उमा का चरित्र-चित्रण
भूमिका:
एकांकी 'रीढ़ की हड्डी' की नायिका उमा एक पढ़ी-लिखी, समझदार और आधुनिक विचारों वाली युवती है। वह रूढ़िवादी सामाजिक सोच और पितृसत्तात्मक मानसिकता का विरोध करती है।
मुख्य भाग:
1. पढ़ी-लिखी और स्वाभिमानी युवती:
उमा ने बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की है, जो उस समय के समाज में लड़कियों के लिए असामान्य था। वह अपने ज्ञान और शिक्षा का सम्मान करती है। जब गोपालप्रसाद उससे "औरतें ज्यादा पढ़ी-लिखी क्यों नहीं होनी चाहिए" जैसे सवाल पूछते हैं, तो वह अपमानित महसूस करती है। उसका स्वाभिमान उसे चुप नहीं रहने देता, और वह उनके खोखले विचारों पर करारा प्रहार करती है।
2. निडर और मुखर (Fearless and Outspoken):
उमा शुरुआत में चुप और विनम्र प्रतीत होती है, लेकिन जब उसे वस्तु की तरह देखा जाता है, तो उसकी चुप्पी टूट जाती है। वह निडर होकर गोपालप्रसाद और शंकर से कहती है कि "रीढ़ की हड्डी" केवल लड़कों की ही नहीं, बल्कि लड़कियों की भी होती है। वह गोपालप्रसाद के पाखंड को उजागर करते हुए कहती है कि वे लड़कियों की सुंदरता की बात करते हैं, लेकिन अपने ही बेटे के चरित्र और रीढ़ की हड्डी को नजरअंदाज करते हैं।
3. आधुनिक विचारों का प्रतिनिधित्व:
उमा पुरानी पीढ़ी की सोच के खिलाफ एक आवाज है। वह उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है जो विवाह को सिर्फ एक समझौता नहीं, बल्कि दो सम्मानजनक व्यक्तियों के बीच का रिश्ता मानती है। वह दहेज और दिखावे का विरोध करती है और यह साबित करती है कि शिक्षा और स्वाभिमान ही एक व्यक्ति की असली पहचान है। उसका मुखर होना ही इस एकांकी का मुख्य संदेश है।
निष्कर्ष:
उमा का चरित्र एक मजबूत और सशक्त महिला का है। वह अपनी शिक्षा और स्वाभिमान के बल पर उस समाज के सामने खड़ी होती है, जो उसे एक निर्जीव वस्तु मानता है। उसका चरित्र समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि शिक्षा केवल लड़कों के लिए नहीं, बल्कि लड़कियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
उदाहरण 2: 'रीढ़ की हड्डी' एकांकी में सामाजिक पाखंड
सामाजिक पाखंड
भूमिका:
जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित एकांकी 'रीढ़ की हड्डी' समाज में व्याप्त पाखंड और दोहरी मानसिकता को उजागर करता है। नाटक के पात्रों के माध्यम से लेखक ने दिखाया है कि कैसे लोग अपनी कमियों को छिपाकर दूसरों से पूर्णता की उम्मीद करते हैं।
मुख्य भाग:
1. गोपालप्रसाद का पाखंड:
गोपालप्रसाद एक वकील होते हुए भी दहेज को कानूनी अपराध नहीं मानते। वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनकी मानसिकता बहुत पिछड़ी हुई है। वे कहते हैं कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ना-लिखना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे उनके घर-गृहस्थी चलाने में दिक्कत आती है। लेकिन वे अपने ही बेटे के लिए एक शिक्षित और गुणवान बहू चाहते हैं। उनके इस विरोधाभास से उनका पाखंड स्पष्ट होता है।
2. शंकर का खोखलापन:
शंकर, जो गोपालप्रसाद का बेटा है, स्वयं ही शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर है। कॉलेज में उसके "रीढ़ की हड्डी" में समस्या है, और वह पढ़ाई में भी कमजोर है। इसके बावजूद, वह एक सुंदर और उच्च गुणों वाली बहू चाहता है। उसका चरित्र इस बात को दर्शाता है कि समाज में कई लड़के अपनी कमियों के बावजूद लड़कियों को परखने का अधिकार मानते हैं।
3. दिखावे की प्रवृत्ति:
रामस्वरूप का परिवार इस पाखंड का शिकार बनता है। वे अपनी बेटी उमा की शिक्षा को छिपाते हैं और मेहमानों के सामने एक झूठा आदर्श प्रस्तुत करते हैं। वे जानते हैं कि गोपालप्रसाद को उनकी बेटी की सच्चाई पता चली, तो रिश्ता टूट जाएगा। यह घटना दर्शाती है कि समाज में विवाह जैसे पवित्र रिश्ते भी दिखावे और झूठ पर आधारित होते हैं।
निष्कर्ष:
'रीढ़ की हड्डी' एकांकी सामाजिक पाखंड पर एक सशक्त व्यंग्य है। यह बताता है कि कैसे लोग अपनी ही कमियों को नज़रअंदाज करके दूसरों में दोष निकालते हैं। लेखक ने पात्रों के संवादों से इस पाखंड को बखूबी उजागर किया है और समाज को अपनी दोहरी मानसिकता पर विचार करने के लिए मजबूर किया है।
प्रश्न रीढ़ की हड्डी नाटक का सारांश लिख कर उसकी विशेषताएं बताइए।
भूमिका
जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित एकांकी 'रीढ़ की हड्डी' एक सामाजिक नाटक है जो विवाह जैसी संस्था के खोखलेपन और महिलाओं के वस्तुकरण की समस्या को उजागर करता है। यह नाटक समाज की पुरानी और नई पीढ़ी की सोच के बीच के टकराव को दर्शाता है। नाटक का शीर्षक प्रतीकात्मक है और कहानी के केंद्र में है।
'रीढ़ की हड्डी' एकांकी का सारांश
तनावपूर्ण माहौल और दिखावे की तैयारी:
नाटक की शुरुआत रामस्वरूप के घर में होती है, जहाँ उनकी बेटी उमा को देखने के लिए गोपालप्रसाद और उनका बेटा शंकर आने वाले हैं। रामस्वरूप और उनकी पत्नी प्रेमा बहुत घबराए हुए हैं। रामस्वरूप ने मेहमानों के सामने अपनी बेटी की शिक्षा (बी.ए.) को छिपाकर उसे सिर्फ मैट्रिक पास बताना है। इस झूठ को छिपाने की कोशिश में घर में तनाव का माहौल है। नौकर रतन की छोटी-छोटी गलतियाँ भी रामस्वरूप की बेचैनी को और बढ़ा देती हैं।
मेहमानों का आगमन और बातचीत:
गोपालप्रसाद और शंकर के आते ही नाटक में संघर्ष शुरू होता है। गोपालप्रसाद एक वकील हैं, जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनकी मानसिकता बहुत पिछड़ी हुई है। वे विवाह को एक व्यापारिक सौदे की तरह देखते हैं। वे उमा से उसकी शिक्षा और रुचियों के बारे में कई सवाल करते हैं, जिनसे उनका पाखंड उजागर होता है। शंकर एक दब्बू और कमजोर चरित्र वाला युवक है, जिसकी शारीरिक रीढ़ की हड्डी भी कमजोर है और वह अपने पिता के सामने बिलकुल शांत रहता है।
उमा का विद्रोह और निष्कर्ष:
जब गोपालप्रसाद लगातार उमा का अपमान करते हैं और उसे एक निर्जीव वस्तु की तरह परखते हैं, तो उमा की चुप्पी टूट जाती है। वह निडरता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करती है। वह सीधे गोपालप्रसाद से कहती है कि "आप अपने बेटे की रीढ़ की हड्डी तो देख लीजिए।" वह शंकर को उसके चरित्रहीन होने और कॉलेज में हुई घटनाओं के लिए भी लताड़ती है। इस बात से गोपालप्रसाद और शंकर शर्मिंदा होकर वहां से चले जाते हैं। अंत में, उमा ने भले ही अपने लिए कोई जीवनसाथी नहीं चुना, लेकिन उसने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करके समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया।
एकांकी की प्रमुख विशेषताएँ
सामाजिक समस्या पर आधारित:
यह एकांकी दहेज प्रथा, महिलाओं के वस्तुकरण और पुरानी व नई पीढ़ी की सोच के बीच के संघर्ष को दर्शाती है। यह दिखाता है कि कैसे समाज में एक लड़की की शिक्षा को उसकी शादी में बाधा माना जाता है।
पात्रों का चरित्र-चित्रण:
उमा: वह शिक्षित, स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी है। वह आधुनिक विचारों की प्रतीक है जो समाज की पुरानी मान्यताओं के खिलाफ विद्रोह करती है।
रामस्वरूप और प्रेमा: ये एक ऐसे माता-पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी बेटी से प्यार करते हैं, लेकिन सामाजिक दबाव के आगे झुक जाते हैं।
गोपालप्रसाद और शंकर: ये पात्र उस रूढ़िवादी और पाखंडी मानसिकता को दर्शाते हैं जो दूसरों में दोष ढूंढती है, लेकिन अपनी खुद की कमियों को नजरअंदाज करती है।
संवादों की प्रासंगिकता और प्रतीकात्मकता:
नाटक के संवाद बहुत ही सरल और सहज हैं, लेकिन वे गहरा अर्थ रखते हैं। "रीढ़ की हड्डी" शीर्षक एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह केवल शंकर की शारीरिक कमजोरी को नहीं, बल्कि उसके और उसके पिता की नैतिक और सामाजिक रीढ़ की हड्डी के अभाव को भी दर्शाता है। उमा का संवाद "रीढ़ की हड्डी" ही नाटक का केंद्रीय विषय बन जाता है।
उद्देश्य और संदेश:
इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य समाज को अपनी दोहरी मानसिकता पर सोचने के लिए मजबूर करना है। यह बताता है कि शिक्षा और आत्मसम्मान किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। लेखक ने यह संदेश दिया है कि हर व्यक्ति को, विशेषकर महिलाओं को, अपनी पहचान और गरिमा की रक्षा करनी चाहिए।
निष्कर्ष
'रीढ़ की हड्डी' एक सशक्त एकांकी है जो अपनी कहानी और पात्रों के माध्यम से समाज की कई गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डालती है। इसका सफल मंचन आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें सिखाता है कि किसी भी व्यक्ति का असली मूल्य उसकी शिक्षा, नैतिकता और आत्मसम्मान में निहित होता है, न कि उसके दिखावे या धन-दौलत में।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for your support