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रविवार, 17 अगस्त 2025

Vyaghra veshi Drishya 2

 एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दें 


1 नाटक के पात्रों के नाम क्या हैं?

दिनकर, गुणसागर, दोड्डुणा, नादस्वर, सेनापति, और आकाशवाणी।

2 दिनकर ने किसे 'तेजस्वी युवक' कहा है?

दोड्डुणा को।

3 दोड्डुणा किस गुरु के दर्शन के लिए तरस रहा है?

सेनापति के।

4 दोड्डुणा कहाँ से भाग कर आया है?

दुम्सी गाँव से।

5 दोड्डुणा ने अपने गुरु की तुलना किससे की है?

कुलदेव कृष्ण से।

6 सेनापति ने दोड्डुणा से क्या कहा?

"बकवास बंद करो... मुझे और भी काम है।"

7 आकाशवाणी ने दोड्डुणा को किसका सहारा लेने की सलाह दी?

इच्छा शक्ति का।


संदर्भ सहित व्याख्या 

प्रश्न: "जब तक गुलाम नहीं बनोगे तब तक मिलेगी नहीं मुक्ति।"


संदर्भ: यह पंक्तियाँ नाटक के दूसरे दृश्य में नादस्वर द्वारा कही गई हैं। यह उस समय बोली जाती हैं जब दोड्डुणा अपने गुरु से मिलने के लिए उत्सुक है।


व्याख्या: इस कथन का गहरा व्यंग्यात्मक अर्थ है। यहाँ 'गुलाम' बनने का मतलब किसी व्यक्ति या विचारधारा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाना है, अपनी इच्छाओं और अहंकार को छोड़कर। 'मुक्ति' का अर्थ यहाँ पर आध्यात्मिक या व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं, बल्कि गुरु का आशीर्वाद या उनके विश्वास को प्राप्त करना है। नादस्वर यह कहकर दोड्डुणा को समझा रहा है कि उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पूर्ण समर्पण और विनम्रता दिखानी होगी, अन्यथा वह कभी सफल नहीं होगा।


प्रश्न: "तुम्हें देखते ही मन का जाने का ही मन करता है। तुम ऐसे दिखते हो जैसे किसी महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए तुम्हारा जन्म हुआ हो।"


संदर्भ: ये पंक्तियाँ नाटक में गुणसागर द्वारा दोड्डुणा से कही गई हैं। यह दोड्डुणा के व्यक्तित्व और उसकी दृढ़ता को देखकर उसके प्रति आकर्षित होकर बोली गई हैं।


व्याख्या: इन पंक्तियों में, गुणसागर दोड्डुणा के व्यक्तित्व की गहराई को पहचानता है। वह दोड्डुणा के दृढ़ निश्चय और उसकी तेजस्वी चाल को देखकर यह महसूस करता है कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, बल्कि उसका जन्म किसी बड़े और महत्वपूर्ण कार्य के लिए हुआ है। यह कथन दोड्डुणा के चरित्र की महानता को स्थापित करता है और नाटक की आगे की घटनाओं के लिए एक आधार तैयार करता है, जहाँ दोड्डुणा को अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। गुणसागर का यह कथन दोड्डुणा के प्रति उनके विश्वास और सम्मान को दर्शाता है।



प्रश्न: "महर्षि विश्वामित्र की तरह अग्नि, जमदग्नि की तरह अपने शरण में आए लोगों की रक्षा वे सदा करते हैं।"


संदर्भ: यह पंक्तियाँ दिनकर द्वारा दोड्डुणा से कही गई हैं, जब वह उसे गुरु सेनापति की महानता के बारे में बता रहा है।


व्याख्या: इन पंक्तियों में, दिनकर गुरु सेनापति की तुलना दो महान ऋषियों - विश्वामित्र और जमदग्नि - से करता है। वह यह दर्शाना चाहता है कि सेनापति भी उन्हीं की तरह तेजस्वी और शक्तिशाली हैं। 'विश्वामित्र की तरह अग्नि' का मतलब है कि सेनापति का तेज और ज्ञान इतना प्रबल है कि वह बुराई को नष्ट कर सकता है। 'जमदग्नि की तरह अपने शरण में आए लोगों की रक्षा' का अर्थ है कि वह उन लोगों को हमेशा सुरक्षा देते हैं जो उनकी शरण में आते हैं। इस कथन के माध्यम से दिनकर दोड्डुणा के मन में गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास को और गहरा करना चाहता है, ताकि वह उनसे दीक्षा लेने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाए।


प्रश्न: "अरे, मन के इस डाँवाँ-डोल के आगे झुक जाऊँ तो, 'मैं खुद, मैं नहीं रहूँगा।' मैं कोई और बन जाऊँगा... मैं अपने आपको अपने भीतर नियंत्रित कर सकता हूँ... माया के हाथों मन और काया का अर्पण करने के लिए मैं मतिहीन नहीं हूँ..."


संदर्भ: यह पंक्तियाँ दोड्डुणा द्वारा स्वयं से कही गई हैं, जब सेनापति उसे डांटकर चले जाते हैं और दोड्डुणा अपने मन को स्थिर करने का प्रयास करता है।


व्याख्या: इन पंक्तियों में दोड्डुणा अपने आंतरिक संघर्ष को व्यक्त कर रहा है। वह अपनी इच्छाशक्ति और मन की अस्थिरता के बीच की लड़ाई को दर्शाता है। 'मन के डाँवाँ-डोल के आगे झुक जाऊँ तो, मैं खुद, मैं नहीं रहूँगा' का मतलब है कि अगर वह अपने मन की चंचलता के आगे हार मान लेता है, तो वह अपने सच्चे आत्म को खो देगा और अपने लक्ष्य से भटक जाएगा। वह खुद को यह याद दिलाता है कि वह इतना कमजोर नहीं है कि 'माया' (सांसारिक आकर्षण) के हाथों में पड़कर अपनी चेतना को खो दे। यह कथन दोड्डुणा के दृढ़ निश्चय, आत्म-नियंत्रण और उसके आध्यात्मिक पथ पर चलने की अटूट इच्छा को दर्शाता है।


प्रश्न: "पल्स्तर के समान खड़े उनके पैरों में विद्युत संचार होता है... चेतना शक्ति आ जाती है... धीरे से आँखें खोलकर अपने आपको स्पर्श कर देखता है कि यह सपना तो नहीं..."


संदर्भ: यह पंक्तियाँ उस क्षण का वर्णन करती हैं जब दोड्डुणा गुरु के दर्शन के बाद अपनी चेतना और शक्ति को महसूस करता है।


व्याख्या: यह कथन दोड्डुणा के गुरु के प्रति समर्पण और उसके फलस्वरूप मिलने वाले आध्यात्मिक अनुभव को दर्शाता है। 'पल्स्तर के समान खड़े' होने का मतलब है कि वह स्थिर और अडिग खड़ा रहा, अपनी परीक्षा में सफल रहा। 'विद्युत संचार' और 'चेतना शक्ति' का वर्णन उसके शरीर में एक नई ऊर्जा और उत्साह के संचार को दिखाता है। यह ऊर्जा गुरु के आशीर्वाद से उत्पन्न हुई है। 'अपने आपको स्पर्श कर देखता है कि यह सपना तो नहीं' यह बताता है कि यह अनुभव उसके लिए इतना अद्भुत और अविश्वसनीय है कि उसे यकीन नहीं हो रहा कि यह सच है। यह कथन इस बात को दर्शाता है कि गुरु का आशीर्वाद कितना शक्तिशाली होता है और

 वह शिष्य के जीवन में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

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