कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

दस हजार एकांकी सारांश एवं पत्र परिचय।


'दस हजार' एकांकी का विस्तृत सारांश एवं विशेषताएं।

भूमिका:

यह एकांकी एक मध्यमवर्गीय, लोभी व्यापारी बिसाखाराम के इर्द-गिर्द घूमती है। एकांकी का मुख्य विषय धन की लोलुपता और मानवीय संवेदनाओं के बीच का संघर्ष है।

कथानक:

एकांकी की शुरुआत बिसाखाराम के घर से होती है। वह एक बहुत बड़ा व्यापारी है, लेकिन स्वभाव से अत्यंत कंजूस और लालची है। उसका इकलौता पुत्र, सुंदरलाल, व्यापार के सिलसिले में 'उगाही' (पैसे वसूलने) के लिए बाहर गया हुआ है, जिसे सीमा प्रांत के खतरनाक पठानों (अमीर अली खाँ) ने अपहरण कर लिया है।

घटनाक्रम:

 * पत्र और फिरौती: मुनीम जी एक पत्र लेकर आते हैं, जो सुंदरलाल ने लिखा है। उसमें बताया गया है कि यदि आज रात 8 बजे तक काबुली फाटक पर दस हजार रुपये नहीं पहुँचाए गए, तो पठान उसे जान से मार डालेंगे। साथ ही खान की धमकी भरा पत्र भी होता है।

 * सेठ का द्वंद्व: एक तरफ बेटे की जान खतरे में है और दूसरी तरफ सेठ के प्राण अपनी 'खून-पसीने की कमाई' यानी उन दस हजार रुपयों में बसे हैं। वह बार-बार मुनीम से व्यापारिक बातें (खाँड का सौदा, ब्याज आदि) करता है ताकि उस बड़े खर्च के विचार से बच सके। वह पुलिस की मदद लेने की बात करता है, जबकि मुनीम उसे चेतावनी देता है कि इससे लड़के की जान जा सकती है।

 * पारिवारिक विलाप: सुंदरलाल की माँ और बहन (राजो) बुरी तरह रो रही हैं। माँ अपने गहने तक बेचने को तैयार है ताकि उसका बेटा बच जाए। वह सेठ को धिक्कारती है कि तीन-चार लाख रुपये के मालिक होकर भी वे दस हजार रुपये के लिए बेटे की जान दांव पर लगा रहे हैं।

 * चरमोत्कर्ष : अंत में, सेठ की इच्छा के विरुद्ध मुनीम और सेठ की पत्नी के दबाव में पैसे भेज दिए जाते हैं। सुंदरलाल घायल अवस्था में घर वापस लौटता है। वह बताता है कि उसे बहुत मारा-पीटा गया।

 * दुखद अंत: जैसे ही बिसाखाराम को इस बात की पुष्टि होती है कि मुनीम ने सचमुच तिजोरी से पूरे दस हजार रुपये निकाल कर दे दिए हैं, वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता। उसे अपने बेटे के वापस आने की खुशी नहीं होती, बल्कि पैसों के जाने का ऐसा गहरा दुःख होता है कि वह अचेत होकर गिर पड़ता है।

एकांकी की प्रमुख विशेषताएँ

1. धन बनाम ममता 

यह एकांकी का केंद्रीय स्तंभ है। बिसाखाराम का चरित्र यह दिखाता है कि जब धन का लोभ मनुष्य पर हावी हो जाता है, तो उसके भीतर की पिता वाली ममता मर जाती है। वह अपने बेटे की हड्डियों के टूटने की खबर सुनकर भी रुपयों का हिसाब लगाता रहता है।

2. यथार्थवादी चित्रण 

उदयशंकर भट्ट ने समाज के उस वर्ग का यथार्थ चित्रण किया है जो केवल 'अंकों' और 'मुनाफे' में जीता है। बिसाखाराम जैसे लोग रिश्तों की कीमत रुपयों में आंकते हैं। एकांकी में उस समय की आर्थिक परिस्थितियों और व्यापारियों की मानसिकता को सजीव रूप में दिखाया गया है।

3. पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

 * बिसाखाराम: वह एक कुंठित और धन-पिशाच व्यक्ति है। उसके लिए जीवन का अर्थ केवल संचय करना है।

 * सेठानी (माँ): वह भारतीय नारी की ममता और त्याग का प्रतीक है, जो बेटे के लिए अपना सर्वस्व (गहने) न्यौछावर करने को तैयार है।

 * मुनीम: वह व्यावहारिक है और सेठ की क्रूरता और परिवार की पीड़ा के बीच एक सेतु का काम करता है।

4. शीर्षक की सार्थकता

एकांकी का नाम 'दस हजार' पूर्णतः सार्थक है। पूरी कथा इसी राशि के इर्द-गिर्द घूमती है। यह राशि सुंदरलाल की जान की कीमत है और बिसाखाराम के लिए उसके जीवन का सबसे बड़ा नुकसान। अंत में यही 'दस हजार' की संख्या सेठ के पतन का कारण बनती है।

5. व्यंग्य प्रधान शैली

लेखक ने बिसाखाराम के माध्यम से पूँजीवादी मानसिकता पर तीखा व्यंग्य किया है। विशेषकर अंत में जब पत्नी कहती है—"इन्हें नींद आ गई है", यह समाज की संवेदनहीनता पर एक गहरी चोट है।

6. भाषा और संवाद

एकांकी की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और पात्रों के अनुकूल है। सीमा प्रांत का वातावरण होने के कारण इसमें काबुली फाटक, पठान, पश्तो भाषा का जिक्र इसे प्रभावशाली बनाता है। संवाद छोटे और मर्मस्पर्शी हैं जो तनाव को बनाए रखते हैं।

