को किसमें भी बुद्धि विपरीत थी?
विनाशकाल
2. संदर्भ-प्रसंग-व्याख्या (Reference-Context-Explanation)
नोट 1: कृष्ण द्वारा प्रतिज्ञा भंग का प्रयास और अर्जुन की दृढ़ता
उद्धरण:
कृष्ण: "तुमसे कुछ भी नहीं होगा, मैं ही अब जाकर लड़ता हूँ।"
भीष्म: "युद्धश्रेष्ठ कृष्ण! करें स्वीकार नमन मुझ गांगेय भीष्म का, मुझे मार दें, तार दें अब, उपकार सबका है उसी में।"
अर्जुन: "नहीं कृष्ण नहीं, आप तो वचनबद्ध हैं नहीं लड़ने को इस युद्ध में, पितामह को मारने का भार मेरा है, संहार में ही करूँगा उनका।" (पृष्ठ 40)
क. संदर्भ (Reference):
रचना: गाथा कुरुक्षेत्र की (काव्य नाटक)
रचयिता: मनोहर श्याम जोशी
प्रसंग: भीष्म के युद्ध कौशल से हताश अर्जुन को देखकर कृष्ण का युद्ध करने के लिए तत्पर होना।
ख. प्रसंग (Context):
भीष्म के सामने पाण्डवों की सेना कमज़ोर पड़ रही थी। अर्जुन स्वयं उनके बाणों को झेल नहीं पा रहे थे। इससे निराश होकर, कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा (कि वे युद्ध में अस्त्र नहीं उठाएँगे) भंग करके भी भीष्म को मारने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
भीष्म कृष्ण के इस भाव की सराहना करते हैं और इसे 'उपकार' बताते हैं, जबकि अर्जुन कृष्ण को उनकी प्रतिज्ञा की याद दिलाकर उन्हें रोकते हैं और स्वयं ही यह कार्य पूरा करने की दृढ़ता दिखाते हैं।
ग. व्याख्या (Explanation):
कर्तव्य का द्वंद्व: कृष्ण के लिए अर्जुन का धर्म (युद्ध करना) और धर्म की स्थापना उनकी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा से बड़ी थी। वे भीष्म को मारकर धर्म की स्थापना करना चाहते थे।
भीष्म का त्याग: भीष्म, कृष्ण को 'युद्धश्रेष्ठ' कहकर स्वीकार करते हैं कि उनके हाथों मरना ही उनका और सबका कल्याण है। यह उनका अंतिम त्याग था।
अर्जुन की दृढ़ता: अर्जुन जानते थे कि पितामह का वध उनकी नियति है। वह कृष्ण को उनकी प्रतिज्ञा का सम्मान करने को कहते हैं और स्वयं ही पितामह को मारने का भार उठाते हैं, जो उनके क्षत्राणी धर्म की पुनर्स्थापना को दर्शाता है।
नोट 2: भीष्म का शिखंडी के सामने अस्त्र त्याग
उद्धरण:
भीष्म: "तो सुनो युधिष्ठिर! उठाता मैं नहीं हूँ अस्त्र स्त्रियों पर... जन्मी वही शिखण्डी रूप में है। तो लेकर लौट उसको कल अर्जुन लड़े मुझसे और वध कर मेरा, दिला दे मुक्ति मुझको इस संसार से।"
दुर्योधन: "शिखण्डी की आड़ में कायर अर्जुन भीष्म से लड़ रहा है। रोको उसे दुःशासन!" (पृष्ठ 42)
क. संदर्भ (Reference):
रचना: गाथा कुरुक्षेत्र की (काव्य नाटक)
रचयिता: मनोहर श्याम जोशी
प्रसंग: भीष्म द्वारा अपनी मृत्यु का रहस्य युधिष्ठिर को बताने के बाद युद्ध में शिखंडी का प्रवेश और भीष्म का अस्त्र त्यागना।
ख. प्रसंग (Context):
