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मंगलवार, 19 अगस्त 2025

व्याघ्र वेशी नाटक के संवाद आधारित नोट्स


'व्याघ्रवेशी' नाटक: संवादों पर आधारित व्याख्या

यह अंश 'व्याघ्रवेशी' नाटक के तीसरे दृश्य से हैं, जो गुरु संपापति और उनके शिष्य, दोड्डण्णा के बीच के संबंधों को दर्शाते हैं। ये अंश गुरु और शिष्य के बीच की परीक्षा, विश्वास और त्याग को प्रस्तुत करते हैं।

संपापतिऔर दोड्डण्णा के बीच संवाद

संवाद: "गुरुदेव क्या आप मुझे अनाथ कर रहे हैं? आपकी बातें मानो कानों में गरम शीशा डाल दी हों...नहीं गुरुदेव नहीं... मुझे अकेला छोड़कर मत जाइए।" (दोड्डण्णा द्वारा)

किसने किससे कहा: दोड्डण्णा ने गुरु संपापति से कहा।

क्यों कहा: गुरु संपापति नाटक में मरने का नाटक कर रहे हैं ताकि वे अपने शिष्य दोड्डण्णा की निष्ठा और वफादारी की परीक्षा ले सकें। दोड्डण्णा यह देखकर बहुत दुखी होता है और अपने गुरु से विनती करता है कि वे उसे अकेला न छोड़ें।

अभिप्राय: यह संवाद दोड्डण्णा के अपने गुरु के प्रति असीम प्रेम, निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है। वह अपने गुरु को सिर्फ एक शिक्षक के रूप में नहीं, बल्कि एक पिता के रूप में भी देखता है। यह संवाद गुरु-शिष्य के रिश्ते की पवित्रता को दिखाता है।

संवाद: "मेरी बातों को ध्यान से सुनो! अभी आधे घंटे में शरीर से प्राण निकल जाएँगे...इस मानव संपदा की अनेक मुसीबतों से छुटकारा दिलाना है...तुम्हें वर्तमान में अपने लोगों को अनेक बड़ी मुसीबतों से बचाना है।" (संपापति द्वारा)

किसने किससे कहा: गुरु संपापति ने दोड्डण्णा से कहा।

क्यों कहा: गुरु अपनी अंतिम साँसें गिनते हुए दोड्डण्णा को उसकी शिक्षा का असली उद्देश्य समझाते हैं। वे उसे यह याद दिलाना चाहते हैं कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसका उपयोग सिर्फ अपने लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के दुख को दूर करने के लिए करना चाहिए।

अभिप्राय: यह संवाद गुरु संपापति की दूरदर्शिता और उच्च विचारों को दर्शाता है। वे अपने शिष्य को सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति बनाना चाहते हैं जो लोगों की सेवा करे। यह संवाद ज्ञान के वास्तविक उद्देश्य को उजागर करता है: ज्ञान लोगों के दुख को दूर करने के लिए होता है।

गुरु संपापति और दोड्डण्णा की परीक्षा

दिए गए अंशों में, गुरु संपापति अपने शिष्य दोड्डण्णा की परीक्षा ले रहे हैं। वे एक घायल व्यक्ति का रूप धारण कर जंगल में आते हैं और अपनी जान बचाने के लिए दोड्डण्णा से मदद मांगते हैं। गुरु, खुद को घायल कर देते हैं और दोड्डण्णा को अपने हाथों से उनका इलाज करने के लिए कहते हैं। दोड्डण्णा अपने गुरु के प्रति अपनी निष्ठा और कर्तव्य को निभाते हुए उनकी सेवा करता है। गुरु ने अपनी जान जोखिम में डालकर शिष्य की वफादारी की परीक्षा ली, जिससे यह पता चलता है कि गुरु अपने शिष्यों को केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि उन्हें जीवन की कठिन परिस्थितियों के लिए भी तैयार करते हैं।

शीर्षक की सार्थकता

नाटक का शीर्षक 'व्याघ्रवेशी' है, जो यहाँ गुरु संपापति के लिए प्रयुक्त हुआ है। उन्होंने व्याघ्र का रूप धारण किया था, जो उनकी क्रूरता को दिखाता है। यह उनके शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए एक कठोर तरीका था। गुरु ने इस वेश में अपने शिष्यों की निष्ठा और उनके चरित्र की गहराई को परखने की कोशिश की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अपने शिष्यों को केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि उन्हें जीवन के कठिन सत्य का भी सामना करना सिखाते हैं।

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