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रविवार, 17 अगस्त 2025

Vyaghra Veshi natak drishya 2 saransh

 व्याघ्रवेशी: दृश्य 2 का विस्तृत सारांश

"व्याघ्रवेशी" नाटक का दृश्य 2, दोड्डुणा नामक एक युवक के आगमन और उसके महान गुरु सेनापति से मिलने की यात्रा पर केंद्रित है। यह दृश्य दोड्डुणा के व्यक्तित्व, उसकी दृढ़ता और उसके सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है।

दृश्य की शुरुआत में, दोड्डुणा विजय नगर के रास्ते में है। यहाँ उसकी मुलाकात दिनकर और गुणसागर से होती है। वे दोड्डुणा के तेजस्वी और गंभीर व्यक्तित्व से तुरंत प्रभावित हो जाते हैं। उसकी चाल और आँखों का तेज देखकर उन्हें लगता है कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, बल्कि उसका जन्म किसी महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए हुआ है। दोनों मित्र उसकी मदद करने का वादा करते हैं।

दोड्डुणा उन्हें बताता है कि वह अपने गाँव दुम्सी से आया है और महान गुरु सेनापति से मिलना चाहता है। वह बताता है कि गुरु की तलाश में वह कई दिनों से भटक रहा है और उनके दर्शन के लिए तरस रहा है। दिनकर और गुणसागर उसे बताते हैं कि गुरु से मिलना आसान नहीं है। वे सेनापति की महानता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वे महर्षि विश्वामित्र की तरह तेज और जमदग्नि की तरह अपनी शरण में आए लोगों की रक्षा करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि कई लोग गुरु का तेज सहन नहीं कर पाए और खाली हाथ लौट गए।

जब दोड्डुणा अंततः गुरु सेनापति से मिलता है, तो उसे उनकी कठोरता का सामना करना पड़ता है। सेनापति उसे सीधा डांटते हैं और कहते हैं कि उनके पास 'बकवास' सुनने का समय नहीं है। यह गुरु द्वारा दोड्डुणा की परीक्षा का हिस्सा होता है। गुरु उसे शांत और स्थिर खड़े रहने की चुनौती देते हैं, जिससे दोड्डुणा को अपने मन की चंचलता और अस्थिरता को नियंत्रित करना पड़ता है।

इस कठिन परीक्षा में दोड्डुणा अपनी इच्छा शक्ति का सहारा लेता है। आकाशवाणी भी उसे 'गुरु की दया की प्रतीक्षा करने' और 'इच्छा शक्ति की शरण में जाने' की सलाह देती है। दोड्डुणा अपने मन के द्वंद्व से लड़ते हुए अडिग खड़ा रहता है। इस तरह वह न केवल अपने मन को नियंत्रित करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि वह गुरु के शिष्य बनने के योग्य है।

परीक्षा पूरी होने पर, दोड्डुणा को एक अलौकिक अनुभव होता है। उसके पैरों से लेकर पूरे शरीर में एक नई ऊर्जा और चेतना का संचार होता है। यह अनुभव इतना शक्तिशाली होता है कि उसे लगता है जैसे वह कोई सपना देख रहा हो। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि गुरु के आशीर्वाद से दोड्डुणा के जीवन में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है और वह अपने उद्देश्य की ओर एक कदम और बढ़ गया है। दृश्य का अंत इस सकारात्मक और आशापूर्ण क्षण के साथ होता है।

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