युधिष्ठिर की सलाह पर पाण्डव, शिखण्डी को आगे करते हैं। शिखण्डी पूर्वजन्म में अम्बालिका थीं, जिसका हरण भीष्म ने किया था और जो बाद में स्त्री रूप में जन्म लेकर भीष्म की मृत्यु का कारण बनीं।
भीष्म की नैतिकता (स्त्रियों पर अस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा) के कारण वे शिखण्डी के सामने हथियार डाल देते हैं, जिससे अर्जुन उनकी आड़ लेकर उन पर बाण चला पाते हैं।
ग. व्याख्या (Explanation):
प्रतिज्ञा का पालन: भीष्म के लिए अपनी प्रतिज्ञा (स्त्रियों पर अस्त्र न उठाना) जीवन से बड़ी थी। शिखण्डी के सामने अस्त्र न उठाकर उन्होंने अपनी नैतिकता और क्षत्रिय धर्म के एक विशिष्ट नियम का पालन किया।
दुर्योधन का दृष्टिकोण: दुर्योधन इस कृत्य को 'कायरता' मानता है और शिखण्डी को केवल 'आड़' कहता है, क्योंकि वह भीष्म के गहन नैतिक सिद्धांतों को समझने में असमर्थ है।
मुक्ति की इच्छा: भीष्म युधिष्ठिर को स्वयं ही कहते हैं कि शिखण्डी को लाकर उनका वध किया जाए ताकि उन्हें संसार के इस बंधन और अर्थ की दासता से मुक्ति मिल सके।
नोट 3: बाणों की शैया पर भीष्म की अंतिम इच्छा
उद्धरण:
भीष्म: "इच्छा-मृत्यु का वरदान मुझको प्राप्त है इसलिए शुभ उत्तरायण की प्रतीक्षा में रोके हुए हूँ प्राण अपने... सिराहाना भी दिया वैसा जैसा बिछौना था।... नादान हो तुम, नहीं समझा, अर्जुन तू ही बुझा अब प्यास मेरी।" (पृष्ठ 44, 45)
क. संदर्भ (Reference):
रचना: गाथा कुरुक्षेत्र की (काव्य नाटक)
रचयिता: मनोहर श्याम जोशी
प्रसंग: बाणों से बिंधकर पृथ्वी पर गिरने के बाद भीष्म की अंतिम इच्छाएँ और उनका असाधारण आत्म-संयम।
ख. प्रसंग (Context):
भीष्म बाणों की शैया पर गिर चुके हैं। दुर्योधन उन्हें मोटे-मोटे तकिये और शीतल जल देकर उनकी प्यास बुझाने का प्रयास करता है, पर भीष्म यह सब अस्वीकार कर देते हैं।
भीष्म, अर्जुन से वीर के अनुरूप अंतिम संस्कार की माँग करते हैं।
ग. व्याख्या (Explanation):
इच्छा-मृत्यु और उत्तरायण: भीष्म धर्मशास्त्र के अनुसार, उत्तरायण (शुभ समय) में ही प्राण त्यागना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी इच्छा-मृत्यु के वरदान से अपने प्राणों को रोक रखा था।
वीर का सम्मान: भीष्म दुर्योधन द्वारा दिए गए कोमल तकिये और सामान्य जल को अस्वीकार करते हैं। उनका कथन था कि जब शैया बाणों की है, तो सिराहाना (तकिया) भी बाणों का ही होना चाहिए।
प्यास बुझाना: भीष्म अपनी प्यास बुझाने के लिए अर्जुन से पार्जन्य अस्त्र से गंगा मैया की धारा निकालने को कहते हैं। यह न केवल उनकी प्यास बुझाता है, बल्कि यह सिद्ध करता है कि एक वीर की अंतिम सेवा भी एक वीर ही कर सकता है, और केवल दिव्य शक्तियों द्वारा ही उनकी इच्छा पूरी हो सकती है।
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