व्याघ्र वेशी: सारांश
नाटक की शुरुआत में, सूत्रधार एक बूढ़ी औरत से मिलकर उसे उसकी पुरानी कहानी सुनाने का अनुरोध करता है। बूढ़ी औरत थोड़ी झिझकती है और कहती है कि वह कहानी तो सुना सकती है, लेकिन गाँव वाले उसे देखकर कहेंगे कि 'इस बुढ़िया को और कोई काम नहीं है, दिन भर यही हो गया है।' इस पर सूत्रधार उसे भरोसा दिलाता है कि आजकल लोग लोककथाओं और पहेलियों को सुनने में रुचि नहीं रखते, इसलिए वह बूढ़ी औरत की बातें रिकॉर्ड करने के लिए आया है।
बुढ़िया उस दिन को याद करती है जब उसने सूत्रधार से कहानी सुनाने का वादा किया था, लेकिन तभी उसे याद आता है कि वह अब बूढ़ी हो गई है और उसे भगवान के पास जाना है, इसलिए वह कहानी नहीं सुना सकती। इसके बाद वह कुछ लड़कों को बुलाती है, जिनमें नरसाम्मा, तिम्माम्मा, सिंदम्मा और चिकमण्णुका शामिल हैं। वे सभी उसके बुलाने पर तुरंत आ जाते हैं।
जब सब इकट्ठा हो जाते हैं, तब बुढ़िया लंबी सांस लेकर अपनी पुरानी बातें याद करती है। वह ग्यारह साल की उम्र से ही अपने पति से अलग हो गई थी और उन महान हस्तियों को याद करके उसका दिल दुख से भर जाता है। नरसाम्मा और सिंदम्मा उसे चुप कराकर कहती हैं कि वह रोना बंद करे, लेकिन बूढ़ी औरत अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती।
सूत्रधार बूढ़ी औरत से पूछता है कि वह क्यों रो रही है। तब बुढ़िया बताती है कि उसके पूर्वजों की कहानी बहुत लंबी है, वे दिल्ली से आए थे और अपने पीछे अपनी निशानियाँ छोड़ गए हैं। वह पहेलियों में बात कर रही होती है। जब सूत्रधार उसे साफ़-साफ़ बताने के लिए कहता है, तो वह अपने कुल के बुज़ुर्गों के नाम बताती है: दुम्मी दोड्डप्पा और शाल्यदा तिम्मप्पा जी।
आखिरकार, बुढ़िया अपने सामने बैठे सभी लोगों को 'धीर-शूर वीरों' की कहानी सुनाने के लिए तैयार हो जाती है। वह सबको कान लगाकर कहानी सुनने को कहती है और बताती है कि यह कहानी दिल्ली के एक राजा की है, जिसकी चाल-चलन लोगों को पसंद नहीं थी। इस कहानी के माध्यम से वह अपने कुल के महान बुज़ुर्गों के इतिहास के बारे में बताती है, जिसके बाद मंच पर अँधेरा हो जाता है।
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