निष्कर्ष:

'दस हजार' केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह मानवीय मूल्यों के पतन की कहानी है। यह हमें सिखाती है कि यदि जीवन में केवल धन ही सर्वोपरि हो जाए, तो मनुष्य जीवित रहते हुए भी एक 'लाश' के समान हो जाता है।



पत्रों का चरित्र चित्रण।

एकांकी 'दस हजार' के प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण।

1. सेठ बिसाखाराम का चरित्र-चित्रण

बिसाखाराम इस एकांकी का केंद्रीय और सबसे प्रभावशाली पात्र है, जिसके माध्यम से लेखक ने 'कंजूस और लोभी' मानसिकता का पर्दाफाश किया है।

 * धन का लोभी : बिसाखाराम के जीवन का एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना और उसे बचाना है। उसके लिए रिश्ते, भावनाएँ और यहाँ तक कि अपने इकलौते बेटे की जान भी रुपयों से छोटी है। वह कहता है— "खून की कमाई है, आज 60 साल से दिन-रात एक करके रुपया कमाया है।"

 * संवेदनहीन और क्रूर: जब उसका बेटा पठानों की कैद में है और यातनाएँ सह रहा है, तब भी वह मुनीम से व्यापारिक घाटे और ब्याज की बातें करता है। वह बेटे के दर्द को महसूस करने के बजाय दस हजार रुपये खोने के डर से ज्यादा दुखी है।

 * शंकालु स्वभाव: वह किसी पर भरोसा नहीं करता। उसे लगता है कि हर कोई उसके पैसे लूटने की ताक में है। वह यहाँ तक सोचता है कि पुलिस को खबर कर दी जाए, भले ही इसमें उसके बेटे की जान को खतरा क्यों न हो।

 * आंतरिक द्वंद्व का शिकार: वह पूरे समय बेचैनी में 'खाट' पर लेटने और उठने का अभिनय करता रहता है। उसके मन में एक तरफ बेटे का मोह है (जो बहुत क्षीण है) और दूसरी तरफ धन का मोह (जो अत्यंत प्रबल है)।

 * चरम लालच का अंत: एकांकी के अंत में जब उसे पता चलता है कि तिजोरी से पैसे चले गए हैं, तो वह सदमे से गिर पड़ता है। यह दर्शाता है कि उसका अस्तित्व केवल उसकी दौलत से जुड़ा था।

2. सेठानी (राजो की माँ) का चरित्र-चित्रण

सेठानी बिसाखाराम की पत्नी है और वह एकांकी में ममता और मानवीयता का प्रतिनिधित्व करती है।

 * ममता की प्रतिमूर्ति: एक माँ होने के नाते वह अपने बेटे सुंदरलाल की सुरक्षा के लिए व्याकुल है। वह कई रातों से सोई नहीं है और उसकी आँखों में केवल अपने बेटे की सलामती की चिंता है।

 * त्यागी और निस्वार्थ: जहाँ बिसाखाराम एक-एक पैसा बचाने की सोचता है, वहीं सेठानी अपने सारे गहने उतारकर मुनीम के सामने रख देती है। वह कहती है— "मेरा गहना ले जाओ... लो मेरे लड़के को ला दो।" उसके लिए गहने और पैसा मिट्टी के समान हैं।

 * स्पष्टवादी: वह अपने पति की लालची प्रवृत्ति को अच्छी तरह पहचानती है और उसे धिक्कारने से भी पीछे नहीं हटती। वह कहती है कि ऐसा रुपया किस काम का जो संतान की रक्षा न कर सके।

 * व्यावहारिक: वह जानती है कि पठानों से लड़कर नहीं, बल्कि फिरौती देकर ही बेटे को बचाया जा सकता है, इसलिए वह मुनीम को तुरंत पैसे ले जाने का आदेश देती है।

3. मुनीम जी का चरित्र-चित्रण

मुनीम जी सेठ बिसाखाराम के वफादार कर्मचारी हैं, जो व्यापार और परिवार के बीच एक संतुलन बनाए रखते हैं।

 * वफादार और समझदार: वह वर्षों से सेठ के साथ हैं और उनके स्वभाव को जानते हैं। वह सेठ को बार-बार वास्तविकता का आइना दिखाते हैं कि स्थिति कितनी गंभीर है।

 * मानवीय दृष्टिकोण: मुनीम जी केवल एक कर्मचारी नहीं हैं, उनके भीतर संवेदना भी है। वे सुंदरलाल को बचाने के लिए जल्दबाजी करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि पठान कितने खतरनाक हो सकते हैं।

 * निर्णय लेने की क्षमता: अंत में, जब सेठ हिचकिचाता है, तब मुनीम जी सेठानी के आदेश का पालन करते हुए पैसे लेकर चले जाते हैं। वे जानते हैं कि इस समय पैसा नहीं, जीवन बचाना प्राथमिकता है।

4. सुंदरलाल का संक्षिप्त परिचय

सुंदरलाल बिसाखाराम का पुत्र है। वह एकांकी में एक 'पीड़ित' पात्र के रूप में उभरता है। वह अपने पिता के कठोर स्वभाव का शिकार है। जब वह वापस आता है, तो उसकी शारीरिक स्थिति (मार-पीट के निशान) पठानों की क्रूरता और बिसाखाराम की देरी, दोनों का परिणाम लगती है।

निष्कर्ष:

उदयशंकर भट्ट ने इन पात्रों के माध्यम से समाज के दो विपरीत ध्रुवों को दिखाया है। एक तरफ बिसाखाराम की 'भौतिकवादी' सोच है, तो दूसरी तरफ सेठानी की 'संवेदनशील' सोच।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you for your support