डॉ. गीता गुप्त द्वारा लिखित निबंध "धरती बचेगी तभी हम बचेंगे" के आधार पर 20 एक शब्द वाले लघु प्रश्नोत्तर और संदर्भ सहित व्याख्या नीचे दिए गए हैं।
लघु प्रश्नोत्तर (एक शब्द में उत्तर)
- भारतीयों ने प्रकृति के संरक्षण में किसे महत्व दिया है? उत्तर: उपासना
- भारत में धरती पर जीवन का मुख्य आधार क्या माना गया है? उत्तर: पंचभूत
- मानव जीवन को सरल बनाने के लिए भारतीय संस्कृति में किसका महत्व बताया गया है? उत्तर: जीव-जंतु
- पंचभूत में कौन-कौन से तत्व शामिल हैं? उत्तर: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश
- प्राचीन भारतीय परंपराओं में प्रकृति को किसके रूप में माना गया है? उत्तर: देवी-देवता
- पर्वत, पेड़ और नदियों को किस रूप में पूजा जाता है? उत्तर: देवी-देवता
- 20वीं सदी में मानव ने विकास के लिए क्या अपनाया? उत्तर: पश्चिम का अंधानुकरण
- फलों और फूलों का मुख्य उद्देश्य क्या था? उत्तर: पर्यावरण को बचाना
- मानव ने विज्ञान की प्रगति को किस रूप में माना है? उत्तर: विकास
- आधुनिक सभ्यता में क्या सबसे अधिक हुआ है? उत्तर: प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
- आधुनिक विकास का नाम क्या है? उत्तर: औद्योगीकरण
- 2005 में दुनिया के सबसे संपन्न देश कौनसे थे? उत्तर: अमेरिका
- उपभोक्तावाद के कारण क्या बढ़ा है? उत्तर: तनाव, बीमारी
- 2050 तक दुनिया की जनसंख्या कितनी हो सकती है? उत्तर: 23 अरब
- 2008 में पर्यावरण को बचाने के लिए भारत ने कितने हेक्टेयर भूमि खाली करने की घोषणा की थी? उत्तर: 60 हजार
- पर्यावरण का प्रदूषण रोकने के लिए क्या आवश्यक है? उत्तर: सामूहिक प्रयास
- हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कैसे करना चाहिए? उत्तर: सीमित
- हमें अपनी जीवनशैली को किसके अनुकूल बनाना चाहिए? उत्तर: प्रकृति
- अगर हम प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे तो क्या होगा? उत्तर: धरती बचेगी नहीं
- पर्यावरण को बचाने का अंतिम उपाय क्या है? उत्तर: स्वयं को बदलना
संदर्भ सहित व्याख्या
व्याख्या-1
संदर्भ: "जब यह बात है कि भारतीय अपनी प्राचीन परंपराओं को भूलने जा रहे हैं। जबकि पारंपरिक ढंग से हमारे पूर्वज प्रकृति की उपासना का मंत्र देते आए हैं। हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों में प्रकृति के संरक्षण का संदेश समाहित है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, पेड़, कलश, सूर्य, चंद्र आदि को पूजने और भगवान देने का अर्थ ही है कि हम उनसे बदला का भाव मानते हैं।"
व्याख्या:
लेखिका इस अनुच्छेद में बताती हैं कि आधुनिक समाज अपनी पुरानी भारतीय परंपराओं को भूलता जा रहा है, जहाँ प्रकृति की पूजा की जाती थी। हमारी संस्कृति में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, सूर्य, और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्वों को देवी-देवता मानकर पूजा जाता था। यह पूजा केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं थी, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका था। यह हमें सिखाता था कि हमें प्रकृति से केवल लेना ही नहीं, बल्कि उसे बचाना भी है। यह दृष्टिकोण आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है, जब हम बिना सोचे-समझे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं।
व्याख्या-2
संदर्भ: "उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी भाषा, पहनावे, जीवन-मूल्यों, नियमों एवं संस्कारों को जबरदस्ती नुकसान पहुंचाया है। इससे जीवन की आसानता से तनाव, बीमारी, कर्ज और मृत्यु के भय को बढ़ावा भी है।"
व्याख्या:
इस अंश में, लेखिका उपभोक्तावाद (consumerism) के नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालती हैं। वह बताती हैं कि कैसे पश्चिमी सभ्यता की देखा-देखी और नई चीजों के प्रति लालसा ने हमारे पारंपरिक जीवन मूल्यों, पहनावे और संस्कृति को बदल दिया है। यह उपभोक्तावादी संस्कृति हमें और अधिक खरीदने और उपभोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे हमारे जीवन में अनावश्यक तनाव, बीमारियाँ, और वित्तीय समस्याएँ (जैसे कर्ज) बढ़ती हैं। इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य और मानसिक शांति से है। इस प्रकार, लेखिका हमें याद दिलाती हैं कि असली खुशी और शांति हमारे पारंपरिक, प्रकृति-आधारित जीवनशैली में है, न कि वस्तुओं के पीछे भागने में।
व्याख्या-3
संदर्भ: "यह नितांत आवश्यक है कि वर्तमान परिस्थितियों में धरती की रक्षा का अपना धर्म समझा जाए और उसके नैसर्गिक सौंदर्य को बचाए रखने के अलावा उसे बंजर होने से भी बचाया जाए। जुलाई 2008 में प्रधानमंत्री द्वारा 60 लाख हेक्टेयर वनों की खाली बंजर भूमि पर पेड़ लगाने की घोषणा की गई थी, जिस पर 60 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान था। लेकिन यह सर्वविदित है कि कागजों पर ही इतने पेड़ लगाए जाते हैं। इसलिए यथार्थ के धरातल पर प्रकृति की दशा नहीं सुधरेगी जब तक निजी तौर पर ‘एक व्यक्ति : एक पेड़’ लगाने का नियम अपनाकर हम धरती को हरियाली-जंगल बनाने की चेष्टा करनी चाहिए।"
व्याख्या:
लेखिका यहाँ बताती हैं कि धरती को बचाने के लिए सरकारी घोषणाओं और बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर निर्भर रहना काफी नहीं है। वे एक उदाहरण देती हैं कि 2008 में भारत सरकार ने 60 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि पर पेड़ लगाने की योजना बनाई थी, लेकिन ये योजनाएं अक्सर कागजों तक ही सीमित रहती हैं और वास्तविक रूप में लागू नहीं हो पातीं। इसलिए, वह जोर देती हैं कि पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। "एक व्यक्ति: एक पेड़" का नियम अपनाकर, हमें व्यक्तिगत स्तर पर पेड़ लगाने और प्रकृति की देखभाल करने का प्रयास करना चाहिए। उनका मानना है कि जब तक हर व्यक्ति इस काम को अपना कर्तव्य नहीं समझेगा, तब तक कोई भी बड़ी योजना सफल नहीं हो सकती। यह संदेश हमें बताता है कि धरती को बचाने की शुरुआत हम खुद से कर सकते हैं।
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