1. प्रश्न: 'दस हजार' एकांकी के लेखक कौन हैं?
* उत्तर: उदयशंकर भट्ट।
2. प्रश्न: बिसाखाराम कौन है?
* उत्तर: सीमा प्रान्त का एक कंजूस और लालची सेठ।
3. प्रश्न: सुंदरलाल का बिसाखाराम से क्या संबंध है?
* उत्तर: सुंदरलाल, सेठ बिसाखाराम का पुत्र है।
4. प्रश्न: सुंदरलाल को किसने बंदी बनाया था?
* उत्तर: अमीर अली खाँ (पठानों) ने।
5. प्रश्न: पठानों ने सुंदरलाल को छोड़ने के बदले कितनी फिरौती मांगी थी?
* उत्तर: दस हजार रुपये।
6. प्रश्न: बिसाखाराम को अपने बेटे की जान से ज्यादा क्या प्यारा था?
* उत्तर: अपना धन (रुपया-पैसा)।
7. प्रश्न: सुंदरलाल की माँ ने बेटे को छुड़ाने के लिए क्या देने का प्रस्ताव रखा?
* उत्तर: अपने गहने।
8. प्रश्न: मुनीम जी ने सेठ को क्या सलाह दी थी?
* उत्तर: रुपये देकर सुंदरलाल को सही-सलामत वापस लाने की।
9. प्रश्न: बिसाखाराम मुनीम से किस चीज़ के सौदे की बार-बार बात कर रहा था?
* उत्तर: खाँड (चीनी) के सौदे की।
10. प्रश्न: सुंदरलाल के वापस आने पर बिसाखाराम क्यों दुखी होकर गिर पड़ा?
* उत्तर: यह जानकर कि मुनीम ने सचमुच दस हजार रुपये दे दिए हैं।
ससंदर्भ व्याख्या
व्याख्या 1
"पिताजी, अगर मेरी जिन्दगी चाहते हो तो किसी आदमी के हाथ काबुली फाटक के बाहर आज ठीक शाम के आठ बजे दस हज़ार रुपया पहुँचा दो... मुझे विश्वास है आप मेरी रक्षा करेंगे।"
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ उदयशंकर भट्ट द्वारा रचित एकांकी 'दस हजार' से ली गई हैं। यह सुंदरलाल द्वारा अपने पिता को लिखा गया पत्र है जिसे मुनीम पढ़कर सुनाता है।
प्रसंग: सुंदरलाल को पठानों ने पकड़ लिया है और जान के बदले पैसों की मांग की है।
व्याख्या: सुंदरलाल पत्र में अपनी पीड़ा और डर व्यक्त करता है। वह बताता है कि उसे बहुत यातनाएँ दी जा रही हैं। वह अपने पिता से विनती करता है कि यदि वे उसे जीवित देखना चाहते हैं, तो तुरंत दस हजार रुपये भेज दें। उसे भरोसा है कि उसके पिता उसे बचा लेंगे, लेकिन विडंबना यह है कि उसके पिता को पैसों का दुख बेटे की जान से बड़ा लग रहा है।
व्याख्या 2
"चिन्ता न करूँ? खून की कमाई है खून की। आज 60 साल से लगातार दिन-रात एक करके रुपया कमाया है।"
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ उदयशंकर भट्ट द्वारा रचित एकांकी 'दस हजार' से ली गई हैं।
प्रसंग: जब सेठ की पत्नी (राजो की माँ) उसे चिंता न करने और बेटे को बचाने की बात कहती है, तब सेठ बिसाखाराम यह उत्तर देता है।
* व्याख्या: यहाँ बिसाखाराम की घोर लालची मानसिकता प्रकट होती है। उसे अपने इकलौते बेटे की जान खतरे में होने का उतना मलाल नहीं है, जितना उन रुपयों के जाने का है जो उसने 60 सालों की मेहनत से जमा किए हैं। वह पैसों को अपनी 'खून की कमाई' कहता है, जबकि अपनी संतान के खून की उसे परवाह नहीं दिखती।
व्याख्या 3
"इन्हें नींद आ गई है बेटा, आओ चलें।"
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ उदयशंकर भट्ट द्वारा रचित एकांकी 'दस हजार' से ली गई हैं।
प्रसंग: एकांकी का अंतिम दृश्य, जब सेठ यह सुनकर कि दस हजार रुपये सचमुच दे दिए गए हैं, धड़ाम से गिर पड़ता है।
व्याख्या: यह एकांकी का सबसे सशक्त व्यंग्य है। जब सुंदरलाल वापस आ जाता है और सेठ को पता चलता है कि उसकी तिजोरी से दस हजार रुपये चले गए हैं, तो वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता और बेहोश (या मृतप्राय) होकर गिर जाता है। उसकी पत्नी व्यंग्य और करुणा के साथ कहती है कि उसे 'नींद' आ गई है। यह दर्शाता है कि एक लालची व्यक्ति के लिए धन का जाना उसकी मृत्यु के समान है।
विशेष बिंदु
* पात्र चित्रण: बिसाखाराम एक 'कंजूस' और 'द्रव्य-पिपासु' (रुपयों का प्यासा) पात्र है।
* द्वंद्व: इस एकांकी में 'धन' और 'ममता' के बीच संघर्ष दिखाया गया है।
* उद्देश्य: लेखक ने समाज में बढ़ती जा रही भौतिकवादी और स्वार्थी प्रवृत्ति पर कड़ा प्रहार किया है।
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